ताइवान और तिब्बत को लेकर भारत के हालिया कदमों से चीन कसमसा उठा है. पिछले दिनों अमेरिकी सांसदों का एक दल धर्मशाला आकर दलाई लामा से मिला. चीन इस मुलाकात से बुरी तरह चिढ़ गया. ताइवान के साथ भी आर्थिक और तकनीकी साझेदारी को बढ़ाकर भारत ने बीजिंग को साफ संदेश दिया है. सीमा पर तनाव के बीच भारत के इस डबल T वाले गेम ने ड्रैगन को भौचक्का कर दिया है.


तिब्बत को दुलार


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अमेरिकी सांसदों से मुलाकात की थी. US सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल धर्मशाला आकर दलाई लामा से मिला था. उस दल में US कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति के प्रमुख माइकल मैककॉल और पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी भी शामिल थीं. विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भी इस अमेरिकी दल से मुलाकात की. ध्‍यान रहे कि तिब्बत की निर्वासित सरकार धर्मशाला से चलती है. 


चीन को अमेरिकी सांसदों का धर्मशाला दौरा बिल्कुल नहीं भाया. बीजिंग ने अमेरिका से कहा कि वह दलाई समूह के 'चीन विरोधी अलगाववादी रवैये' को पूरी तरह मान्यता दे. चीन ने कहा कि अमेरिका ने तिब्बत को लेकर उससे जो वादे किए हैं, उसे ध्यान रखे और दुनिया को गलत संदेश न दे.


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ताइवान से करार


भारत ने ताइवान के साथ तकनीकी क्षेत्र, खासतौर से सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में साझेदारी मजबूत की है. पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन (PSMC) और फॉक्सकॉन जैसी ताइवानी कंपनियां भारत में विस्तार कर रही हैं. दोनों कंपनियों ने पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में महत्वपूर्ण निवेश किया है. यह साझेदारी न सिर्फ आर्थिक फायदे के लिए है, बल्कि महत्वपूर्ण तकनीकों के लिए चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भी.



क्यों अहम है भारत का यह रुख


भारत के तिब्बत और ताइवान को महत्व देने का प्रमुख मकसद चीन को उसी के स्टाइल में समझाना है. ताइवान और तिब्बत, दोनों ही चीन के लिए संवेदनशील मुद्दे हैं. भारत ने साफ कहा है कि वह अपने हितों के लिए मल्टी-अलाइनमेंट की रणनीति पर चल रहा है. ताइवान के साथ रणनीति साझेदारियों और तिब्बत को सांकेतिक समर्थन दे भारत ने ग्लोबल स्टेज पर अपनी स्थिति साफ की है.


यह साफ इशारा है कि भारत अपनी नीतियां किसी सुपरपावर के दबाव में आकर नहीं, राष्ट्रहित के हिसाब से तय करता है. इस रुख से भारत को अपनी आर्थिक और तकनीकी क्षमताओं को बेहतर करने का मौका मिल रहा है. साथ ही साथ वह चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व को भी काउंटर कर पा रहा है.


भारत, चीन और अमेरिका


ताइवान और तिब्बत के साथ भारत के जुड़ाव को चीन अपनी संप्रभुता और प्रभुत्व को चुनौती के रूप में देखता है. अमेरिका के शामिल हो जाने से यह मामला त्रिकोणीय हो गया है. तिब्बत के लिए अमेरिका का समर्थन बढ़ रहा है और ताइवान से भारत की बढ़ती नजदीकियां चीन के उभार को काउंटर करती हैं. 


भारत और चीन के संबंधों में 2020 से आई खटास दूर नहीं हो सकी है. चार साल पहले हिंसक झड़पों में दोनों ओर के सैनिक मारे गए थे. उसके बाद से ही, बॉर्डर पर दोनों देशों ने न सिर्फ तैनाती बढ़ाई, बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया है.