Lebanon Attack: मिडिल-ईस्ट का स्विटजरलैंड और पेरिस क्यों कहा जाता था लेबनान? कैसे बुरा सपना बना बेरूत
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Lebanon Attack: मिडिल-ईस्ट का स्विटजरलैंड और पेरिस क्यों कहा जाता था लेबनान? कैसे बुरा सपना बना बेरूत

Switzerland Of Middle East Lebanon: लेबनान, खासकर इसकी राजधानी बेरूत कभी दुनिया के सबसे अमीर पर्यटकों के आकर्षम का केंद्र था. फिर मध्य पूर्व का स्विटजरलैंड और पेरिस कहा जाने वाला लेबनान आधुनिक समय के कैसे एक डायस्टोपियन (हमेशा डर के साए में गुजर-बसर करने वाले) राज्य में बदल गया?

Lebanon Attack: मिडिल-ईस्ट का स्विटजरलैंड और पेरिस क्यों कहा जाता था लेबनान? कैसे बुरा सपना बना बेरूत

How Safe Is Lebanon: पहले हिजबुल्लाह के लड़ाके और रॉकेट के दबदबे और अब इजरायल के हमले से हुई भयानक तबाही से पहले लेबनान और खासकर इसकी राजधानी बेरूत कभी दुनिया के सबसे अमीर सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र था. एक समय मध्य पूर्व का स्विटजरलैंड और पेरिस कहा जाने वाला लेबनान मौजूदा समय में हमेशा एक डर के साए में रहने वाले यानी डायस्टोपियन राज्य में बदल गया. बेरूत में जहां हमेशा जश्न होता है वहां आजकल लोगों के जान के लाले पड़े हुए हैं.

राजनीतिक और आर्थिक संकट के साथ युद्धग्रस्त देश की इमेज

मौजूदा दौर में लेबनान हिजबुल्लाह लड़ाकों और राजनीतिक और आर्थिक संकट के साथ ही युद्धग्रस्त देश की इमेज में बंधा है, लेकिन कुछ दशक पहले यह पश्चिम एशियाई देश और खासकर इसकी राजधानी बेरूत, दुनिया के सबसे अमीर पर्यटकों को लुभाती थी. लेबनान स्विमसूट, समुद्र तटों, चहल-पहल भरी सड़कों और लोगों के आज़ादी से घूमने के लिए मशहूर था. मध्य पूर्व का पेरिस कहे जाने वाले शहर बेरूत में कुछ अवशेष अभी भी बचे हुए हैं.

अब सिर्फ हिंसा और खून-खराबे के लिए काफी चर्चा में लेबनान 

मॉडर्न और उम्मीदों से भरा लेबनान अब हिंसा और खून-खराबे के लिए चर्चा में है. इसके बावजूद कहा जाता है कि बमबारी बंद होते ही बेरूत में पार्टी शुरू हो जाती है. सीमा पार हमलों में सबसे घातक दिन 23 सितंबर को लेबनान में हिजबुल्लाह के ठिकानों पर इजरायली हमलों में 492 लोग मारे गए थे. इसके बाद ईरान समर्थित आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह ने उत्तरी इजरायल में 200 रॉकेट दागकर जवाबी कार्रवाई की. इस बीच, लेबनान ने हिजबुल्लाह के सदस्यों के हजारों पेजर के सिलसिलेवार विस्फोट के बाद सुर्खियां बटोरीं. 

11 महीनों में हिजबुल्लाह ने लेबनान से इजरायल में 8,000 रॉकेट दागे

इससे पहले, पिछले 11 महीनों में हिजबुल्लाह ने लेबनान से इजरायल में 8,000 रॉकेट दागे थे. अब लेबनान में भारी तबाही के बाद लोग उन दिनों को याद कर रहे हैं जब मध्य पूर्व की पार्टी राजधानी लेबनान में स्विमसूट में महिलाओं, समुद्र तट पर आराम करने वाले लोगों या क्लबों में पार्टी करने वाले लोगों की तस्वीरें और वीडियो आम होते थे. इसकी समृद्ध संस्कृति, फ्रांसीसी वास्तुकला, विश्व स्तरीय भोजन, फैशन और आकर्षक जीवनशैली दुनिया भर के हाई क्लास पर्यटकों को विलासिता की गोद में खींच लेती थी.

1930 के दशक में लेबनान की राजधानी बेरूत में पहला बीच क्लब

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, लेबनान की राजधानी बेरूत को 1930 के दशक में ही सेंट जॉर्ज के खुलने के साथ अपना पहला बीच क्लब मिला था. सेंट जॉर्ज होटल बेरूत ने सबसे अधिक पहचाने जाने वाले और अमीर पर्यटकों की मेजबानी की. यह लेबनान के बदलते चेहरे का चेहरा भी बन गया. 1950 के दशक में भारी रकम की आवक ने भूमध्य सागर में ला डोल्से वीटा का अपना एक अलग ही रूप बनाया. दुनिया भर से आने वाले एलीट पर्यटकों की सेवा के लिए पांच सितारा होटल, नाइट क्लब और बढ़िया भोजन वाले रेस्टोरेंट खुल गए.

1960 के दशक में शुरू हुई लेबनान की दुखद अंतहीन यात्रा 

1960 के दशक में बेरूत एलीट पार्टी साइट कल्ब में शामिल हुआ. लोनली प्लैनेट के मुताबिक, यही वह समय था जब फ्रांसीसी अभिनेत्री ब्रिगिट बार्डोट और अमेरिकी स्टार मार्लन ब्रैंडो ने समुद्र के किनारे होटल के पूल में तेल के मालिक शेखों और जासूसों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. 70 के दशक के मध्य तक ऐसी शानदार पार्टी पूरे जोश के साथ जारी रही. और यही वह समय था जब लेबनान की दुखद यात्रा शुरू हुई.

लेबनान में 15 साल तक गृहयुद्ध ने ली 1,50,000 लोगों की जान

1975 से 1990 तक चले गृहयुद्ध से लेकर सरकारों के गिरने, अवैध वित्तीय प्रथाओं और भ्रष्टाचार तक, कई फैक्टर्स ने लेबनान को आधुनिक समय के दुःस्वप्न में बदल दिया. लेबनान में 15 साल तक चले गृहयुद्ध ने भारी तबाही मचाई. लेबनान का गृहयुद्ध एक जटिल और बहुआयामी संघर्ष था. उसमें कई आंतरिक और बाहरी प्लेयर शामिल थे. इसने 1,50,000 लोगों की जान ले ली. 

13 अप्रैल, 1975 को हुई थी गृहयुद्ध की शुरुआत, ये थी वजह

इस गृहयुद्ध की शुरुआत 13 अप्रैल, 1975 को हुई, जब मैरोनाइट ईसाई मिलिशिया, फलांगिस्टों ने फिलिस्तीनियों को तल अल-ज़तर में शरणार्थी शिविर में ले जा रही एक बस पर हमला किया. इससे मौजूदा तनाव एक व्यापक संघर्ष में बदल गया. यह युद्ध ईसाइयों और मुसलमानों के बीच गहरे सांप्रदायिक विभाजन, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और लेबनान में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) की मौजूदगी में छुपा हुआ था.

पीएलओ बलों को हटाने के लिए 1982 में इजरायली आक्रमण 

किंग हुसैन की हत्या के प्रयास के बाद जॉर्डन से बाहर निकाले गए पीएलओ ने लेबनान में फिर से समूह बनाया. यहां पीएलओ की भागीदारी महत्वपूर्ण थी. लेबनानी मुसलमानों और वामपंथियों ने इसका समर्थन किया, जबकि ईसाइयों ने इसका विरोध किया. क्योंकि उन्हें डर था कि इससे उनका राजनीतिक प्रभुत्व कमज़ोर हो जाएगा. 1982 में इजरायली आक्रमण का मकसद पीएलओ बलों को हटाना था. बेरूत की घेराबंदी की गई, जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय निगरानी में पीएलओ को निष्कासित कर दिया गया. इस अवधि में ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह सहित शिया समूहों का उदय भी हुआ.

1976-1988 में आंतरिक संघर्ष, शांति के कई असफल प्रयास

1976 और 1988 के बीच, आंतरिक संघर्ष और कई असफल शांति प्रयासों ने युद्ध की विशेषता बताई, जिससे कई गुटों और बाहरी शक्तियों के शामिल होने से स्थिति जटिल हो गई. 1989 में अरब लीग की मध्यस्थता में किए गए ताइफ समझौते ने युद्ध के अंत की शुरुआत की, जिसके बाद एक नए राष्ट्रपति, इलियास ह्रावी का चुनाव हुआ और मिलिशिया का धीरे-धीरे विघटन हुआ. हालांकि, हिज़्बुल्लाह एक प्रभावशाली ताकत बना रहा.

बड़े लोगों ने कैसे लेबनान को आर्थिक संकट में डाल दिया?

लेबनान एक गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है क्योंकि एक के बाद एक सरकार ने गृह युद्ध के बाद खजाने को कर्ज में डूबाकर छोड़ दिया है. इसने अपने बैंकों को ढहते देखा है, लोगों को उनके बचत खातों या उनकी रकम से वंचित किया जा रहा है. वे अपने ही अकाउंट को एक्सेस नहीं कर सकते हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह इसके सांप्रदायिक अभिजात वर्ग द्वारा भारी और लगातार उधार लेने का परिणाम है.

मौजूदा लेनदारों को भुगतान करने के लिए लेबनान पर नया कर्ज

कई विशेषज्ञों ने जिक्र किया है कि कैसे लेबनान की वित्तीय प्रणाली एक राष्ट्रीय स्तर पर विनियमित पोंजी स्कीम थी, जहां मौजूदा लेनदारों को भुगतान करने के लिए नया कर्ज लिया जाता है. यह तब तक काम करता है जब तक कि नया पैसा आना बंद न हो जाए. गृहयुद्ध के बाद, लेबनान ने पर्यटन, विदेशी सहायता और अपने वित्तीय उद्योग से होने वाली आय और खाड़ी अरब देशों से लिए गए धन से अपने वित्तीय हालत को संतुलित किया. विदेश में काम की तलाश में गए लाखों लेबनानी लोगों से भी धन की आवक काम आई. 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान भी, उन्होंने लेबनान को धन भेजा.

हिजबुल्लाह ने सुन्नी ताकतों को लेबनान छोड़ने पर मजबूर किया

लेबनान की लाइफलाइन यानी मनीऑर्डर सिस्टम 2011 में सांप्रदायिक राजनीतिक झगड़ों के बीच धीमा हो गया. सुन्नी खाड़ी देशों ने भी ईरान के अपने प्रॉक्सी शिया आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह के माध्यम से उदय के बाद वापस लेना शुरू कर दिया. यह 2016 तक था, जब बैंकों ने डॉलर की नई जमाराशियों के लिए ब्याज दरें देना शुरू किया. यहां "फाइनेंशियल इंजीनियरिंग" की शुरुआत की गई जिसमें बैंकों को नए डॉलर के लिए बड़े रिटर्न देना शामिल था.

डॉलर के बेहतर प्रवाह ने लेबनान के विदेशी भंडार में वृद्धि की, लेकिन देनदारियों में भी चिंताजनक बढ़त हुई. रिपोर्ट बताती है कि केंद्रीय बैंक का कर्ज उसकी परिसंपत्तियों से अधिक हो सकता है, जो महत्वपूर्ण नुकसान का संकेत देता है.। इस बीच, लेबनान के कर्ज ने सरकार के बजट का लगभग एक तिहाई या उससे अधिक हिस्सा खा लिया है. लेबनान का आर्थिक पतन ऐसे ही कई कारकों से शुरू हुआ था.

अगस्त 2020 में बेरूत बंदरगाह पर विस्फोट ने संकट को बढ़ाया

अगस्त 2020 में बेरूत बंदरगाह पर हुए विस्फोट ने संकट को और बढ़ा दिया. उसमें 215 लोग मारे गए और भारी क्षति हुई थी. 2021 तक, लेबनान का सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 495 फीसदी होने का अनुमान है. यह पहले कुछ यूरोपीय देशों को पंगु बनाने वाले स्तरों से कहीं ज़्यादा है. लेबनान में राजनीतिक और सामाजिक संकट गृहयुद्ध के समय, सीरियाई सेना 1976 में लेबनान में घुस गई और 30 अप्रैल, 2005 तक अपना कब्ज़ा जारी रखा. इस पूरी अवधि में लेबनान की सरकार, अर्थव्यवस्था और समाज पर सीरियाई सैन्य और राजनीतिक प्रभाव काफ़ी ज़्यादा रहा.

अल-हरीरी की हत्या के बाद लेबनान से बाहर निकली सीरियाई सेना

2005 में लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री रफीक अल-हरीरी की हत्या के बाद सीरियाई सेना लेबनान से बाहर निकल गई. हरीरी की हत्या लेबनान की राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो सांप्रदायिक विभाजन से प्रभावित है. हालांकि सीरिया ने वापसी कर ली, लेकिन 2006 में इज़राइल और हिज़्बुल्लाह के बीच युद्ध हुआ. गृहयुद्ध से उपजे मतभेदों और परिणामों ने राजनीतिक संघर्ष को जन्म दिया है, जो राष्ट्रपति पद पर सहमति के रास्ते में आ गया है. 2014 से 2016 तक देश बिना किसी राजनीतिक प्रमुख के रहा. मिशेल औन के राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद 2022 से राष्ट्रपति का पद अभी भी खाली है.

ईरान और अरब की रस्साकशी से एक छद्म युद्धक्षेत्र बन गया लेबनान

मिशेल औन ने 1988 में लेबनानी सेना के कमांडर और कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया था. उन्हें 1990 में कुर्सी से बेदखल कर दिया गया था और सीरिया की वापसी के बाद 2005 में वापस लौटने से पहले उन्होंने 15 साल निर्वासन में बिताए थे. उनका राजनीतिक पुनरुत्थान 2005 के चुनावों के बाद एक प्रमुख ईसाई पार्टी के रूप में उनके फ्री पैट्रियटिक मूवमेंट (FPM) के उदय के साथ हुआ.

सत्ता शून्यता के बाद उनके राष्ट्रपति पद का समर्थन सुन्नी नेता और रफीक हरीरी के बेटे साद हरीरी ने किया. इसे हिजबुल्लाह का भी समर्थन प्राप्त था. लेबनान में शीर्ष पद को भरना मुश्किल इसलिए है क्योंकि युद्धग्रस्त देश ईरान द्वारा सक्रिय रूप से हिजबुल्लाह का समर्थन करने और सऊदी अरब द्वारा साद हरीरी और अन्य सुन्नी राजनेताओं का समर्थन करने के साथ एक छद्म युद्धक्षेत्र बन गया है. राष्ट्रपति के बिना, लेबनान के मामलों का प्रबंधन मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है.

संकट से जूझ रहा लेबनान, लेकिन बेरूत ने दिखाया जरूरी लचीलापन 

इस राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामाजिक प्रभाव गहरा रहा है. कई लेबनानी नागरिक देश छोड़ने के लिए बेताब हैं. कुछ यूरोप पहुंचने के लिए जोखिम भरी यात्राएं करने की कोशिश कर रहे हैं. कभी संपन्न शहर अब गरीबी के निशानों को झेल रहे हैं, जहां बच्चे सड़कों पर भीख मांग रहे हैं और परिवार ज़रूरत की चीज़ें भी नहीं जुटा पा रहे हैं. प्रभावी सरकारी सहायता के अभाव में, नागरिक समाज समूहों ने खाद्य वितरण और स्वास्थ्य सेवा सहित आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए कदम उठाया है.

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मध्य पूर्व में सबसे अच्छी है बेरूत की नाइटलाइफ, बार-क्लब में भीड़

दूसरी ओर, कई रिपोर्टों के अनुसार, बेरूत में नाइटलाइफ मध्य पूर्व में सबसे अच्छी है. मई में छपी यूके मेट्रो की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि बेरूत में बार और क्लब सामान्य रूप से संचालित होते हैं, और सुबह तक हाउस म्यूज़िक बजता रहता है. एक क्लब के मालिक ने बताया था, "क्लब ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां सांप्रदायिक मुद्दे मायने नहीं रखते. हम वहां भाई-भाई की तरह हैं." हालांकि, उन पर शोर-शराबे बढ़ाने का आरोप लगाया गया है.

मध्य पूर्व का पेरिस लेबनान किस तरह आधुनिक समय का डायस्टोपिया बन गया, यह सेंट जॉर्ज होटल बेरूत पर साफ झलकता है. बेरूत होटल, जिसने कभी हॉलीवुड स्टार एलिजाबेथ टेलर, रिचर्ड बर्टन और मार्लन ब्रैंडो, और फ्रेंच स्टारलेट ब्रिगिट बार्डोट, और जॉर्डन के राजा हुसैन और ईरान के शाह जैसे राजघरानों की मेजबानी की थी, अब बमबारी से टूटा-फूटा हुआ है.

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लेबनानी समाज का राजनीतिक से लेकर आर्थिक तक चौतरफा पतन

14 फरवरी, 2005 को होटल के बाहर एक बड़े कार बम विस्फोट में रफीक अल-हरीरी की हत्या कर दी गई थी. होटल के मालिक फैडी खोरी हमले में मामूली रूप से घायल हो गए. उन्होंने कहा कि इससे उन्हें लाखों डॉलर का नुकसान हुआ. विस्फोट में लगभग 1,800 किलोग्राम टीएनटी का इस्तेमाल किया गया था, और प्रतिष्ठित होटल सहित आस-पास की सभी इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं. यह लेबनानी समाज का राजनीतिक से लेकर आर्थिक तक चौतरफा पतन था.

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