दिल्ली दंगा 2020: चार साल बाद भी नहीं मिटे दाग, दर्द भी बाकी; उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा में इंसाफ का इंतजार
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दिल्ली दंगा 2020: चार साल बाद भी नहीं मिटे दाग, दर्द भी बाकी; उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा में इंसाफ का इंतजार

चार साल पहले 23से 25 फरवरी 2020 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान वर्ल्ड मीडिया का ध्यान खींचने के लिए दिल्ली में साजिशन सांप्रदायिक दंगा को अंजाम दिया गया था. राजधानी दिल्ली को दहलाने के मामले में ताहिर हुसैन, उमर खालिद, सरजिल इमाम, खालिद सैफी, शाहरुख खान जैसे कई पोस्टर बॉय आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी.

दिल्ली दंगा 2020: चार साल बाद भी नहीं मिटे दाग, दर्द भी बाकी; उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा में इंसाफ का इंतजार

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के पास होने के बाद देश के कई हिस्सों में शुरू विरोध प्रदर्शनों की आड़ में 23, 24 और 25 फरवरी 2020 के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के सबसे घनी आबादी वाले इलाके उत्तर पूर्वी दिल्ली में खतरनाक दंगा भड़क उठा था. सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ो लोग घायल हो गए थे. हजारों करोड़ की संपत्ति जलकर खाक हो गई. दिल्ली पुलिस ने दंगों के मामले में कुल 758 एफआईआर दर्ज किए थे. हालांकि, चार साल बाद भी पीड़ित लोग इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं.

साजिश रचकर अंजाम दिया गया था दिल्ली दंगा, चार्जशीट में नापाक मंसूबे का खुलासा

हिंदू और मुस्लिम की मिश्रित आबादी वाले उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे को कई फैक्ट फाइंडिंग टीम और कानून के जानकारों ने वेल-प्लान्ड (सुनियोजित) बताया. दंगे के मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर चार्जशीटों से भी सामने आया कि दिल्ली दंगे पूरी तरह से साजिश रचकर अंजाम दिए गए थे. दंगे के मास्टरमाइंड का  मुख्य मकसद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान देश के शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ना और दिल्ली को अराजकता की हालात में धकेलना था.

सीएए के नाम पर भड़काऊ अफवाह फैलाकर कट्टरपंथियों ने तैयार की थी जमीन

दिल्ली दंगा के बाद पीड़ित जगहों का दौरा करने वाली कई संस्थाओं ने दावा किया था कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में कई इलाकों में जानबूझकर हिंदू-मुस्लिम मोहल्ले की सीमा पर रणनीतिक तौर पर सीएए विरोधी प्रदर्शन के टेंट लगाए गए थे.  क्योंकि सीएए लागू होने के बाद नागरिकता गंवाने और उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजने की अफवाह फैलाकर कट्टरपंथियों ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय को भड़काया था. 

हेट स्पीच का आलम यह था कि हिंदुओं को इलाके से भगाने और डेमोग्राफी बदलने की बेवकूफाना तकरीरें की जा रही थी. दूसरी ओर चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं की ओर से सीएए के पक्ष में और विरोध प्रदर्शन करने वालों के लेकर दिए गए भाषणों के टुकड़ों का भी इस्तेमाल किया जा रहा था. आइए, सबसे पहले जानते हैं कि सीएए क्या है? 

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2019 या सीएए क्या है 

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को राज्यसभा ने इसे 11 दिसंबर 2019 को और लोकसभा ने 9 दिसंबर 2019 को पास किया था. नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने के लिए पहले 2016 में भी लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पहले पेश किया गया था. तब विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था. उसकी रिपोर्ट  7 जनवरी, 2019 को पेश की गई थी. 8 जनवरी, 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया, लेकिन 16वीं लोकसभा के विघटन के कारण वह विधेयक स्वतः समाप्त हो गया. इस विधेयक को गृह मंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर 2019 को 17वीं लोकसभा में फिर से पेश किया था. 

दोनों सदनों से पास होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन गया. इस अधिनियम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के पीड़ितों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है. इस कानून का मकसद किसी नागरिक की नागरिकता छीनना नहीं, बल्कि पड़ोसी देश के पीड़ितों को नागरिकता देना है.

सीएएए के खिलाफ संगठित प्रदर्शन का प्रमुख केंद्र बन गई थी दिल्ली

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर अफवाहों के बीच देश के कई हिस्से में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, लेकिन उनका सबसे बड़ा संगठित केंद्र दिल्ली ही बना. दिल्ली के करीब-करीब सभी मुस्लिम बहुल और मिली-जुली आबादी वाले इलाके में इसके लिए प्रदर्शन किए गए. इनमें जामिया नगर, निजामुद्दीन, दरियागंज वगैरह जगहों के प्रदर्शन को मिलाकर शाहीन बाग में नोएडा-दिल्ली सड़क जाम को ताकत देने की कोशिश की गई. 15 दिसंबर 2019 को शाहीन बाग में मुस्लिम समुदाय की महिलाएं धरने पर बैठ गईं. नोएडा और सरिता विहार को जोड़ने वाली मुख्य सड़क को जाम कर दिया गया. इस अनिश्चित कालीन सड़क जाम को केंद्र की मोदी सरकार की विरोधी सभी ताकतों का खुलकर समर्थन मिला.

शाहीन बाग प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी, सड़क जाम नहीं कर सकते

शाहीन बाग वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट को भी कहना पड़ा कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी सार्वजनिक सड़क को जाम नहीं कर सकते और न ही दूसरों के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं. पर ताकत के जरिए केंद्र सरकार को अपनी मांग मानने के लिए मजबूर करने की कोशिश में जामिया और दिल्ली गेट में हिंसक विरोध प्रदर्शन और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प सुर्खियों में रही. इसी दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग और जाफराबाद में  प्रदर्शनकारियों ने शाहीन बाग का तरीका अपनाया, लेकिन यहां सड़क जाम से स्थानीय लोगों में भारी गुस्सा पैदा हो गया.

उत्तर पूर्वी दिल्ली में तीन दिनों तक भड़के दंगे, पार्षद ताहिर हुसैन का घर बना सेंटर

इसके बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगे तीन दिनों तक जारी रहे. उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, मौजपुर, चांदबाग, खुरेजी खास, भजनपुरा, दयालपुर, गोकलपुरी, शिव विहार इत्यादि क्षेत्रों में भारी दंगे हुए. दंगों में दो पुलिसकर्मी आईबी अधिकारी अंकित शर्मा और दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल भी बेरहमी से मारे गए. दिल्ली पुलिस के डीसीपी को गोली मारी गई और सुरक्षाकर्मियों पर एसिड फेंका गया. घरों और स्कूलों पर पहले से निशान बनाकर हमले किए गए. चांद बाग इलाके में तत्कालीन आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन का घर दंगे का ऑपरेटिंग सेंटर बन गया था.

दिल्ली को दंगे की आग में झोंकने में कई संगठनों का नाम, पुलिस ने कोर्ट को क्या बताया

दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को बताया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहा प्रदर्शन स्वतंत्र आंदोलन नहीं था. पुलिस ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) शाहीन बाग समेत कई प्रदर्शनों के पीछे थे. दिल्ली में दंगा भड़काने में साजिश में और लोगों की भूमिका तय करने के लिए मामले की पुलिस जांच में इस बात के कई सबूत सामने आए हैं. यूएपीए के आरोपी मीरान हैदर, सफूरा जारगर, आसिफ इकबाल तन्हा और शिफा-उल-रहमान जामिया समन्वय समिति (जेसीसी) के सदस्य हैं. दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया कि जेसीसी लोगों को सड़क जाम करने और दंगों के लिए उकसाने के लिए जिम्मेदार थी.

जामिया समन्वय समिति की तरह  यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के कई एक्टिविस्ट गिरफ्तार

14 दिसंबर 2019 को जामिया के बाहर सीएए विरोधी प्रदर्शन के कारण 15 दिसंबर 2019 को परिसर में हिंसा भी हुई थी. क्योंकि पत्थरबाज विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में घुस गए थे. सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली की सड़कों पर हिंसा भड़काने में जामिया समन्वय समिति सबसे आगे थी. यूनाइटेड अगेंस्ट हेट संगठन के संस्थापक खालिद सैफी को दिल्ली दंगों के मामले में इशरत जहां और साबू अंसारी के साथ 26 फरवरी 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली के खुरेजी खास से गिरफ्तार किया गया था. 

पिंजरातोड़ ग्रुप और इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पीएफआई के कई मेंबर पकड़े गए

दंगों के जांच के दौरान नताशा नरवाल और देवांगना कलिता का नाम प्रमुखता से सामने आया. दोनों "पिंजरातोड़ ग्रुप" से हैं और जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास दंगे कराने की साजिश रचने में सक्रिय रूप से शामिल थीं. वे भी एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे और 'इंडिया अगेंस्ट हेट' ग्रुप और उमर खालिद से जुड़े पाए गए थे. पुलिस जांच के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कई पदाधिकारियों को भी गिरफ्तार किया गया था. यह एक ऐसा संगठन है जिस पर आतंक फैलाने, बम बनाने और अन्य देश-विरोधी गतिविधियों के आरोप हैं. पीएफआई का केरल में भीषण हिंसा का इतिहास रहा है. गृह मंत्रालय ने बाद में इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया था.

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