RSS Four Annual Meetings: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने सोमवार (2 सितंबर) को जाति जनगणना के लिए संगठन के समर्थन का साफ संकेत कर दिया. उन्होंने कहा कि "कल्याणकारी गतिविधियों, विशेष रूप से ऐसे समुदायों या जातियों को लक्षित करने वाली गतिविधियों के लिए डेटा इकट्ठा करना एक अच्छी तरह से स्थापित प्रथा है," लेकिन उन्होंने इसे "चुनावों के लिए राजनीतिक उपकरण" के रूप में इस्तेमाल किए जाने को लेकर आगाह भी किया.


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आरएसएस की चार महत्वपूर्ण वार्षिक बैठकों में क्या होता है? 


अंबेकर ने केरल के पलक्कड़ में आयोजित संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक के अंतिम दिन यह बात कही. इसलिए ये बातें फौरन सुर्खियों शामिल हो गई. समन्वय बैठक आरएसएस की चार महत्वपूर्ण वार्षिक बैठकों में से एक है. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि संघ साल भर में कौन सी चार अहम बैठकें करता है और इनमें क्या-क्या होता है.


समन्वय बैठक : आमतौर पर अगस्त-सितंबर में आयोजित होने वाली इस बैठक का मकसद संघ और उसके प्रमुख संगठनों के बीच समन्वय (शाब्दिक रूप से मेलजोल) करना और उनके बीच किसी भी टकराव से बचना है. इस बैठक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा खुला सत्र है, जिसमें आने वाले प्रतिनिधि देश भर के तमाम मुद्दों पर अपनी चिंताएं जाहिर करते हैं.


केरल के पलक्कड़ में हुई बैठक में राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भाजपा, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती, भारतीय मजदूर संघ संस्कार भारती, सेवा भारती, संस्कृत भारती, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, संघ के केंद्र कार्यकारी मंडल (केंद्रीय कार्यकारी समिति) के सदस्यों के अलावा 32 संगठनों के 230 प्रतिनिधियों की उपस्थिति तय की गई थी.


2014 के बाद से समन्वय बैठक की मीडिया में काफी चर्चा


भाजपा की ओर से बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और उनके उपाध्यक्ष शिव प्रकाश ने भाग लिया. साल 2014 में पार्टी के सत्ता में आने के बाद से संघ की समन्वय बैठक ने मीडिया में काफी दिलचस्पी पैदा की है. जैसे, आंध्र-कर्नाटक सीमा के मंत्रालयम गांव में आयोजित 2018 की बैठक में तत्कालीन भाजपा प्रमुख अमित शाह ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे संघ परिवार के प्रमुख वादों को पूरा करने में सरकार की विफलता के लिए आलोचना की थी. 


अगले साल के चुनावों में सत्ता में लौटने के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा उठाए गए पहले प्रमुख कदमों में से एक उस बेहद चर्चित धारा 370 को रद्द करना था, जो जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता था. इस वर्ष समन्वय बैठक पहली बार केरल में आयोजित की गई. पिछले साल की बैठक महाराष्ट्र के पुणे में हुई थी.


अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा : अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) बैठक आमतौर पर मार्च के पहले पखवाड़े में आयोजित की जाती है. यह संघ की सबसे बड़ी वार्षिक सभा है, जहां संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा की जाती है. भव्य रणनीति की योजना बनाई जाती है. पिछले वर्ष हुई संघ की गतिविधियों की समीक्षा की जाती है. इसके साथ ही बैठक के दौरान देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव रखे जाते हैं और मुद्दों को अपनाया जाता है.


2025 तक देश भर में कम से कम 1 लाख शाखाओं का लक्ष्य


उदाहरण के लिए, गुजरात के कर्णावती में आयोजित 2022 एबीपीएस में, आरएसएस ने 2025 तक देश भर में कम से कम 1 लाख शाखाएं (जमीनी स्तर की इकाइयां) खोलने का लक्ष्य रखा है. इस वर्ष नागपुर में आयोजित एबीपीएस में किए गए प्रजेंटेशन से पता चलता है कि आरएसएस वर्तमान में देशभर में 73,000 से अधिक शाखाओं का विशाल नेटवर्क है. एबीपीएस वह मंच भी है जहां मई-जून में आयोजित होने वाले संघ के वार्षिक प्रशिक्षण शिविरों (कार्यकर्ता विकास वर्ग और संघ शिक्षा वर्ग) की योजना बनाई जाती है और उन पर चर्चा की जाती है.


संघ के शीर्ष नीति-निर्धारण मंच एबीपीएस में 1,500 से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी देखी जाती है. इसमें देश के अधिकांश जिलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ विदेशों में काम करने वाले प्रचारक भी शामिल होते हैं. इन प्रतिनिधियों में से अधिकांश सक्रिय स्वयंसेवकों के अखिल भारतीय प्रतिनिधि (अखिल भारतीय प्रतिनिधि) हैं. एक प्रांतीय प्रतिनिधि (राज्य प्रतिनिधि) लगभग 50 सक्रिय स्वयंसेवकों का प्रतिनिधित्व करता है और अखिल भारतीय प्रतिनिधि 20 प्रांतीय प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करता है.


हर चार साल में एक बार नागपुर में RSS की एबीपीएस बैठक


अन्य प्रतिनिधियों में संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, क्षेत्र और प्रांत (राज्य) के कार्यकारी, एबीपीएस के सदस्य, सभी विभाग प्रचारक और आरएसएस से जुड़े कई संगठनों के कुछ पदाधिकारी शामिल हैं. विश्व हिंदू परिषद आम तौर पर लगभग 40 प्रतिनिधियों को भेजती है, जो आरएसएस से जुड़े संगठनों में सबसे अधिक है, हालांकि बैठक की संरचना निश्चित नहीं है. एबीपीएस देश भर के स्थानों में आयोजित किया जाता है. हर चार साल में एक बार आरएसएस की जन्मस्थली नागपुर में बैठक होती है.


प्रांत प्रचारक बैठक या जुलाई बैठक : प्रांत प्रचारक बैठक, जिसे आरएसएस हलकों में 'जुलाई बैठक' के नाम से अधिक जाना जाता है, आमतौर पर जुलाई के महीने में तीन दिनों के लिए आयोजित की जाती है. यह बैठक पूरी तरह से संगठनात्मक मुद्दों को सुलझाने के लिए है. संघ के वार्षिक प्रशिक्षण शिविरों के ठीक बाद और उसके गुरु दक्षिणा समारोह (वार्षिक कार्यक्रम जिसमें संघ संगठनात्मक खर्चों के लिए धन जुटाता है) से ठीक पहले होती है.


जुलाई बैठक में प्रांत प्रचारक और उससे ऊपर के 150 प्रतिनिधि


जुलाई बैठक में प्रांत प्रचारक और उससे ऊपर के स्तर के लोग उपस्थित होते हैं. प्रचारक वे स्वयंसेवक होते हैं जो आरएसएस के लिए बिना किसी मेहनताना के पूर्णकालिक काम करते हैं. बैठक में कुल लगभग 150 प्रतिनिधि शामिल होते हैं. आरएसएस पदाधिकारियों के स्थानांतरण और प्रमुख संगठनात्मक फेरबदल की घोषणा ज्यादातर इसी बैठक में और दिवाली बैठक के दौरान की जाती है. इस वर्ष की जुलाई बैठक रांची, झारखंड में आयोजित की गई थी. पिछले साल बैठक तमिलनाडु के उधगमंडलम (ऊटी) में हुई थी.


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केन्द्रीय कार्यकारी मंडल या दिवाली बैठक : केन्द्रीय कार्यकारी मंडल (केकेएम) का आयोजन आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में दीपावली के त्योहार के आसपास होता है. इसलिए ज्यादातर दिवाली बैठक कहा जाता है. इसमें आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व और इसके उपर्युक्त अनुषांगिक (फ्रंटल) संगठनों के प्रतिनिधियों सहित लगभग 300 प्रतिनिधि भाग लेते हैं. महत्वपूर्ण मुद्दों पर अधिकांश आरएसएस प्रस्तावों पर केकेएम और एबीपीएस के दौरान चर्चा की जाती है और पारित किया जाता है. 


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26 जनवरी, 1950 गणतंत्र दिवस को देश भर में सभी शाखाओं में उत्सव


उदाहरण के लिए, 1950 में नागपुर में आयोजित केकेएम में कई मुद्दों पर सात प्रस्ताव पारित किए गए. इसमें संकल्प 7 खास तौर पर दिलचस्प था. इसमें कहा गया था:  “26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र दिवस को देश भर में संघ की सभी शाखाओं में एक उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए, जो देश की सरकार के साथ ब्रिटिश ताज के सभी संबंधों को तोड़ने का दिन है. संघ के तत्वावधान में उचित बैठकें होनी चाहिए और समारोह में राष्ट्रीय ध्वज फहराना और सलामी देना, अवसर के अनुरूप भाषण और अंत में 'वंदे-मातरम' शामिल होना चाहिए.'' 


उस समय, यह बैठक जनवरी की शुरुआत में आयोजित की गई थी. पिछले साल गुजरात के भुज में आयोजित दिवाली बैठक में कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ.


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