पर्दानशीं को बेपर्दा ना कर दूं तो अकबर मेरा नाम नहीं है..
मनमोहन देसाई की एक सुपरहिट फिल्म है.. अमर अकबर एंथनी. उसमें आनंद बख्शी का लिखा एक गीत है. ये लाइन उसी गीत की है. इस लाइन के माध्यम से एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के चेहरे से पर्दा हटाने की बात कर रहा है. लेकिन फिल्म की तस्वीर से इतर इस बेपर्दा के राजनीतिक और धार्मिक मायने भी हैं, जो दुनियाभर में आए दिन कई बार चर्चा में रहते हैं, जिसे लोग पर्दा, घूंघट, हिजाब और बुर्का इत्यादि के नाम से जानते हैं. इसी कड़ी में हिजाब और बुर्का एक बार फिर चर्चा में आ गया है. हुआ यह कि ताजिकिस्तान ने हिजाब पर बैन लगा दिया साथ ही देश में ईद के त्योहार पर ईदी को भी बैन कर दिया है. वहां के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान ने हिजाब को ‘विदेशी पोशाक’ बता दिया है. 


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यह तब हुआ जबकि ताजिकिस्तान मुस्लिम बाहुल्य देश है और यहां की 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है. इस बैन के साथ एक बार फिर से इसे लेकर बहस छिड़ गई है. इसी कड़ी में आइए जानते हैं कि आखिर हिजाब बैन की शुरुआत कहां से हुई और ये अभी किन किन देशों में बैन है. असल में वैसे तो तमाम देशों में हिजाब नहीं पहना जाता है लेकिन कई जगहों पर ये आधिकारिक तौर पर बैन है. 


शुरुआत कुछ यूं हुई थी


पहले तो ये समझते हैं कि हिजाब पर प्रतिबंध की शुरुआत कब और कैसे हुई. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक हिजाब पर प्रतिबंध की शुरुआत 8वीं शताब्दी में अरब खलीफाट में हुई थी, जब कुछ विद्वानों ने तर्क दिया कि महिलाओं को अपनी सुंदरता को छिपाने के लिए अपना चेहरा और शरीर ढंकना चाहिए. समय के साथ, यह प्रथा पूरे मुस्लिम दुनिया में फैल गई, लेकिन इसकी व्याख्या और प्रवर्तन अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में भिन्न रहा है. हालांकि बैन की शुरुआत को लेकर विद्वानों के अलग मत भी हैं. इसलिए इस बात को दिमाग में रखा जाना चाहिए.


प्रतिबंध या बैन एक जटिल मुद्दा तो है..


वैसे यह बात भी सही है कि हिजाब पर प्रतिबंध एक जटिल मुद्दा है जिसमें धार्मिक विश्वास, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियां और ऐतिहासिक संदर्भ शामिल हैं. यह समझने के लिए कि किसी विशेष देश में हिजाब पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया है, उस देश के विशिष्ट संदर्भ और इतिहास पर विचार करना महत्वपूर्ण है. लेकिन फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जहां पर इस पर बैन लगा हुआ है. 


मुस्लिम देशों में प्रतिबंध


कई मुस्लिम देशों में भी हिजाब पर प्रतिबंध है, लेकिन ये प्रतिबंध पूर्ण प्रतिबंध के बजाय अधिक आंशिक हैं


  • तुर्की: सार्वजनिक संस्थानों, जैसे विश्वविद्यालयों और सरकारी कार्यालयों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है.

  • मिस्र: सरकारी स्कूलों में छात्राओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य है, लेकिन विश्वविद्यालयों में यह वैकल्पिक है.

  • मोरक्को: कुछ सार्वजनिक स्थानों, जैसे कि रेस्तरां और बार में, हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है.

  • अजरबैजान: सेना और पुलिस में हिजाब पर प्रतिबंध है.


इन मुस्लिम देशों में बैन के फैसलों पर कई बवाल भी देखने को मिले हैं. यहां तक कि कई बार नियमों में बदलाव भी किए गए हैं. इसके अलावा तमाम गैर-मुस्लिम देशों में भी बैन हैं. कई पूर्ण बैन है तो कहीं आंशिक बैन है.


फ्रांस: फ्रांस यूरोप का ऐसा पहला देश है, जहां पर सबसे पहले 2004 में स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2011 में फ्रांस सार्वजनिक स्थानों पर पूरे चेहरे को ढकने वाले इस्लामी नकाबों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला यूरोपीय देश बना था.
बेल्जियम: पूरा चेहरा ढकने पर जुलाई 2011 में ही प्रतिबंध लगा दिया गया था.
बुल्गारिया: बुल्गारिया में हिजाब पहनना गैरकानूनी माना जाता है. बुल्गारिया सरकार द्वारा आतंकी गतिविधियों को देखते हुए सुरक्षा के उद्देश्य से यह नियम बनाया गया है.
नीदरलैंड्स: नवंबर 2016 में स्कूल-अस्पतालों जैसे सार्वजनिक स्थलों और परिवहन में प्रतिबंध.
इटली: कुछ शहरों में चेहरा ढकने वाले नक़ाबों पर प्रतिबंध है. 


इनके अलावा वर्तमान में स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे, स्पेन, बुल्गेरिया, ब्रिटेन, इटली, श्रीलंका, अफ़्रीका, रूस जैसे देशों में हिजाब और चेहरा ढकना आंशिक या पूर्ण वर्जित है. 


हिजाब/बुर्का और महिला अधिकार: तर्कों का विश्लेषण


हिजाब और बुर्का, मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान, महिला अधिकारों के जटिल मुद्दे से जुड़े हुए हैं. इस विषय पर बहस में कई पहलू और तर्क शामिल हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:


पक्ष में तर्क:
धार्मिक स्वतंत्रता: कुछ महिलाएं हिजाब/बुर्का को अपनी धार्मिक आस्था का प्रतीक मानती हैं और इसे पहनने का अधिकार चाहती हैं. उनका मानना ​​है कि यह प्रतिबंध उनके धार्मिक अभ्यासों पर अनुचित प्रतिबंध है.


गोपनीयता: हिजाब को महिलाओं के शरीर को ढंकने और उन्हें अवांछित पुरुष ध्यान से बचाने का एक तरीका माना जाता है. यह महिलाओं को अपनी शर्तों पर सामाजिक रूप से भाग लेने और पुरुषों द्वारा वस्तुबद्ध होने से बचने में मदद करता है. ऐसा उनका तर्क है. कुछ महिलाएं स्वतंत्र रूप से हिजाब/बुर्का पहनने का विकल्प चुनती हैं. वे इसे अपनी पहचान और संस्कृति का प्रतीक मान सकती हैं और इसे पहनकर सशक्त महसूस कर सकती हैं.


विपक्ष में तर्क:
महिलाओं का दमन: कुछ लोगों का तर्क है कि हिजाब/बुर्का महिलाओं को नियंत्रित करने और उनके अधिकारों को सीमित करने का एक साधन है. वे तर्क देते हैं कि यह महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी से रोक सकता है.


लैंगिक असमानता: कुछ लोग हिजाब बुर्का को लैंगिक असमानता का प्रतीक मानते हैं, जो महिलाओं को पुरुषों से कमजोर या अधीनस्थ दर्शाता है. यह लैंगिक रूढ़ियों को मजबूत कर सकता है और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है.


पसंद पर प्रश्न चिह्न: कुछ मामलों में, यह सवाल उठाया जाता है कि क्या महिलाएं वास्तव में स्वतंत्र रूप से हिजाब/बुर्का पहनने का विकल्प चुनती हैं. सामाजिक दबाव, परिवार से डर या हिंसा का खतरा उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर सकता है.


कुल मिलाकर जो भी है लेकिन ये बात तथ्य है कि हिजाब और बुर्का मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान हैं और ये महिला अधिकारों के जटिल मुद्दे से जुड़े हुए हैं. इस विषय पर बहस में कई पहलू और तर्क शामिल हैं, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों तरह के तर्क हैं.