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नई दिल्लीः चुनावी नतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के बारे में क्या बताते हैं. इस बार समाजवादी पार्टी का उसके इतिहास में सबसे ज्यादा 32.1 प्रतिशत वोट मिले है. वर्ष 2012 में जब समाजवादी पार्टी की UP में सरकार बनी थी, तब उसे लगभग 29 प्रतिशत वोट ही मिले थे. यानी 2012 के मुकाबले 3 प्रतिशत ज्यादा वोट हासिल करके भी अखिलेश यादव चुनाव हार गए. इस हार का सबसे बड़ा कारण ये रहा कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का उतना ही साथ मिला, जितना रशिया के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन को NATO का साथ मिल रहा है.
पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग हुई थी, उनमें से आधी से ज्यादा सीटों पर जाट वोट निर्णायक थे. अखिलेश यादव और जयंत चौधरी को लग रहा था कि ये वोट उन्हें ही मिलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि बीजेपी ने इस चरण में 2017 से भी अच्छा प्रदर्शन किया. जाटलैंड में उसका वोट शेयर 2017 के मुकाबले 3 प्रतिशत तक बढ़ गया.
जबकि समाजवादी पार्टी के वोट शेयर में केवल डेढ़ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. उत्तर प्रदेश में 24 जिले ऐसे हैं, जहां जाट समुदाय का असर है. इनमें से 18 जिलों में बीजेपी को शानदार जीत मिली है. दूसरी बात, इस बार उत्तर प्रदेश में 49 सीटें ऐसी रहीं, जहां हार-जीत का अंतर 5 हजार वोटों से भी कम का था. इन 49 सीटों में 25 सीटों पर समाजवादी पार्टी की हार हुई है.
इसके अलावा अखिलेश यादव की हार का एक कारण मायावती भी हैं. बीएसपी को भले इस बार सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है. लेकिन राज्य में 233 सीटें ऐसी हैं, जहां उसने हार और जीत को प्रभावित किया है. इनमें 137 सीटों पर.. जहां अखिलेश यादव और उनके सहयोगी दलों की हार हुई, वहां हार का अंतर, बीएसपी को मिले वोटों से कम है. आप कह सकते हैं कि मायावती का हाथी सड़क घेर कर चल रहा था और उसने अखिलेश यादव की साइकिल को इन सीटों पर आगे निकलने ही नहीं दिया.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में इस बार ऐसी सीटों की संख्या 22 रही, जहां हार-जीत का अंतर, NOTA को मिले वोटों से भी कम है. इनमें 13 सीटों पर समाजवादी पार्टी की हार हुई. 7 पर बीजेपी की और एक पर राष्ट्रीय लोक दल की हार हुई. जैसे बिलासपुर सीट पर बीजेपी के बदलदेव सिंह ने समाजवादी पार्टी के अमरजीत सिंह को 307 वोटों से हराया है. जबकि NOTA को यहां 1 हजार 197 वोट मिले हैं.