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Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1971 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वही साल है जब दुनिया भारत की ताकत को देख हैरान थी. इसी साल भारत ने मजबूत राजनीति और दमदार कूटनीति के दम पर पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. ये वही साल है जब पहली बार ताजमहल को पूरी तरह से ढक दिया गया था. इसी साल एक हाथी की मदद से भारत ने इग्लैंड के खिलाफ अपना पहला मैच जीता था. आइये आपको बताते हैं साल 1971 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
भारत के लिए आधी दुनिया से लड़ा रूस
भारत और रूस का रिश्ता शुरू से ही काफी दोस्ताना रहा है. रूस ने हमेशा भारत का साथ उसके सुख और दुख में दिया है. 1971 में जब भारत-पाकिस्तान के युद्ध में UK, फ्रांस, UAE, टर्की, इंडोनेशिया, चीन और अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद के लिए दोनों हाथ खोल दिए थे. तब रूस ही वो देश था जिसने समुद्र में अमेरिका और ब्रिटेन के युद्ध पोतों को भारत पर हमला करने से रोका था. भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के करीब तैनात अपने नौसेना के सातवें बेड़े को पाकिस्तान की मदद करने के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिया था. अमेरिकी नौसेना का सातंवा बेड़ा विश्व के खतरनाक बेड़ो में से एक था. दुनिया के सबसे शक्तिशाली नौसैनिक बेड़ों में से एक माना जाता था. यूएसएस एंटरप्राइज नाम का ये बेड़ा एक बार के ईंधन से दुनिया का चक्कर लगा सकता था. अमेरिकी नौसेना का सातंवा बेड़ा भारत के युद्धपोत आईएनएस विक्रांत से 5 गुना बड़ा था. इंदिरा गांधी को जब ये बात पता चली थी कि अमेरिका युद्ध में पाकिस्तान की मदद कर रहा है तो उन्होंने रूस के विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको से मदद मांगी. जिसके तुंरत बाद रूस ने अपने परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी और विध्वंसक जहाजों को यूएसएस एंटरप्राइज के सामने खड़ा कर दिया. ताकि भारत का कोई बाल भी बांका ना कर सके. रूस के जंगी जहाज को देखने के बाद अमेरिका बंगाल की खाड़ी में पीछे हटने लगा था.
300 महिलाओं की विजयगाथा
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना की तरह ही देश की महिलाओं ने भी अपना जज्बा दिखाया था. युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से नष्ट की गई भारतीय वायु सेना की भुज हवाई पट्टी की भारतीय वीरांगनाओं ने 72 घंटों के भीतर मरम्मत की थी. भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कच्छ सीमा पर दुश्मन देश के विमान लगातर बम बरसा रहे थे. 8 दिसम्बर 1971 के दिन पाकिस्तान ने भुज हवाई पट्टी पर 18 बम गिराए जिस कारण भुज की हवाई पट्टी नष्ट हो गई थी. उस वक्त युद्ध की स्थिति को देखते हुए वायुसेना के लड़ाकू विमानों की उड़ान के लिए हवाई पट्टी को जल्द से जल्द ठीक करना था. तब कच्छ के गांव माधापार की करीब 300 महिलाएं आगे आईं और उन्होंने हवाई पट्टी को 72 घंटे में ठीक करने का जिम्मा अपने कंधों पर लिया. ये महिलाएं दिन-रात हवाई पट्टी की मरम्मत का काम करती रहीं. जब भी पाकिस्तानी सेना का विमान ऊपर से गुजरता तो ये महिलाए सुंरग में छिप जातीं. रात को लालटेन की हल्की रोशनी में हवाई पट्टी की मरम्मत करतीं, ताकि किसी को पता ना चले. इन महिलाओं के साहस की वजह से ही उस वक्त 72 घंटे में हवाई पट्टी तैयार हुई थी जिसके बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की धरती का नक्शा बदल दिया था.
भारतीय सेना ने तोड़ा अपना ही पुल
फिरोजपुर भारत-पाक सरहद पर बसा हुआ ऐतिहासिक शहर है, जहां देश की आजादी से पहले शहीद-ए-आजम भगत सिंह अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ गुप्त बैठकें करते थे. 1971 की भारत-पाक जंग से पहले फिरोजपुर खुशहाल शहर था. यहां तक की भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार भी फिरोजपुर में बने हुसैनीवाला पुल के जरिए होता था. 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने भारतीय सेना का ध्यान भटकाने के लिए हुसैनीवाला पुल के जरिए फिरोजपुर में घुसने की कोशिश की. पाकिस्तानी सेना तोप, टैंक, बख्तर बंद गाड़ियां और गोला बारूद के साथ पुल पर आगे बढ़ ही रही थी. तभी भारतीय सेना ने उसे रोकने के लिए हुसैनीवाला पुल को ही बम से उड़ा दिया था. जिससे पाकिस्तानी सेना का काफी नुकसान हुआ था.
राजा-डाकू ने किया पाकिस्तान के 100 गांवों पर कब्जा
1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक चला. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पूरे युद्ध का ऐतिहासिक दिन 7 दिसंबर का था. जब एक राजा और डाकू ने मिलकर पकिस्तान के सिंध पर भारत का कब्जा जमाया था. जयपुर के महाराजा महावीर चक्र विजेता सवाई भवानी सिंह जो कि उस समय 10 पेरा बटालियन के लेफ्टिनेंट कर्नल थे और सिंध का कुख्यात डकैत बलवंत सिंह बाखासर ने मिलकर सिंध के 100 गावों पर कब्जा कर लिया था. भारत-पाक युद्ध के दौरान लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह ने डकैत बलवंत सिंह को एक बटालियन व 4 जोंगा जीप दे दी. जिसकी मदद से डकैत बलवंत सिंह अपनी बटालियन के साथ पाकिस्तान में घुसा. उनके पीछे लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह भी पाकिस्तान की ओर बढ़ने लगे. कहा जाता है कि सुबह होने से पहले डकैट बलवंत सिंह और लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह ने पाकिस्तान की छाछारो चौकी के अलावा 100 गांवों पर भी कब्जा जमा लिया. वहां पर शासन करने की योजना तक बना ली. युद्ध के बाद भारत सरकार ने डाकू बलवंत सिंह पर दर्ज सभी मुकदमे वापिस ले लिए. इसके अलावा उन्हें राष्ट्रभक्त की उपाधि देते हुए, दो हथियारों का ऑल इंडिया लाइसेंस भी प्रदान किया गया था. हालांकि युद्ध समाप्ति के बाद हुए एक समझौते के तहत भारत ने पाकिस्तान को सिंध वापिस कर दिया था.
पाकिस्तानी मेजर ने किया भारतीय जनरल का ऑपरेशन
मेजर जनरल इयान कार्डोजो एक ऐसे आर्मी मैन थे, जिनकी बहादुरी की कहानी अद्भुत अद्वितीय और अकल्पनीय है. 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में लड़ते हुए उनका एक पैर लैंडमाइन ब्लास्ट में बुरी तरह जख्मी हो गया था. उस वक्त इलाज ना मिलने और पैर से शरीर में इन्फेक्शन फैलने की वजह से मेजर जनरल इयान कार्डोजो ने खुद अपना पैर खुखरी से काटकर शरीर से अलग कर दिया था. गोरखा रेजीमेंट के मेजर कार्डोजो ने लड़ाई में अपना पैर गंवाने के बाद भी जीवन में कभी हार नहीं मानी, एक इंटरव्यू में मेजर कार्डोजो ने बताया कि पाकिस्तानी लैंडमाइन ब्लास्ट के दौरान मेरा एक पैर उड़ गया. मेरे साथी मुझे उठाकर पलटन में ले गए. मॉरफिन और कोई दर्द निवारक दवा नहीं मिली. मैंने अपने गुरखा साथी से बोला कि खुखरी लाकर पैर काट दो, लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हुआ. फिर मैंने खुखरी मांगकर खुद अपना पैर काट लिया. हमने उस कटे पैर को वहीं जमीन में गाड़ दिया था. पैर कट जाने पर मेजर कार्डोजो का काफी खून बह गया था जिस कारण उनमें खून की कमी हो गई थी. उस वक्त पाकिस्तान के एक युद्धबंदी सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर को उनका ऑपरेशन करने का आदेश दिया गया. पहले तो मेजर कार्डोजो ने ऑपरेशन कराने से मना कर दिया और कहा कि चाहे मैं मर क्यों ना जाऊं, लेकिन मैं किसी भी पाकिस्तानी का खून नहीं लूंगा और ना ही उससे अपना इलाज कराउंगा. लेकिन बाद में पता चला कि भारतीय सेना के पास कोई हेलिकॉप्टर उपलब्ध नहीं है जिस कारण पाकिस्तानी मेजर बशीर से ही मेजर कार्डोजो को अपना ऑपरेशन करवाना पड़ा, जो सफल रहा.
जनरल जो पीएम इंदिरा गांधी को कहते थे स्वीटी
भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की शख्सियत ऐसी थी कि किसी से भी आंखे मिलाकर उसके वजूद को झकझोर देते थे. चेहरे पर रौबिली मूंछ और हाजिरजवाब मानेकशॉ इकलौते शख्श थे जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को स्वीटी या स्वीट गर्ल कहने की हिमाकत कर सकते थे. जब 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की तैयारियों को लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से पूछा था कि क्या लड़ाई की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं? इस पर मानेकशॉ ने तुंरत जवाब दिया था कि ‘I am always ready Sweety’... उस दौर में जब इंदिरा गांधी से लोग खौफ खाते थे तब सैम इंदिरा को बड़ी बेबाकी से जवाब देते थे. 1971 के युद्ध के दौरान जंग के मैदान में जनरल मानेकशॉ को सात गोलियां लगीं, जिसके बाद उन्हें मिलिट्री हॉस्पिटल ले जाया गया. वहां डॉक्टर ने उनसे पूछा कि क्या हुआ है? तब मानेकशॉ ने हसंते हुए जवाब दिया कि अरे कुछ नहीं, एक गधे ने लात मार दी. मानेकशॉ भारतीय सेना के अध्यक्ष थे और उनकी ही अगुवाई में भारतीय सेना ने सिर्फ 13 दिनों में ही पाकिस्तान को जंग के मैदान में धूल चटा दी थी. इस युद्ध के बाद ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था.
15 दिन के लिए ढक दिया गया ताजमहल
पाक वायु सेना के हवाई हमलों के चलते पूरे देश में ब्लैक आउट घोषित कर दिया गया था. फिर भी संगमरमर से बना ताजमहल तब भी रात में दमक रहा था. ऐसे में ये खतरा बना हुआ था कि पाकिस्तानी वायु सेना के लड़ाकू विमान ताजमहल को अपना निशाना ना बनाएंगे. इसे ध्यान में रखकर ताजमहल की सुरक्षा के लिए आनन-फानन में तैयारी शुरू की गई. ताजमहल की मुख्य गुंबद और चारों मीनारों को काले रंग के कपड़े से ढक दिया गया. इसके अलावा, मुख्य गुंबद के चारों तरफ लकड़ी की बल्लियों को बांधकर काले रंग के कपड़ों को नीचे लटकाया गया. गुंबद और नीचे की फर्श को पेड़ों की पत्तियों और घास से ढक दिया गया, जिससे दुश्मन को ताजमहल का कोई भी हिस्सा न दिख सके. 15 दिन के लिए ताजमहल बंद कर दिया गया. कहा जाता है कि इसके बाद भी पाक ने ताजमहल को निशाना बनाते हुए एक बम गिराया था. लेकिन वो ताज पर गिरने के बजाय यमुना नदी की रेत में गिरा था. इस तरह से ताजमहल पाकिस्तानी बम का निशाना बनने से बच गया था.
हाथी ने जिताया इग्लैंड के खिलाफ पहला क्रिकेट मैच
आजाद भारत में इंग्लैंड के खिलाफ पहली बार 1971 में भारत ने टेस्ट क्रिकेट मैच जीता. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जीत का सेहरा बंधा था एक हाथी के सिर पर. इंग्लैंड के ओवल ग्राउंड में मैच के वक्त एक भारतीय फैन इग्लैंड के चेसिंगटन चिड़ियाघर से बेला नाम के एक हाथी को लेकर आया. जिसने तत्कालीन इंडियन टीम कैप्टन अजीत वाडेकर की तरफ सूंड उठाकर उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया. क्रिकेटर फारुख इंजीनियर की माने तो क्रिकेट ग्रांउड पर बेला नाम के इस हाथी ने पहले एक चक्कर लगाया और फिर अजीत वाडेकर की तरफ बढ़ा और उसे देखकर अपनी सूंड उठा दी. कहा जाता है कि उस वक्त गणेशोत्सव चल रहा था और गणेशोत्सव के मौके पर भारतीय हाथी को शुभ मानते थे. इसलिए बेला को भी उस वक्त लकी माना गया. जिसका परिणाम ये हुआ कि भारत पहली बार इग्लैंड से टेस्ट मैच में जीता वो भी उसी की धरती पर.
युद्ध का बेजुबान हीरो 'पेडोगी'
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक ऐसा बेजुबान हीरो था जिसे भारतीय सेना ने वीर चक्र से नवाजा था. ये था सेना का एक खच्चर जिसका नाम था 'पेडोंगी'. पेडोंगी की यूनिट, 853वीं ASC यानी एंटी-एनिमल ट्रासपोर्ट कंपनी थी. इस युनिट में खच्चरों को कई तरह की ट्रेनिंग दी जाती थी. ये खच्चर उन पहाड़ी और दूसरे इलाकों तक सैनिकों को रसद, राशन और हथियार पहुंचाते हैं जहां पर सड़क या वाहन से जाना संभव ना हो. यहां तक की छोटी तोप तक ये खच्चर अपनी पीठ पर उठाकर 15-20 हजार फीट की ऊंचाई तक ले जाते हैं. खच्चर को इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है कि ये कहीं भी हो लेकिन वापस अपनी यूनिट में लौट आते हैं. युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने पेडोगी की यूनिट पर हमला कर दिया था. अचानक हुए हमले से पूरी कंपनी तितर-बितर हो गई. एक दिन चली इस लड़ाई में पेडोगी की यूनिट ने पाकिस्तान के हमले का करारा जवाब दिया. जिसके बाद पाकिस्तानी सेना उल्टे पांव पीछे होने लगी. अगले दिन जब खच्चरों की गिनती होने लगी तो उसमें 3 खच्चर कम पाए गए जिसमें से एक पडोगी भी था. युद्ध के करीब 10 दिन बाद पेडोगी LOC पार कर वापस अपनी यूनिट लौट आया. उस वक्त उसकी पीठ पर एक पाकिस्तानी MMG यानि मीडियम मशीन गन और दो एम्युनिशेन बॉक्स भी थी. उसकी थकान को देखकर उसके हैंडलर्स को ये समझने में देर नहीं लगी कि वो कम से कम 20 किलोमीटर चलकर भारतीय सीमा में लौटा है. पेडोगी कि इस वफादरी को देखते हुए सेना ने उसे वीर चक्र से नवाजा.
चीलों ने की मेहरानगढ़ किले की रक्षा
1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान की सेना ने सबसे पहले जोधपुर शहर को ही अपना टारगेट बनाया था. जिसमें पाकिस्तानी एयर फोर्स ने जोधपुर शहर में स्थित मेहरानगढ़ किले पर बम गिराए थे. लेकिन ऐसी मान्यता है कि वहां स्थित माता चामुंडा देवी मंदिर के आशीर्वाद से मेहरानगढ़ किले पर सिर्फ एक ही बम विस्फोट हुआ था जिससे कोई क्षति नही हुई थी. कहा जाता है कि मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित चामुंडा मंदिर की मूर्ति जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 559 साल विक्रम संवत 1517 में मंडोर से लाकर स्थापित की थी. उस वक्त, राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी, तब तक दुर्ग पर किसी भी प्रकार की कोई विपत्ति नहीं आएगी. जब पाकिस्तान की ऐयरफोर्स ने मेहरानगढ़ किले पर बम बरसाए थे तो उस वक्त भी चीलें किले पर मंडरा रही थीं. जिस वजह से किले को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था.
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