यहां उठती है गर्भवतियों और बीमारों की डोली! सरकार ने नहीं सुनी तो खुद फावड़ा लेकर सड़क बनाने लगे गांववाले
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यहां उठती है गर्भवतियों और बीमारों की डोली! सरकार ने नहीं सुनी तो खुद फावड़ा लेकर सड़क बनाने लगे गांववाले

Tribals Building Road In Andhra Pradesh: आंध्र प्रदेश के ASR जिले में कई गांवों तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है. प्रसूताओं और बीमारों को आदिवासी डोलियों में लादकर अस्पताल पहुंचते हैं.

यहां उठती है गर्भवतियों और बीमारों की डोली! सरकार ने नहीं सुनी तो खुद फावड़ा लेकर सड़क बनाने लगे गांववाले

Andhra Pradesh News: ऊपर लगा फोटो किसी गांव में मनरेगा के तहत चल रहे काम का नहीं है. न ही ये लोग किसी अन्य सरकारी योजना के तहत जंगल के बीचो-बीच खुदाई में जुटे हैं. इनका मकसद है करीब 8 किलोमीटर लंबी सड़क बनाना. तस्वीर में दिख रहे सभी लोग आदिवासी हैं और आसपास के गांवों से आते हैं. जगह है आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) जिले के के अनंतगिरी मंडल की रोमपल्ले पंचायत.

बुरुगा, चाइना कोनेला और कुछ अन्य गांवों में रहने वाले आदिवासी लंबे अरसे से परेशान हैं. भारत को स्वतंत्रता हासिल किए सात दशक से ज्यादा हो चुके हैं. विकास के तमाम दावों के बावजूद, इन गांवों तक सड़क तक नहीं पहुंची. कभी कोई बीमार पड़ जाए या इमरजेंसी हो तो पैदल ही जाना पड़ता है. नजदीकी पक्की रोड 10 से 12 किलोमीटर दूर है.

कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे पुरुष और महिलाएं

सड़क के लिए गांववालों ने हर दरवाजा खटखटाया. स्थानीय प्रशासन से लेकर ऊपर तक बात पहुंचाई लेकिन गुहार अनसुनी कर दी गई. फिर गांववालों ने तय किया कि खुद ही सड़क बनाएंगे. 'श्रमदान' से विजयनगरम जिले के मेंटाडा मंडल के बुरुगा से वोनिजा गांव तक लगभग 8 किलोमीटर लंबी सड़क बनाना शुरू कर दिया गया है. 100 से भी ज्यादा आदिवासी जिनमें महिलाएं भी शामिल रहती हैं, रोज करीब चार घंटे काम करते हैं. उन्होंने करीब सवा किलोमीटर जमीन समतल कर ली है.

अप्रैल का वो वाकया

करीब दो महीने पहले की एक घटना शायद ही आपको याद हो. सारा कोथैया नाम के आदिवासी को अपने ढाई साल के बेटे ईश्वर राव का शव 8 किलोमीटर तक कंधे पर उठाकर गांव पहुंचना पड़ा था. राव की अप्रैल 2024 में एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी. गांव तक सड़क नहीं बनी थी तो एम्बुलेंस वोनिजा से चाइना कोनेला तक नहीं पहुंच सकी थी.

किसी ने नहीं समझा आदिवासियों का दर्द

सड़क न होने की वजह से आदिवासियों को 10-12 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है. गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को डोली में बिठाकर नजदीकी सड़क तक लाया जाता है. वहां से कोई एंबुलेंस उन्हें अस्पताल पहुंचाती है. दशकों से इस इलाके का यही हाल है. मांग, गुहार, मनुहार बार-बार हुई लेकिन किसी जिम्मेदार के कान पर जूं नहीं रेंगी.

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'काम होगा... हो जाएगा... बोलकर टरकाते रहे'

दो आदिवासी बस्तियों के मूल निवासी बुरुगा पेंटैया, सोमुला येरैया, सोमुला कोथैया और सोमुला अप्पाला राजू ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात की. उनके मुताबिक, 'अधिकारी और जनप्रतिनिधि कह रहे हैं कि सड़क का काम शुरू किया जाएगा, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. समस्या से परेशान होकर हमने खुद ही अपने गांवों तक सड़क बनाना शुरू कर दिया है... अगस्त के पहले सप्ताह तक श्रमदान से काम पूरा कर लेंगे.'

स्थानीय अधिकारियों ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने सड़क के लिए एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं. हालांकि, CPM नेता गोविंद राव का कहना है कि अब तक कुछ नहीं किया गया. राव के मुताबिक, आदिवासी कल्याण विभाग के अधिकारी बुरुगा और वोनिजा के बीच सड़क बनाने में नाकाम रहे.

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