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नई दिल्ली: साउथ अफ्रिका (South Africa) के एक क्रिकेटर हैं, जिनका नाम है क्विंटन डिकॉक (Quinton Decock). आपको याद होगा, जब T-20 World Cup शुरू हुआ था तो इसमें हिस्सा ले रही सभी टीमों के खिलाड़ियों ने Kneel Down करके यानी अपने घुटनों पर बैठकर अमेरिका में चल रहेर 'ब्लैक लाइव्स मैटर' कैंपेन (Black Lives Matter Campaign) के प्रति समर्थन जताया था. अमेरिका में ये आंदोलन नस्लभेद के खिलाफ चल रहा है लेकिन डिकॉक ने Kneel Down करने से इनकार कर दिया तो साउथ अफ्रीका के क्रिकेट बोर्ड ने उनके विचारों का सम्मान नहीं किया बल्कि इस खिलाड़ी को इस विरोध की सजा टीम से बाहर होकर चुकानी पड़ी.
पिछले साल साउथ अफ्रीका के क्रिकेट बोर्ड ने ये कहा था कि खिलाड़ियों को इस कैंपेन का समर्थन करने के लिए Kneel Down करना जरूरी नहीं. वो अपने दिल पर हाथ रख कर भी समर्पण और एकजुटता दिखा सकते हैं लेकिन World Cup से पहले ये फैसला वापस ले लिया गया और टीम के खिलाड़ियों को जबरदस्ती घुटनों पर बैठने के लिए मजबूर किया गया. अब सवाल ये है कि क्या एक खिलाड़ी को अपनी बात कहने का भी हक नहीं है? क्या वो ये फैसला भी नहीं ले सकता कि वो किस कैंपेन को समर्थन देगा और किस को नहीं.
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क्या ये असहिष्णुता नहीं?
जबकि साउथ अफ्रीका वही देश है, जिस पर नस्लभेद के लिए ICC ने 21 वर्षों का प्रतिबंध लगा दिया था. वर्ष 1992 में जब नेल्सन मंडेला की जेल से रिहाई हुई तो ICC ने ये सोचते हुए इस प्रतिबंध को खत्म कर दिया कि अब साउथ अफ्रीका बदल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछले 30 वर्षों से साउथ अफ्रीका की क्रिकेट टीम का कप्तान अश्वेत नहीं था. लेकिन एक खिलाड़ी को नस्लभेद के खिलाफ चल रहे इस कैंपेन के समर्थन में Kneel Down करने से मना कर दिया तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ी.