पूरी दुनिया में इस्लाम (Islam) का एक बिजनेस मॉडल चल रहा है. यह मॉडल गुरुग्राम से लेकर दुबई में चल रहे टी-20 वर्ल्ड कप तक में देखा जा सकता है.
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नई दिल्ली: आप सबको पाकिस्तान (Pakistan) के हाथों भारत के हारने का दुख तो बहुत होगा. लेकिन इससे दो बड़े फायदे हुए हैं. पहला ये कि एक ही रात में ये पता चल गया कि भारत में कितने गद्दार हैं? दूसरा ये कि पूरी दुनिया ने एक बार फिर से देख लिया कि पाकिस्तान का असली चरित्र ना बदला है और ना बदलेगा.
पाकिस्तान (Pakistan) ने पूरी दुनिया में इस्लाम (Islam) की दुकान खोल रखी है और क्रिकेट के इन मैचों को पाकिस्तान ने असल में इस्लाम Vs दूसरे धर्मों के बीच एक धर्म युद्ध में बदल दिया है. यही कारण है कि क्रिकेट के मैदान पर खुलेआम उनके खिलाड़ी टेलीविजन कैमरों के सामने और हजारों दर्शकों के सामने नमाज पढ़ते हैं और दुनिया के करोड़ों लोग चुपचाप ये सब होते हुए टीवी पर देखते हैं.
इस्लाम (Islam) के इस नए बिजनेस मॉडल के तहत एक नया तरीका निकाला गया है. वो ये है कि जब भी क्रिकेट मैच होगा और जब भी उसका लाइव टेलिकास्ट चल रहा होगा, जिसे करोडों लोग देख रहे होंगे. उसी दौरान खिलाड़ी मैदान पर ही नमाज़ पढ़ने लगेंगे और फिर पाकिस्तान के बड़े बड़े मंत्री और Celebrities इसे इस्लाम के युद्ध में बदल देंगे. इस तरह से पाकिस्तान इस्लामिक दुनिया का चैंपियन बन जाएगा.ि
कल्पना कीजिए, आपके घर में किसी की अचानक तबियत बिगड़ जाती है और उसे अस्पताल ले जाना बहुत ज़रूरी होता है. आप ऐंबुलेंस को फोन करते हैं और ऐंबुलेंस आपके घर के पास आ भी जाती है. फिर पता चलता है कि वहां कुछ लोग सड़क को घेर कर नमाज पढ़ रहे हैं और 20 मिनट तक सड़क को खोला नहीं जा सकता. तब ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? देश की राजधानी दिल्ली के पास गुरुग्राम में बहुत सारे स्थानीय लोग आज पुलिस से ऐसे ही सवाल पूछ रहे हैं.
22 अक्टूबर यानी पिछले शुक्रवार को गुरुग्राम के सेक्टर 12 में बड़ी संख्या में मुस्लिम (Islam) समुदाय के लोगों ने खुले में ज़ुमे की नमाज़ पढ़ी. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया. इन लोगों ने इस घटना के विरोध में आज गुरुग्राम के ज़िला उपायुक्त को भी एक ज्ञापन सौंपा और ये कहा कि अगर भविष्य में खुले में नमाज़ पढ़ने की वजह से कोई घटना होती है तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?
गुरुग्राम में पुलिस ने खुद 37 जगह चिन्हित की हैं, जहां मुस्लिम (Islam) समुदाय के लोग सरकारी ज़मीन पर खुले में नमाज़ पढ़ सकते हैं. 22 अक्टूबर को जिस जमीन पर खुले में नमाज़ पढ़ी गई थी, वो जगह भी पुलिस ने निर्धारित की है. स्थानीय लोगों का कहना ये है कि जुमे की नमाज के दिन इन जगहों पर इतने लोग इकट्ठे हो जाते हैं कि ये जगह भी कम पड़ जाती है. फिर सड़कों और पार्कों को घेर लिया जाता है.
पिछले दिनों भी वहां के एक और इलाके में सड़क घेर कर नमाज पढ़ने पर खूब हंगामा हुआ था. तब ये मामला दब गया था क्योंकि हमारे देश में जो लोग इस तरह के मुद्दों पर बात करते हैं या सवाल पूछते हैं, उन पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा दिया जाता है. हो सकता है कि ये आरोप हम पर भी लगाए जाएं. लेकिन हम इस मुद्दे को उठाएंगे और कुछ कड़वे सवाल भी इन लोगों से पूछेंगे. गुरुग्राम से लेकर क्रिकेट के ग्राउंड तक खुले में नमाज़ पढ़ने का एक ही पैटर्न है. ये पैटर्न इस्लाम को एक Product के तौर पर दुनिया में बेचने का काम करता है.
रविवार को जब दुबई में भारत और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच मैच खेला गया था, तब पाकिस्तान के एक खिलाड़ी मोहम्मद रिज़वान मैच के दौरान ही मैदान पर नमाज़ पढ़ने लगे थे. इस मैच में उन्होंने ऐसा तीन बार किया. दो बार मैच के दौरान और एक बार मैच के बाद. ये वही मोहम्मद रिज़वान है, जिनके लिए पाकिस्तान के ही एक पूर्व क्रिकेटर वकार यूनुस ने ये कहा था कि उन्हें भारत की हार से ज्यादा मज़ा इसमें आया कि मोहम्मद रिज़वान ने हिन्दुओं के सामने नमाज़ पढ़ी.
वकार यूनुस ने भले आज अपने बयान पर माफ़ी मांग ली है, लेकिन इससे ये पता चलता है कि मैदान पर नमाज़ पढ़ना कोई मामूली बात नहीं है. ये धर्म के एक ऐसे मैच की शुरुआत है, जिसमें ये लोग केवल इस्लाम को जीतते हुए देखना चाहते हैं.
कुल मिलाकर पाकिस्तान ने क्रिकेट को एक धर्म युद्ध में बदल दिया जिसमें कभी ईसाई खिलाड़ियों को हराने पर हज़ारों करोड़ों लोगों के सामने नमाज़ पढ़ी जाती है तो कभी हिंदू खिलाड़ियों को हराने पर ऐसे ही नमाज़ पढ़ी जाती है. इसके बाद पाकिस्तान खुद को दुनिया में इस्लाम का चैंपियन घोषित कर देता है.
पहले भी ऐसा करते रहे हैं पाकिस्तानी
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान (Pakistan) के किसी खिलाड़ी ने रविवार को पहली बार मैच के दौरान नमाज़ पढ़ी या आख़िरी बार ऐसा हुआ है. वर्ष 2015 में जब पाकिस्तान के ही एक खिलाड़ी मोहम्मद हफीज़ ने मैच के दौरान ग्राउंड पर नमाज़ पढ़ी तो पाकिस्तान के एक अख़बार ने इसे ''The Sporting Sajda कहा था. यानी वो इस पर गर्व महसूस कर रहा था.
2007 के T-20 World Cup फाइनल में जब भारत ने पाकिस्तान की टीम को हरा दिया था, तब पाकिस्तानी खिलाड़ी शोएब मलिक ने कहा था कि वो दुनिया के सभी मुसलमानों (Islam) से माफ़ी मांगते हैं, जिनके लिए वो वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए. उनका भाव ये था कि दुनिया के सभी मुसलमान पाकिस्तान की जीत की दुआ कर रहे थे. जैसा कि पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद ने अपने दो दिन पुराने बयान में भी कहा था.
उन्होंने पाकिस्तान (Pakistan) की जीत को इस्लाम की जीत बताया था और कहा था कि भारत के मुसलमान भी यही चाहते थे कि इस मैच में पाकिस्तान की टीम जीते. ये सारी बातें बताती हैं कि जिस मैच को हमारे देश के लोग क्रिकेट के चश्मे से देखते हैं, वो मैच पाकिस्तान के लिए धर्म का मैच है. जिसमें एक तरफ़ हिन्दू हैं और दूसरी तरफ़ मुसलमान हैं. खुले में नमाज़ पढ़ना या फिर बात- बात में अल्लाह का नाम लेना इसी फैशनेबल बिज़नेल मॉडल का हिस्सा है.
जो कुछ गुरुग्राम में हुआ, और जो कुछ दुबई के क्रिकेट ग्राउंड पर हुआ, उसमें ज्यादा अंतर नहीं है. ये सबकुछ एक ही Model के तहत होता है. लेकिन इसे देखने का नज़रिया अलग अलग हैं. कल्पना कीजिए 31 अक्टूबर को न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ होने वाले मैच में भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली सेंचुरी लगा देते हैं और इसके बाद बीच मैदान पर अपने बैट की पूजा करने लगते हैं या उसकी आरती उतारने लगते हैं या रोहित शर्मा अपने बल्ले पर तिलक लगा कर मैच खेलने ग्राउंड पर आते हैं तो क्या होगा? या मैच जीतने पर भारतीय टीम के खिलाड़ी हनुमान चालीसा पढ़ने लगते हैं तो क्या होगा ?
तब शायद ICC इन खिलाड़ियों पर धार्मिक नफरत को फैलाने के लिए उन पर कुछ मैचों के लिए प्रतिबंध लगा देगा और भारत में ऐसे खिलाड़ियों को सांप्रदायिक बताया जाने लगेगा. वहीं पाकिस्तान का कोई खिलाड़ी मैदान पर नमाज़ पढ़ता है तो इस पर कोई बात नहीं होती. जबकि ICC का नियम कहता है कि खेल के दौरान लोगों को बांटने वाला किसी भी तरह का राजनीतिक या धार्मिक संदेश नहीं दिया जा सकता.
वर्ष 2019 में जब भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी अपने Gloves पर भारतीय सेना का बलिदान बैज लगा कर खेलने के लिए आए थे तो International Cricket Council ने इसका कड़ा विरोध जताया था और ऐसे Gloves के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी. जब पाकिस्तानी खिलाड़ी मैदान पर नमाज़ पढ़ते हैं तो उन्हें कोई चेतावनी नहीं दी जाती. इससे बड़ा विरोधाभास क्या हो सकता है?
ये विरोधाभास सिर्फ़ एक संस्था या देश तक सीमित नहीं है. ये विरोधाभास भारत में भी है. वर्ष 2019 में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल लड़ाकू विमानों की शस्त्र पूजा की थी तो हमारे देश में इस पर ज़बरदस्त हंगामा हुआ था. हमारे देश के एक खास वर्ग ने उस समय ये कहा था कि हिन्दू संस्कृति से राफेल की पूजा करना, भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को ख़तरे में डालता है. लेकिन अब सोचिए क्या आपने ये बातें खुले में नमाज़ पढ़ने वाले लोगों के लिए इनसे सुनी हैं?
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इस्लाम (Islam) का ये बिज़नेस मॉडल गिने चुने देशों में नहीं फैला है. इसकी शाखाएं पूरी दुनिया में खुली हुई हैं. कई देश तो ऐसे हैं, जो इस बिज़नेस मॉडल से डर कर कानून बनाने के लिए मजबूर हुए हैं. उदाहरण के लिए फ्रांस में खुले में नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती. UAE में गाड़ी रोक कर नमाज़ पढ़ना गैर कानूनी है. म्यांमार में ऐसा करने पर 3 महीने की जेल की सज़ा का प्रावधान है. लेकिन भारत में इसे लेकर कोई नियम नहीं है.
हालांकि 2019 में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक आदेश जारी किया था, जिसके लिए किसी भी इलाक़े में खुले में नमाज़ पढ़ने से पहले प्रशासन की इजाज़त लेना ज़रूरी है. बाकी किसी राज्य में इसे लेकर सख़्ती नहीं दिखाई जाती.
धर्मनिरपेक्ष देश होते हुए भी भारत में साम्प्रदायिक घटनाओं का विरोध करना बुरा माना जाता है. चीन में ऐसा नहीं है. चीन में मुसलमानों को ना तो दाढ़ी रखने की इजाज़त है, ना ही बुर्का पहनने की और ना ही रमज़ान के दिनों में रोज़ा रखने की. चीन इन मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने से रोकने के लिए शिनजियांग में 15 हज़ार मस्जिदें गिरा चुका है.
वहां पर किसी मस्जिद की जगह पर Public Toilet तो किसी मस्जिद की जगह पर शराब और सिगरेट की दुकानें खोली जा चुकी हैं. इसके अलावा वहां अब मस्जिदों की गुंबद और मीनारें भी गिराई जा रही हैं. भारत में कट्टर इस्लाम (Islam) को बढ़ावा देने वाले ये लोग अगर एक बार चीन जाकर आएंगे तो इन्हें भारत में मिली आज़ादी की असली कीमत का एहसास हो जाएगा.
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