अयोध्या केस : निर्मोही अखाड़ा की दलील, '1949 से विवादित स्थल पर नमाज़ नहीं हुई, मुस्लिम पक्ष का दावा नहीं बनता'
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अयोध्या केस : निर्मोही अखाड़ा की दलील, '1949 से विवादित स्थल पर नमाज़ नहीं हुई, मुस्लिम पक्ष का दावा नहीं बनता'

सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन को हस्तक्षेप करने पर सुप्रीमकोर्ट ने फटकार लगाई. कहा कोर्ट कि मर्यादा का ख्याल रखें.

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है....

नई दिल्ली: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. सबसे पहले निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन दलील रख रहे हैं. अयोध्या मामले में निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि 1934 में 5 वक्त की नमाज बंद हुई. हर शुक्रवार सिर्फ जुमे की नमाज होती रही है. 16 दिसंबर 1949 के बाद से ये भी बंद हो गई. विवादित स्थान पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ, पैर आदि धोने) की जगह मौजूद नहीं है. 

सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन को हस्तक्षेप करने पर सुप्रीमकोर्ट ने फटकार लगाई. कहा कोर्ट कि मर्यादा का ख्याल रखें. सीजेआई ने कहा कोर्ट आपका पक्ष भी सुनेगा. धवन का कहना था कि शक है कि हमें पर्याप्त समय मिलेगा. सीजेआई ने कहा कि ये कोर्ट में बर्ताव करने का सही तरीका नहीं है.

जैन ने कहा- विवादित परिसर के अंदरूनी हिस्से पर पहले हमारा कब्ज़ा था जिसे दूसरे ने बलपूर्वक कब्ज़े में ले लिया. बाहरी पर पहले विवाद नहीं था. 1961 से शुरू हुआ. जैन ने कहा- मेरा केस दरअसल ज़मीन के उस टुकड़े के लिए है, जो अभी कोर्ट द्वारा नियुक्त रिसीवर के नियंत्रण में है. 

निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि परिसर के बाहरी हिस्से में स्थित सीता रसोई, भंडारगृह, चबूतरा हमारे कब्ज़े में था. 1950 में गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दायर पहला केस अंदर के हिस्से में पूजा करने का अधिकार मांगने के लिए था. वकील सुशील जैन ने आगे कहा कि मस्ज़िद को पुराने रिकॉर्ड में मस्ज़िद ए जन्मस्थान लिखा गया है. बाहर निर्मोही साधु पूजा करवाते रहे. हिन्दू बड़ी संख्या में पूजा करने और प्रसाद चढ़ाने आया करते थे. निर्मोही के संचालन में कई पुराने मंदिर. झांसी की रानी ने भी हमारे एक मंदिर में प्राण त्यागे थे.

 

इससे पहले, पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष के एन गोविंदाचार्य की ओर से वकील वान्या गुप्ता ने अयोध्या मामले की सुनवाई की ऑडियो रिकॉर्डिंग या फिर संसद की तर्ज पर लिखित ट्रांसक्रिप्ट तैयार कराने की मांग की थी. सीजेआई ने उक्त मांग को स्वीकार करने से फिलहाल इंकार किया. उन्होंने कहा कि पहले मामले की सुनवाई शुरू होने दें.

केएन गोविंदाचार्य ने अपनी अर्जी में कहा था कि ये विषय लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है. संविधान के अनुच्छेद 19(1) ए के तहत लोगों को जानने का अधिकार मिला हुआ है, ऐसे में लोगों को ये जानने का अधिकार है कि अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई में क्या हो रहा है. करोड़ों लोगों की आस्था है, इस मामले में लेकिन ये संभव नहीं कि सभी लोग कोर्ट में मौजदू होकर मामले की सुनवाई देख सकें. लिहाजा इस लाइव स्ट्रीमिंग के जरिये सभी लोगों के पास फर्स्ट हैंड इंफो पहुंच सके.

 

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