Bihar Election Results: तेजस्वी चमके, ये रहे महागठबंधन की हार के 5 बड़े कारण
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Bihar Election Results: तेजस्वी चमके, ये रहे महागठबंधन की हार के 5 बड़े कारण

बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजों (Bihar Election Result 2020) ने महागठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. सवाल उठता है कि कांग्रेस क्या वाकई तेजस्वी के लिए बोझ बन गई.

फाइल फोटो.

नई दिल्ली: बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजे (Bihar Election Result 2020) आ चुके हैं. इस बार का बिहार चुनाव कई मायनों में खास रहा. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की वापसी से लेकर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व तक के लिए याद किया जाएगा. सवाल यह उठता है कि तेजस्वी तो चमके लेकिन महागठबंधन (Mahagathbandhan) का ये हश्र क्यों?

  1. बिहार में महागठबंधन की हार एनडीए की जीत

    महागठबंधन पर भारी पड़ा जनता का मोदी के प्रति विश्वास

    कांग्रेस को 70 सीट देना आरजेडी की सबसे बड़ी भूल

1. नेतृत्व का अभाव?
बिहार में एनडीए (NDA) या मोदी (Modi) को हराने को लिए हुए महागठबंधन (Mahagathbandhan) को हार मिलने का सबसे बड़ा कारण नेतृत्व का अभाव रहा. मोदी के मुकाबले महागठबंधन के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था. महागठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी मजबूती का संदेश नहीं दे पाई. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पूरे चुनाव के दौरान मोदी के मुकाबले कहीं ठहरते नजर नहीं आए. महागठबंधन मोदी को हराने का संदेश देने की कोशिश करता रहा लेकिन पूरे चुनाव में मोदी के मुकाबले लड़ने में सक्षम नेतृत्व का संदेश देने के अभाव से जूझता रहा.

2. कांग्रेस को 70 सीटें क्यों?
बिहार में इस बार कांग्रेस (Congress) 70 सीटों पर चुनाव लड़ी. इतनी सीटों पर लड़ने के बाद भले ही कांग्रेस राज्य विधान सभा चुनाव के प्रमुख राजनीतिक दलों में शुमार हो गई लेकिन परिणाम से कांग्रेस बीमार ही दिखी. आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर शुरुआत से ही सवाल उठते रहे. आखिर कुल 243 सीटों में से 70 सीटें महागठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल को क्यों दी गईं?

3. मोदी के प्रति भरोसा और बढ़ा
दूसरा सबसे बड़ा कारण जनता का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के प्रति भरोसा रहा. भले ही भाजपा लगातार कहती रही कि बिहार चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है लेकिन जनता ने जेडीयू से अधिक सीटें भाजपा को दीं. माना जा रहा है कि मतदाता ने भाजपा की घोषणाओं और वादों पर भरोसा किया. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मोदी ने ज्यादातर अपने वादे पूरे किए जिनमें जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाना हो या फिर सीएए. राजनीतिक जानकारों का मानना है मोदी बिहार में लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब रहे जबकि महागठबंधन के प्रति लोगों के मन में विश्वास नहीं जाग पाया.

4. नौकरी नहीं रोजगार
बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के तेजस्वी यादव ने सरकार आने पर 10 लाख नौकरी का वादा किया था. तेजस्वी की घोषणा पर पलटवार करते हुए भाजपा ने नौकरी नहीं रोजगार देने की बात कही. भाजपा के बड़े नेता लगातार अपने भाषणों में स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देने की बात कहते रहे इसके बावजूद महागठबंधन इसकी काट नहीं कर पाया. तेजस्वी या कांग्रेस बिहार के स्थानीय व्यापार को लेकर कोई बड़ी उम्मीद जगाने में असफल रहे.

5. युवराज खारिज

लालू के लाल तेजस्वी  (Tejashwi Yadav) का तो जनता ने साथ दिया लेकिन कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी को खारिज कर दिया. राहुल गांधी अभी भी जनता का नेता होने की छवि बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बिहार में उनकी युवराज वाली छवि से भी महागठबंधन को नुकसान हुआ है. बिहार में जमीनी संगठन न होने की वजह से राहुल गांधी ने कांग्रेस की तरफ से प्रचार के लिए बाहरी नेताओं को अधिक उतारा जिसका भी नुकसान उठाना पड़ा.

कांटे की टक्कर के लिए याद किया जाएगा चुनाव
भले ही एनडीए की जीत हुई लेकिन ये चुनाव सभी पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर भी याद दिलाता रहेगा. जनता ने एनडीए (NDA) को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश दिया है लेकिन मंगलवार सुबह से शुरू हुई वोटों की गिनती ने देर रात तक उम्मीदवारों की उलझनें बनाए रखीं. कई सीटों पर तो नतीजों के आने के बाद भी हारने वालों को यकीन नहीं है.

इन सीटों पर रही कड़ी टक्कर
इस चुनाव में कई सीटें ऐसी हैं जहां जीत का अंतर बेहद कम है और इन सीटों में हारने वाले उम्मीदवार लगभग सभी दलों के हैं और सबसे करीबी मुकाबला हिल्सा सीट पर हुआ जहां बीजेपी के रामचंद्र प्रसाद ने आरजेडी के भोला यादव को सिर्फ 12 वोटों से हराया. इसके आलावा कई सीटों पर जीत का अंतर 500 से भी कम रहा जिनमें बरबीघा सीट से जेडीयू के सुदर्शन कुमार ने कांग्रेस के गजानंद शाही को 113 वोट से हराया. रामगढ़ सीट से आरजेडी के सुधाकर सिंह ने बीएसपी के अंबिका सिंह को 198 वोट से हराया. मटिहानी सीट से एलजेपी के राज कुमार सिंह ने जेडीयू के नागेंद्र सिंह को 333 वोट से हराया. भोरे सीट से जेडीयू के सुनील कुमार ने सीपीआई (एमएल) के जितेंद्र पासवान को 462 वोट से हराया. डेहरी सीट से आरजेडी के फतेबहादुर सिंह ने बीजेपी के सत्यनारायण सिंह को 464 वोट से हराया.

एक हजार से भी कम हार-जीत का अंतर
एक हजार के कम अंतर से जीत-हार का फैसला करने वाली भी कई सीटें हैं जिनमें चकाई सीट से निर्दलीय उम्मीदवार सुमित कुमार सिंह ने आरजेडी की सावित्री देवी को 581 वोट से हराया. वछवारा सीट से बीजेपी के सुरेंद्र मेहता ने सीपीआई के अबधेश कुमार राय को 484 वोट से हराया. कुढ़नी सीट से आरजेडी के अनिल कुमार साहनी ने बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता को 712 वोट से हराया. बखरी सीट से सीपीआई के सूर्यकांत पासवान ने बीजेपी के रामशंकर पासवान ने 777 वोट से हराया. परबत्ता सीट से जेडीयू के संजीव सिंह ने आरजेडी के दिगंबर प्रसाद तिवारी को 951 वोट से हराया.

इसके साथ ही बिहार की कुल 243 सीटों में कई और सीटें भी हैं जिनमें दो हजार से कम या तीन हजार से कम वोटों के अंतर पर हार और जीत का फैसला हुआ है. कुल मिलाकर भले ही नतीजों के लिहाज से किसी भी पार्टी को सीटें मिल गई हों लेकिन ये जरा से फासले नतीजों को नई शक्ल दे सकते थे.

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