Banka Samachar: जनार्दन मांझी पुरानी पीढ़ी के उन नेताओं में शामिल थे, जिनके चाहनेवाले और सुननेवाले हर दल में मौजूद थे.
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Banka: जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक जनार्दन मांझी (Janardan Manjhi) के निधन पर बांका में शोक की लहर है. बांका सांसद गिरिधारी यादव समेत सभी सियासी नेताओं ने उनके निधन पर शोक जाहिर किया है. जनार्दन मांझी 78 साल के थे, वे 1 बार बेलहर से और 2 बार अमरपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. जनार्दन मांझी पुरानी पीढ़ी के उन नेताओं में शामिल थे, जिनके चाहनेवाले और सुननेवाले हर दल में मौजूद थे.
बांका के बौंसी के रहनेवाले जनार्दन मांझी ने 2001 के चुनाव में जिला परिषद सदस्य का चुनाव जीता था और बांका जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके थे. जनार्दन मांझी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) के करीबी माने जाते थे. सक्रिय सियासत में आने से पहले जनार्दन मांझी राज्य परिवहन निगम में नौकरी करते थे. नौकरी छोड़कर उन्होंने राजनीति में आने का मन बनाया था.
बेलहर सीट से 2005 में उन्होंने आरजेडी के रामदेव यादव को तब हराया जब आरजेडी (RJD) के लिए बांका की बेलहर सीट अपराजेय मानी जा रही थी. रामदेव यादव बेलहर से लगातार चुनाव जीत रहे थे, यादव बहुल इस सीट पर जब जनार्दन मांझी ने चुनाव लड़ा तो पहली बार में उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई लेकिन उस बार बिहार विधानसभा त्रिशंकु हो गई और कुछ ही महीनों में दोबारा चुनाव हुए. बेलहर से अपने दूसरे ही चुनाव में जनार्दन मांझी ने रामदेव यादव को हरा दिया. जनार्दन मांझी की जीत का ये सिलसिला 2010 के चुनाव में भी जारी रहा हालांकि, इस बार उनकी सीट बदल दी गई. दरअसल, 2010 के चुनाव में बांका जिले का सियासी समीकरण बदल गया. कभी आरजेडी के कद्दावर नेता रहे गिरिधारी यादव जब जेडीयू में शामिल हुए तो उन्हें बेलहर से चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया और सिटिंग विधायक जनार्दन मांझी को अमरपुर भेज दिया गया, नतीजा दोनों सीटें जेडीयू के खाते में गई.
अमरपुर में जनार्दन मांझी के जीत का सिलसिला 2015 के चुनाव में भी जारी रहा. 2015 में जनार्दन मांझी ने अमरपुर से बीजेपी के मृणाल शेखर को हराया. 2020 के चुनाव में बढ़ती उम्र और बीमारी की वजह से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. अमरपुर सीट से पार्टी ने जनार्दन मांझी के बेटे जयंत राज को उम्मीदवार बनाया. त्रिकोणीय मुकाबले और मुश्किल परिस्थिति में भी जयंत अपने पिता की सीट बचाने में कामयाब रहे. इस जीत का इनाम भी मिला और जयंत राज बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री बनाए गए. जनार्दन मांझी बांका जिले के वरिष्ठतम नेताओं में थे. उनके निधन के बाद इलाके ने एक बड़ा राजनीतिक कार्यकर्ता खो दिया है.