Akshaya Navami Vrat Story: इस परंपरा के पीछे एक विशेष लोक कथा भी जुड़ी हुई है. जो कि आंवले की महिमा और गंगा स्नान की परंपरा का तो बखान करती ही है, साथ ही लालच और जबरन बलि दिए जाने और चुपके से किसी पर तंत्र क्रिया के बुरे परिणाम के प्रति भी शिक्षा देती है.
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पटनाः Akshaya Navami Vrat Story: अक्षय नवमी पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में गंगा स्नान की परंपरा है. हालांकि गंगा स्नान की परंपरा तो हर पूर्णिमा-अमावस्या और एकादशी पर है, लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि अकेली ऐसी तिथि है, जब गंगा स्नान किया जाता है और एक वस्त्र में आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने का विधान बताया जाता है. इसके अलावा इस दिन महिलाएं व्रत रखकर भी प्रसाद ग्रहण करती हैं.
बुरे काम का बुरा नतीजा
इस परंपरा के पीछे एक विशेष लोक कथा भी जुड़ी हुई है. जो कि आंवले की महिमा और गंगा स्नान की परंपरा का तो बखान करती ही है, साथ ही लालच और जबरन बलि दिए जाने और चुपके से किसी पर तंत्र क्रिया के बुरे परिणाम के प्रति भी शिक्षा देती है.
निसंतान वैश्य की कथा
कहते हैं कि किसी गंगा किनारे किसी नगर में एक धर्मात्मा वैश्य रहते थे. वह निसंतान थे. उनके जीवन में धन तो था लेकिन इसके बावजूद वो हमेशा दुखी रहते थे. एक दिन वैश्य की पत्नी से उनकी पड़ोसन के कान भर दिए और किसी पराए बच्चे की बलि के लिए उकसा दिया. कहा कि बच्चे की बलि भैरव भगवान के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र रत्न प्राप्त होगा.
बच्चे की दे दी बलि
वैश्य ने ऐसा करने से साफ इन्कार कर दिया. लेकिन उनकी पत्नी के मन में पुत्र प्राप्ति के लिए लालच बढ़ गया था, जिसके चलते वह इस मौके की तलाश में लग गयी. एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिरा कर भैरव देवता के नाम पर बलि दे दी. इस हत्या के परिणाम स्वरूप वैश्य की पत्नी कोढ़ी हो गई और प्रेतों के द्वारा सताई जाने लगी.
पत्नी को हो गया कोढ़
अपनी पत्नी की यह हालत देखकर वैश्य ने उनसे पूछा कि, आखिर यह सब क्यों हुआ है? तब उसकी पत्नी ने उन्हें सारी बात बता दी. तब वैश्य ने अपनी पत्नी से कहा गोवध, ब्राह्मण वध और बाल वध करने वालों का इस संसार में कोई भला नहीं कर पाया है, इसलिए तुम गंगा के तट पर जाकर भगवान का भजन करो और गंगा में स्नान करो, तभी तुम्हें इस कष्ट से छुटकारा मिल सकता है.
ऐसे हुए पाप मुक्त
वैश्य की पत्नी अब पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में चली गई. तब माँ गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के पेड़ की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी. जिसके बाद महिला ने ठीक वैसा ही किया. इस पूजन और व्रत के प्रभाव से महिला कुछ समय में रोग मुक्त हो गई. इसके अलावा व्रत के प्रभाव से कुछ दिन बाद ही उसे संतान सुख की प्राप्ति भी हुई. माना जाता है कि तभी से सनातन परंपरा में इस व्रत को करने का प्रचलन शुरू हुआ.
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