बिहार के भागलपुर के एक बढ़ई ने अपने कारनामों से इलाके के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है. गणपति शर्मा नाम के शख्स ने बिना ईंट के घर बनाकर सबको हैरान कर दिया.
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Bhagalpur: बिहार के भागलपुर के एक बढ़ई ने अपने कारनामों से इलाके के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है. गणपति शर्मा नाम के शख्स ने बिना ईंट के घर बनाकर सबको हैरान कर दिया. गणपति शर्मा का दावा है कि बिना ईंट का बने इस घर में लागत भी कम आई है और इसकी मियाद भी अधिक है.
सीमेंट, रेत और लकड़ी का कमाल
भागलपुर जिले के घोघा के पन्नूचक निवासी मिस्त्री गणपति शर्मा ने बगैर ईंट के पक्का मकान का निर्माण किया है. गणपति शर्मा के ईंट रहित इस मकान में एक बरामदा, तीन कमरे और एक अंडरग्राउंड कमरा भी है. हालांकि मकान के कुछ हिस्सों का निर्माण कार्य अभी भी जारी है. ईंट रहित इस मकान की दीवार 7 से 8 इंच मोटी है जिसे सीमेंट और रेत मिलाकर छत की ढलाई की तरह बनाया गया है. साथ ही छत के दीवार की डिजाइन भी इस कदर की गई है की ईंट से बना मालूम पड़ता है लेकिन वह भी सिर्फ सीमेंट और रेत पर बनाया गया है. मकान के दरवाजे और चौखट भी लकड़ी के बजाय सीमेंट और रेत से निर्मित हैं.
30 प्रतिशत कम लागत से बना घर
गणपति शर्मा के मुताबिक इस तरह से मकान निर्माण में अन्य मकान निर्माण के अपेक्षा 30 प्रतिशत कम लागत आती है. गणपति शर्मा ने मकान निर्माण में राज मिस्त्री, मजदूर का सहारा नहीं लिया और परिवार के सदस्यों के सहयोग से ईंट रहित मकान का निर्माण किया है, जिससे उनकी लागत और कम हो गई. हैरानी की बात ये है कि जिस घोघा के पन्नूचक में बिना ईंट के मकान का निर्माण किया गया है, जहां से निर्मित ईंट बिहार ही नहीं बल्कि झारखंड के कई जिलों में भेजे जाती है. घोघा में कई ईंट भट्ठे हैं, लेकिन गणपति शर्मा के परिवार ने ईंट रहित मकान बनाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है.
मकान देखने दूर-दूर से आते हैं लोग
दूर-दूर से लोग इस मकान को देखने आ रहे हैं और मकान बनाने की इस तकनीक को समझने का प्रयास कर रहे हैं. गणपति शर्मा ने बताया कि जो भी लोग इस मकान को देखने आते हैं वो तारीफ करते हैं. गणपति इच्छुक लोगों को निःशुल्क जानकारी देते हैं और सहयोग करने के लिए भी तैयार हैं. गणपति शर्मा के मुताबिक उन्होंने प्लाई से सेंटरिंग की और घर में कई तरह की कलाकारी की. मकान में गणेश भगवान का प्रतिरुप भी बनाया गया है. मकान मालिक के मुताबिक इस मकान की मियाद 70 से 80 साल की है और लागत भी कम है.
(इनपुट: अश्विनी)