बिहार में 'कैंसर' मरीजों का बढ़ रहा ग्राफ, बच्चे भी हो रहे पीड़ित, पढ़ें रिपोर्ट
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बिहार में 'कैंसर' मरीजों का बढ़ रहा ग्राफ, बच्चे भी हो रहे पीड़ित, पढ़ें रिपोर्ट

आमतौर पर कैंसर के लिए तंबाकू (Tobacco) को बडे़ पैमाने पर जिम्मेवार माना जाता है. लेकिन बच्चों में बढ़ती कैंसर की समस्या एक्सपर्ट्स को भी सोचने पर मजबूर कर रही है.

बिहार में 'कैंसर' मरीजों का बढ़ रहा ग्राफ, बच्चे भी हो रहे पीड़ित, पढ़ें रिपोर्ट

Patna: बिहार (Bihar) में कैंसर मरीजों (Cancer Patients) का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. पटना (Patna) के सबसे बडे़ कैंसर हॉस्पिटल में एक साल में लगभग 26 हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचे हैं जो एक रिकार्ड संख्या है. पुरुष व महिलाएं सहित बच्चे भी कैंसर की चपेट में आ रहे हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या के पीछे सिर्फ तंबाकू ही जिम्मेवार नहीं है. रिसर्च में ये खुलासा हुआ है कि खाने-पीने की चीजें भी अब कैंसर की बड़ी वजह बन रही हैं. 

पुरुषों से अधिक महिलाएं हो रहीं कैंसर से पीड़ित
बिहार का सबसे बडा कैंसर हॉस्पिटल महावीर कैंसर संस्थान (Mahavir Cancer Sansthan) इन दिनों मरीजों की संख्या से भरा हुआ है. सस्ते और बेहतर इलाज की तलाश में बड़ी संख्या में मरीज इस हॉस्पिटल की ओर रुख करते हैं. हॉस्पिटल मैनेजमेंट की माने तो बीते साल लगभग 26 हजार मरीज इस अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे थे. इनमें बड़ी संख्या में महिला मरीज भी शामिल थीं. संस्थान की डॉ मनीषा सिंह बताती हैं कि इलाज के लिए हॉस्पिटल पहुंचने वालों में महिलाओं की प्रतिशत 55 से 56 फीसदी हो चुकी है. डॉ मनीषा इसके पीछे महिलाओं की जागरुकता को बड़ी वजह बताती हैं. महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, बच्चेदानी का कैंसर और सर्वाइकल का कैंसर सबसे ज्यादा पाया जा रहा है. वहीं पुरुषों में मुंह, फेफड़ा, गॉल ब्लाडर से संबंधित कैंसर के पेशेंट ज्यादा मिल रहे हैं. 

बच्चों में बढ़ रही ब्लड कैंसर की समस्या 
कैंसर (Cancer) का प्रकोप बच्चों (Children) में भी बडे़ पैमाने पर देखने को मिल रहा है. ज्यादातर बच्चों में ब्लड कैंसर (Blood Cancer) की शिकायत मिल रही है. महावीर कैंसर संस्थान में 70 बेड बच्चों के लिए रिजर्व हैं और ज्यादातर बेड पर बच्चों का इलाज चल रहा है. हालांकि बच्चों को बीमारी का एहसास न हो इसके लिए हॉस्पिटल में ही बच्चों के लिए अलग क्लास रुम और इंडोर गेम्स की व्यवस्था की गई है

कैंसर के लिए सिर्फ तंबाकू ही जिम्मेवार नहीं
आमतौर पर कैंसर के लिए तंबाकू (Tobacco) को बडे़ पैमाने पर जिम्मेवार माना जाता है. लेकिन बच्चों में बढ़ती कैंसर की समस्या एक्सपर्ट्स को भी सोचने पर मजबूर कर रही है. हाल के दिनों में एक्सपर्ट्स की टीम ने कैंसर पर शोध (Research) किया है. जिसमें कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि बिहार में कैंसर फैलने के पीछे आर्सेनिक युक्त पानी, पेस्टीसाइट, इन्सेक्टीसाइट युक्त केमिकल, माइक्रो प्लास्टिक जिम्मेवार हैं. बिहार के 18 जिले आर्सेनिक से प्रभावित हैं. आर्सेनिकयुक्त पानी के प्रभाव के कारण ही गॉल ब्लाडर और स्किन कैंसर की समस्या पाई जा रही है.

गेहूं, चावल और आलू भी बन रहे कैंसर की वजह
महावीर कैंसर संस्थान में रिसर्च डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ अशोक घोष ने बताया कि हाल ही में उनकी टीम ने फूड चेन को लेकर इंडो यूके रिसर्च प्रोग्राम को पूरा किया है. केन्द्र सरकार के सहयोग से ये रिसर्च पूरा किया गया था. जिसमें ये तथ्य सामने आए कि गेहूं, चावल और आलू में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई. रिसर्च में ये भी बात सामने आई कि पानी में आर्सेनिक की मात्रा भले ही कम थी, लेकिन उसी पानी से सींचे गए फसल में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज्यादा पाई गई. यानी जो सब्जी आप खा रहे हैं या जिस गेंहू या चावल का उपयोग कर रहे हैं वो आपके शरीर तक कैंसर को ले जाने की वजह बन सकता है.  

खर्चीला इलाज कैंसर की रोकथाम में बना बड़ा बाधक
कैंसर की समस्या यहीं खत्म नहीं होती. कैंसर की सबसे बड़ी समस्या उसके इलाज में आने वाला खर्च भी (Expensive Treatment) है. कैंसर के थर्ड और फोर्थ स्टेज के इलाज के दौरान एक दिन की दवा पर 10 से 25 हजार तक के खर्च आते हैं. यहां तक की ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए हाल में आई एक दवा का खर्च 10 लाख रुपए प्रति महीना है. जाने माने फिजिशियन बिहार आईएमए के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार कहते हैं कि कैंसर के इलाज में सबसे बड़ी समस्या कैंसर की दवा का महंगा होना है. कैंसर का इलाज सुलभ हो, दवा आम लोगों की पहुंच में हो ये ज्यादा जरुरी है. डॉ अजय कहते हैं कि सरकार चाहे तो कैंसर की सस्ती दवा लोगों तक पहुंच सकती हैं. जेनरिक दवाएं जहां सस्ती हैं, वहीं विदेश से आने वाली दवाएं महंगी हैं. सरकार जेनरिक दवाओं की मॉनिटरिंग करे, क्वालिटि कंट्रोल करे. आजकल जेनरिक दवाओं के दाम में भी कोई कंट्रोल नहीं है. यहां तक कि जेनरिक दवाओं पर ब्रांडेड दवाओं के लेवल लगा दिए जा रहे हैं.

कैंसर के अर्ली ट्रेसिंग के लिए अत्याधुनिक तकनीक का अब हो रहा इस्तेमाल
हालांकि कैंसर के ट्रीटमेंट में अब पहले से काफी सुधार हुआ है. कैंसर की जांच के लिए डॉक्टर अब मॉल्यूक्यूलर टेस्टिंग, जेनेटिक टेस्टिंग, नेक्सट जेनरेशन सीक्वेसिंग भी कर रहे हैं. ताकि बीमारी का सटीक इलाज हो सके. इसके अलावा राज्य सरकार की तरफ से भी कैंसर पीड़ित मरीजों को डेढ़ लाख रुपए सहायता राशि दी जा रही है. वहीं केन्द्र सरकार की तरफ से चल रहे आयुष्मान भारत योजना के तहत भी लोग 5 लाख तक की योजना का लाभ ले सकते हैं.

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