Chhath Puja 2021: कृत आदि लक्षणों वाला यह काल भी दिवाकर ही कहा गया है. जितने भी ग्रह-नक्षत्र, करण, योग, राशियां, आदित्य गण, वसुगण, रुद्र, अश्विनी कुमार, वायु, अग्नि, शुक्र, प्रजापति, समस्त भूर्भुव: स्व: आदि लोक, संपूर्ण नग (पर्वत), नाग, नदियां, समुद्र तथा समस्त भूतों का समुदाय है, इन सभी के हेतु दिवाकर ही हैं.
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पटनाः Chhath Puja 2021: भगवान सूर्य की आराधना का विशेष पर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. नहाय-खाय के साथ सोमवार को ही व्रतियों ने अपना व्रत आरंभ कर दिया है. अब मंगलवार को छठ पर्व के दूसरे दिन खरना की तैयारी है. इसके बाद तीसरे और चौथे दिन सूर्य देव (Surya Deva) की उपासना की जाएगी. सूर्य पूजा का प्रमाण प्राचीन भारत के वैदिक युग से मिलता है.
कौन हैं सूर्य नारायण
ऋग्वेद में भी एक सूक्ति आती है. ओम् आदित्याये नमः, ओम् श्रीसवितृ सूर्यनारायणाए नमः. इन सूक्तियों और मंत्रों से स्पष्ट है कि सूर्य देव (Surya Deva) की न सिर्फ पूजा की जाती रही है, बल्कि उन्हें ही विष्णु और नारायण के नाम से संबोधित भी किया जाता रहा है.
हलांकि यहां विरोधाभास हो सकता है कि नारायण तो क्षीरसागर में रहने वाले, लक्ष्मी के साथ बैठे और सुदर्शन चक्र-गदाधारी हैं तो सूर्य देव नारायण (Surya Narayan) से हो गए.
समस्त संसार के नेत्र हैं सूर्यदेव
इसका उत्तर बहुत बाद में लिखे गए पुराणों में सामने आता है. भविष्य पुराण के ब्रह्मपर्व (अध्याय 48/ 21-28) में भगवान वासुदेव यानी खुद श्रीकृष्ण (Lord Krishna) (जो कि विष्णु अवतारी हैं) ने साम्ब को उनकी जिज्ञासा का उत्तर देते हुए कहा है- सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं. वे इस समस्त जगत के नेत्र हैं.
इन्हीं से दिन का सृजन होता है. इनसे अधिक निरंतर रहने वाला कोई देवता नहीं है. इन्हीं से यह जगत उत्पन्न होता है और अंत समय में इन्हीं में लय को प्राप्त होता है.
सूर्य देव के तीन स्वरूप
कृत आदि लक्षणों वाला यह काल भी दिवाकर ही कहा गया है. जितने भी ग्रह-नक्षत्र, करण, योग, राशियां, आदित्य गण, वसुगण, रुद्र, अश्विनी कुमार, वायु, अग्नि, शुक्र, प्रजापति, समस्त भूर्भुव: स्व: आदि लोक, संपूर्ण नग (पर्वत), नाग, नदियां, समुद्र तथा समस्त भूतों का समुदाय है, इन सभी के हेतु दिवाकर ही हैं.
भगवान सूर्य नारायण के तीन स्वरूप होते हैं इसलिए सूर्य की तीन रूपों में उपासना की जाती है. प्रातःकाल सूर्य की ब्रह्मस्वरूप में उपासना होती है, मध्या- काल में विष्णु (Lord Vishnu) रूप में उपासना होती है और सायंकाल में रुद्र रूप में उपासना होती है.
सूर्य पूजा न करने से लक्ष्मी छोड़ देती हैं साथ
जो सूर्य की उपासना नहीं करता है, उसका शरीर विभिन्न प्रकार के रोगों का केंद्र बन जाता है, इसलिए सूर्य को महाप्राण भी कहते हैं. सूर्य से ही जीवन संचालित होता है. जो उदित और अस्त होते सूर्य की उपासना नहीं करता है, भले ही वह विष्णु क्यों न हो,
लक्ष्मीजी (Devi Lakshmi) उनका साथ छोड़ देती है. प्रातःकाल उदित होते सूर्य का स्वागत करना प्रत्येक सनातनी का धर्म है. शंकराचार्य महाराज ने बताया कि जो व्यक्ति कार्तिक से लेकर माघ मास में प्रतिदिन सूर्यदेव की आराधना करता है, वह निरोगी रहता है.
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