Chhath Puja Ghat se Live: ए उठा हो, अबेर हो जाई. जमुहाई लेते हुए ये उनींदी आवाज घर में किसी कमरे से उठी. सवाल आया, अभिने उठब, कै बजता? जवाब मिला, अढ़ाई... अरे अढ़ाई?? ये सवालनुमा। जवाब ऐसा उछल कर आया कि हर अलसाए बदन में बिजली सी कौंध गई.
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Patna: Chhath Puja Ghat se Live: ए उठा हो, अबेर हो जाई. जमुहाई लेते हुए ये उनींदी आवाज घर में किसी कमरे से उठी. सवाल आया, अभिने उठब, कै बजता? जवाब मिला, अढ़ाई...
अरे अढ़ाई?? ये सवालनुमा। जवाब ऐसा उछल कर आया कि हर अलसाए बदन में बिजली सी कौंध गई. फिर एक हांक लगी, ए उठा सब जनी, नहावा-धोबा करा फल-प्रसाद रखा और बाकी सब तैयारी करा.. जल्दी-जल्दी करा
पूरा परिवार हुआ तैयार
इसके बाद तो बस 45 मिनट में पूरा परिवार नहा धो कर तैयार था. सुबह ठंड थी, तो उस हिसाब से शॉल, जैकेट, स्वेटर हर बदन पर दिख रहे थे. बड़े-बुजुर्ग से लेकर बाल-वृन्द तक किसी सैनिक की तरह तैयार होकर आंगन में आ डटे.
सुबह 4 बजे घाट की ओर
चार सवा चार बजे तक यही नजारा हर घर में आम हो गया और एक बार फिर पूरे गांव में रौनक हो गयी. अब तक हर घर की लाइटें जल चुकी थीं. बैंड बाजे ढोल ताशे बज रहे थे. इसी धुन के साथ एक बार फिर लोक गीतों में छठ माता की महिमा सुनाई देने लगी. हालांकि अल सुबह अब गीत गाने वालों की आवाजें अब दबी सी लग रही थीं, लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही थी.
माताएं वही कलश और दीपक लेकर आगे चल रही थीं, तो घर के लड़के-पति व अन्य कोई पुरुष दौरा-सुपली, केला-गन्ना लिए पीछे-पीछे चल रहे थे. छठ माई के जय-जयकार से रात बीतने के समय का सन्नाटा कहीं लुप्त हो चुका था. बस इंतज़ार था तो सूर्य देव के आने का. निगाहें बिना रुके बिना थके पूर्व दिशा की ओर थीं.
लेकिन, जब तक सूर्य देव न हों तब तक अंधेरा हरने का कार्य दीपक का है. ऐसे में वेदियां दीपकों के प्रकाश से जगमगा उठीं. अपनी-अपनी वेदी पर छठ व्रती पहुंच चुकी थीं और रस्म-रिवाज की शुरुआत हो चुकी थी.
फल-प्रसाद से सूप भर देने के बाद घर की लड़कियों को कुछ आराम महसूस हुआ तो वह अपनी सखियों संग आ मिलीं और अब सब साथ बैठी थीं.
रात कैसी बीती इसे लेकर उनके बीच इसकी बड़ी संक्षिप्त चर्चा हुई. एक ने कहा- हम त कोसी के दिया के तेल भरते रह गईलीं, दूसरी ने कहा- हमार दिया नाही बरत रहे रात भर, तीसरी ने कहा-एक दम लंबा बाती लगाए थे, एक बार 2 बजे तेल भर दिए, फिर थोड़ा सोए कि अम्मा तीन बजे उठ गईं.
साउंड बॉक्स पर भी छठ के गीत बज रहे थे. लड़कियों ने भी बड़ी-बूढ़ी के सुर से सुर मिलाना शुरू किया. एक लड़की ने किसी नई गायिका का गीत अपने सुर में गाया.
गीत में व्रती महिला कह रही है कि उसने घर-द्वार को लीप के बुहार दिया, आज यहां छठ माता आने वाली हैं.
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गांव के लड़के, जितने मुंह उतनी बातें
घाट पर फल-प्रसाद पहुंचा देने वाले लड़के अब इस काम से मुक्ति पा चुके थे. इसलिए एक बार फिर से उनके बीच नौकरी-चाकरी और राजनीति की बातें जगह बना चुकी थीं.
कब तक गांवे रहिबा, कब जाइबा, खावा-पिया शरीर बनावा, बियाह कब है हो जैसे सामाजिक पर शायद ही मन से सुने जाने वाले सवाल भी इनमें शामिल थे.
एक लड़का कहीं से पटाखों की लड़ी ले आया. लड़कों का एक समूह उधर हो लिया. दिन निकलने से पहले वाले अंधेरे में, अनार, भरुकी वाला अनार, रॉकेट, बुलेट बम, मिर्ची बम रौशनी-आवाज-ढेर सारे पटाखे रसायनिक धुआं बिखेर रहे थे.
उदित हुए सूर्यदेव तो जाग उठी प्रकृति
प्रभात हो चुका था, आज मुर्गे की बांग की जरूरत नहीं थी, लेकिन उसने दी. घेर में बंधी गाय ने रंभाया, कुत्ता भी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और बिल्ली जो शायद रात में ही घर में छुपी थी, तेजी से निकलकर बाहर भागी. कुल मिलाकर प्रकृति ने अपने समय पर निद्रा तोड़ी.
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कुछ देर में आकाश सुनहरा होने लगा. पूरब के क्षितिज में सूर्य देव के सारथी अरुण ने उजाला कर दिया. घाट पर महिलाएँ उगा हो सुरुज देव.. गा रही हैं. जल में खड़ी व्रतियों ने सुपली सहित सूर्यदेव को नमस्कार किया.
बूढ़े से लेकर बच्चों तक ने दिलवाए अर्घ्य
10 मिनट में सूर्य देव ने सिंदूरी रंग में दर्शन दिए. घाट से विपरीत दिशा में आवाज दी गई, ए बाबू लोगन आवा हो, अरघा दियाई. मंडली जमाए लड़के तुरत घाट की ओर दौड़ते हुए बढ़े.
गाय के कच्चे दूध से भरे लोटे उनके हाथ में थे. क्रम से पहले बाबूजी ने, फिर उनके छोटे भाई ने फिर बेटों ने और फिर बेटों के नवजात बच्चों तक ने अर्घा दिलवाया. माताएं हर अर्घ्य देने वाले चेहरे को देखतीं, उनका अरघा सूप पर रखवातीं और सूर्य देव के चारों ओर परिक्रमा करके मन में कुछ मंत्र बुदबुदाती जातीं.
मंत्र जो भी हो उसका निहित इतना जरूर रहा होगा, हे सूर्यदेव इसका भी ध्यान रखना, आस-पड़ोस के लोग भी अर्घ दिलवाते और उनके लिए भी यही प्रार्थना कही जाती.
मिला सुख-समृद्धि आरोग्य का वरदान
पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद वितरण का दौर चला, ए माई, हमको भी, माई हमको भी, माई सबको प्रसाद देती जातीं. लोग पैर छूते वह आशीष देतीं. सूर्य देव अब क्षितिज से ऊपर उठ कर आ चुके थे और नारंगी आकाश पीलापन लेने लगा था.
घाट छोड़ते हुए माताओं ने एक बार फिर वेदी को शीष नवाए सूर्य देव को प्रणाम किया सबके फलने-फूलने का आशीष मांगते हुए घर को चलीं. उनके पीछे सुख-समृद्ध और आरोग्य का वरदान धूप बनकर बढ़ता चला आ रहा था. जय हो छठी मइया से आकाश गूंज रहा था.