Navratri Mangla Gauri Mandir: आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर दशमी तक भस्मकूट पर्वत पर विराजमान आदिशक्तिपीठ मां मंगला गौरी का भव्य पूजन किया जाता है. देवी का स्वरूप मंगल करने वाला और सिद्धियों को देने वाला है. जहां अष्टमी के मौके पर मां का भव्य शृंगार किया गया, वहीं नवमी को भी मां को दिव्य भोग समर्पित किया जा रहा है.
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गयाः Navratri Mangla Gauri Mandir: गया नगरी सिर्फ मोक्ष और मुक्ति की नगरी नहीं है, बल्कि यह धाम पवित्रता और पुण्य प्राप्त करने का आध्यात्मिक स्थान भी है. माता के पर्व नवरात्र में इस नगर की छटा देखते ही बन रही है. नवरात्र के आखिरी तीन दिन अष्टमी, नवमी और दशमी देवी पूजा के लिए खास हैं. इस दौरान गया का भस्मकूट पर्वत लोगों की आस्था का केंद्र बन जाता है. गया जी का अपना एक अलग धार्मिक इतिहास रहा है जो कई पुराणों और ग्रंथो में वर्णित है.
निशा पूजा में किया भव्य शृंगार
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर दशमी तक भस्मकूट पर्वत पर विराजमान आदिशक्तिपीठ मां मंगला गौरी का भव्य पूजन किया जाता है. देवी का स्वरूप मंगल करने वाला और सिद्धियों को देने वाला है. जहां अष्टमी के मौके पर मां का भव्य शृंगार किया गया, वहीं नवमी को भी मां को दिव्य भोग समर्पित किया जा रहा है.
नवरात्रि के अष्टमी पर यहां मंदिर में निशा पूजा का आयोजन किया गया था, यह पूजा नवमी तिथि के सूर्योदय तक चलती है. आयोजन के दौरान माता रानी मां मंगला गौरी का सोलह शृंगार किया गया और 56 प्रकार के व्यंजनों से भोग लगाया गया.
मातारानी के लगे जयकारे
इस पावन मौके पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का अपार भीड़ उमड़ पड़ी और पूरा मंदिर परिसर माता रानी के जयकारे से भक्तिमय हो गया. गया स्थित भस्मकूट पर्वत अत्यंत प्राचीन है. मान्यता है कि यह पहाड़ी यहां सतयुग काल से है.
सृष्टि के आरंभ के पहले कल्प में दक्ष प्रजापति के शासन से इसका इतिहास जुड़ा बताया जाता है. शिव महापुराण, देवी भागवत पुराण और दुर्गा सप्तशती में माता के स्वरूप वर्णन में देवी सती की कथा आती है. बताते हैं कि यह स्थान देवी सती के तेज से अलौकिक हुआ है.
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यह है मंदिर की कथा
कथा के अनुसार देवी सती का वक्ष स्थल इस स्थान पर गिरा था. देवी सती ने कनखल क्षेत्र में पिता के घर हो रहे यज्ञ के कुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया था. उनका पूरा शरीर तो भस्म हो गया, लेकिन वक्षस्थल जलता रहा था. जब भगवान विष्णु ने सती के शव के टुकड़े किए तो जलता हुआ वक्षस्थल इसी पहाड़ी पर गिरा. यहां भयंकर विस्फोट हुआ था. इसी कारण इसका नाम भस्मकूट पर्वत पड़ गया.
इसके बाद से इस स्थल को आदिशक्तिपीठ के रूप में स्थापित किया गया. आदिशक्तिपीठ माता मंगला गौरी के प्रति श्रद्धालुओं का आस्था का आलम यह है कि नवरात्र के अलावा भी वर्ष भर यहां श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचते रहते हैं. शारदीय नवरात्र में भक्तों की अपार भीड़ माता रानी के दर्शन के लिए हर साल उमड़ती हैं