Sarva Pitru Amavasya के दिन समस्त पितरों के निमित्त दान, पुण्य आदि करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और पितृ गण भी प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. यदि इसी अमावस्या तिथि के साथ संक्रांति काल हो, या व्यतिपात अथवा गजछाया योग हो, या फिर मन्वादि तिथि हो, या सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण हो तो इस दौरान श्राद्ध कर्म करना अत्यंत फलदायी होता है.
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Gaya: Sarva Pitru Amavasya: फल्गु नदी के तट पर गयाजी तीर्थ में तर्पण क्रिया जारी है. श्राद्ध पक्ष के आखिरी कुछ दिन शेष हैं. इसके बाद सर्व पितृ अमावस्या इस श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है. इस बार सर्वपितृ अमावस्या 6 अक्टूबर को पड़ रही है. इस दिन उन सभी लोगों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु की तिथि याद न रह गई हो. ऐसा उपाय करने से भी पितृ दोष से बचा जा सकता है और पितरों को प्रसन्न किया जाता है.
महालय अमावस्या भी है नाम
पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है. सूर्य की सबसे महत्वपूर्ण किरणों में अमा नाम की एक किरण है उसी के तेज से सूर्य देव समस्त लोकों को प्रकाशित करते हैं. उसी अमामी विशेष तिथि को चंद्र का भ्रमण जब होता है तब उसी किरण के माध्यम से पितर देव अपने लोक से नीचे उतर कर धरती पर आते हैं. यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष की अमावस्या अर्थात पितृ पक्ष की अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
पितरों की खास तिथि मानी जाती है अमावस्या
इस दिन समस्त पितरों के निमित्त दान, पुण्य आदि करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और पितृ गण भी प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. यदि इसी अमावस्या तिथि के साथ संक्रांति काल हो, या व्यतिपात अथवा गजछाया योग हो, या फिर मन्वादि तिथि हो, या सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण हो तो इस दौरान श्राद्ध कर्म करना अत्यंत फलदायी होता है. वैसे तो पितृपक्ष के दौरान सभी तिथियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन इन सभी के बीच अमावस्या विशेष स्थान रखती है क्योंकि यह विशेष रूप से पितरों की तिथि मानी जाती है. इस अमावस्या को पितृविसर्जनी अमावस्या अथवा महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती उन सभी का श्राद्ध इसी तिथि को किया जा सकता है.
अमावस्या के दिन करें ये उपाय
सर्वपितृ अमावस्या के दौरान जितना हो सके पशु, पक्षी, जीव, जंतुओं की सेवा करें. उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन कराएं. इस दौरान सात्विक भोजन ही करें. श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को पत्तल में भोजन करना चाहिए. अपनी यथाशक्ति के अनुसार किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और अपनी यथाशक्ति अनुसार ही उन्हें दान भी दें.