पितृ लोक की स्थिति चंद्र अर्थात सोम लोक के उर्ध्व भाग (ऊपर की ओर) में होती है. इसीलिए चंद्र लोक का पितृ लोक से गहरा संबंध होता है. मानव शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना होता है. जैसे पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और अग्नि.
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Patna: Pitru Paksha 2021: श्राद्ध पक्ष में पितृ या पितरों के लिए तर्पण किया जाता है. कहा जाता है कि अगर ऐसा न हो तो पितर भटकते रहते हैं और अपने लोक पितृ लोक के लिए नहीं जा पाते हैं. गया में श्राद्ध करने से पितरों को जरूर मुक्ति मिलती है और वे अपने लोक के लिए गमन करते हैं. अब यह सवाल उठता है कि पितृ लोक कहां है और उसका गयाजी से कैसे संबंध है.
यहां स्थित है पितृ लोक
पितृ लोक की स्थिति चंद्र अर्थात सोम लोक के उर्ध्व भाग (ऊपर की ओर) में होती है. इसीलिए चंद्र लोक का पितृ लोक से गहरा संबंध होता है. मानव शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना होता है. जैसे पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और अग्नि. इन पंच तत्वों में से सर्वाधिक रूप से जल और फिर वायु तत्व मुख्य रूप से मानव देह के निर्माण में सहायक होते हैं. यही दोनों तत्व सूक्ष्म शरीर को पूर्ण रूप से पुष्ट करते हैं और यही वजह है कि इन तत्वों पर अधिकार रखने वाला चंद्रमा और उसका प्रकाश मुख्य रूप से सूक्ष्म शरीर से भी संबंधित होता है.
क्या है सोम तत्व
जल तत्व को ही सोम भी कहा जाता है और सोम को रेतस भी कहते हैं. यही रेतस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी में सूक्ष्म शरीर को पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा से संबंधित अन्य सभी तत्व मौजूद रहते हैं. जब मानव शरीर निर्मित होता है तब उसमें 28 अंश रेतस उपस्थित होता है. जब देह का त्याग करने के बाद आत्मा चंद्र लोक पहुंचती है तो पुनः उसे यही 28 अंश रेतस पर वापस लौट आना होता है और वास्तव में यही पितृ ऋण है. इसे चुकाने के बाद वह आत्मा अपने लोक में चली जाती है जहां सभी उसके स्वजातीय रहते हैं. गयाजी में श्राद्ध का पौराणिक महत्व है. यहां भगवान विष्णु ने गयासुर को नियंत्रित किया था और मृतात्माओं को मुक्त होने का वरदान दिया था.
इसलिए करते हैं श्राद्ध
जब भी किसी प्राणी की देह का अंत होता है तो इस पृथ्वी लोक पर उस आत्मा की शांति के लिए वंशजों द्वारा जो भी पुण्य और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं उससे उस आत्मा का मार्ग प्रशस्त होता है. जब श्रद्धा मार्ग से पिंड तथा जल आदि का दान श्राद्ध स्वरूप किया जाता है तो यही 28 अंश रेतस के रूप में आत्मा को प्राप्त होते हैं. क्योंकि यह श्रद्धा मार्ग मध्याह्नकाल के दौरान पृथ्वी लोक से संबंधित हो जाता है इसलिए इस इस समय अवधि के दौरान पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता है.