बिहार: मां सीता की जन्मभूमि में बसता है 'श्रीलंका', अब तक विकास से है अछूता
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बिहार: मां सीता की जन्मभूमि में बसता है 'श्रीलंका', अब तक विकास से है अछूता

यहां आज भी 3 हजार ग्रामीणों को 4-5 महीने बारिश में भयंकर मुसीबत का सामना पड़ता है. वो कीचड़ और पानी में 3-4 किलोमीटर की दूरी तय करके दूसरे पंचायत तक  पहुंचते हैं.

बिहार: मां सीता की जन्मभूमि में बसता है 'श्रीलंका', अब तक विकास से है अछूता

Sitamarhi: बिहार के सीतामढ़ी स्थित 'चक्की' गांव आज भी सड़क और पुल विहिन है. राज्य में बीते 16 वर्षों से ग्रामीण सड़क को मुख्य राजमार्ग से जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया. ग्रामीण सड़क मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना में से एक है. बावजूद इसके आजादी के 75 वर्ष बाद भी चक्की ग्राम को मुख्य मार्ग से नहीं जोड़ा जा सका है.

  1. सड़क और पुल के लिए तरस रहा 'चक्की' गांव
  2. नरेंद्र कुमार ने सरकार तक पहुंचाई ग्रामीणों की समस्या

बारिश में होती भयंकर मुसीबत
'चक्की' को 'श्रीलंका' के नाम से भी जाना जाता है. यहां आज भी 3 हजार ग्रामीणों को 4-5 महीने बारिश में भयंकर मुसीबत का सामना पड़ता है. वो कीचड़ और पानी में 3-4 किलोमीटर की दूरी तय करके दूसरे पंचायत तक पहुंचते हैं, इसकी मुख्य वजह नदी के बीच एक भी पुल नहीं होना है.

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सरकार तक पहुंचाई बात
स्थानीयों की मानें तो यहां के जनप्रतिनिधियों द्वार सही दिशा में कोशिश नहीं करने की वजह से ये मामला दशकों से लंबित है. वहीं, आत्मनिर्भर सेना (Atamnirbhar Sena) के संस्थापक व हिंदराइज के फाउंडर नरेंद्र कुमार  लगातार ग्रामीणों की समस्या को सरकार तक पहुंचाने में लगे हैं. उन्होंने इस मामले में बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार से भी मुलाकात की और उनसे चक्की में पुल निर्माण की बात की.

मंत्री ने दिया कार्रवाई का भरोसा
मंत्री ने नरेंद्र कुमार को भरोसा दिलाया कि इस मामले में बहुत ही जल्द आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी. वहीं, नरेंद्र कुमार ने कहा कि हमें अपनी आवाज उठानी होगी और संघर्ष करना होगा तभी हम अपने अधिकारों को जन-जन तक पहुंचा पाएंगे. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार से लोगों को बहुत उम्मीद और सरकार भी लोगों के लिए उतनी ही संवेदनशील है,

विकास की मुख्य दिशा से दूर गांव
इधर, ओलीपुर पंचायत के लोगों ने कहा कि खुद ही जमीन खरीदकर कच्ची सड़क बनाने का प्रयास किया लेकिन ये सिर्फ 5-6 महीने ही प्रयोग में लाया जा सकता है. ग्रामीणों का कहना है कि अति पिछड़ी आबादी होने के कारण पंचायत के इस भाग को हमेशा विकास की मुख्य दिशा से दूर रखा गया. 

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