Prabhunath Singh Story: सियासत के 'प्रभुनाथ' साल 1995 तक दो बार विधायक रहे...इसके बाद 1998 से 2014 तक चार बार सांसद रहे...प्रभुनाथ सिंह ऐसे ही अपनी हनक के साथ सियासत के सरताज बन गए...निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपनी राजनैतिक पारी शुरू करने वाली प्रभुनाथ सिंह साल 1990 से 1995 में जनता दल के टिकट पर मशरक विधानसभा से दूसरी बार विधायक बने, फिर प्रभुनाथ सिंह साल 1998 से 1999 महाराजगंज से समता पार्टी के टिकट पर लोकसभा के सांसद चुने गए.
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Bihar Crime Series: सारण में जिसकी सरकार चलती थी...छपरा में जिसे 'नाथ' माना जाता था...जो सियासत का 'प्रभु' खुद को मान बैठा था...जो कानून, न्याय, सरकार, सिस्टम को कभी कुछ समझता नहीं था...वह लालू प्रसाद यादव का खास...नीतीश की पार्टी का चाहेता भी रहा और जिसकी अपनी एक अलग सियासी हनक हुआ करती थी...जिसका छपरा के कई विधानसभा क्षेत्र पर गहरा प्रभाव था...वह चाहें आरेजडी में रहें या जदयू में या फिर समता पार्टी में, टिकट किसको मिलेगा...सिर्फ वह तय करते थे...जिसने वोट के लिए दो लोगों की बलि ले ली...जिसे हजारीबाग और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने छपरा के 'नाथ' को जेल की काल कोठरी में कैद कर दिया...उसकी हनक की हवा निकाल दी...जी हां आज हम इस ऑर्टिकल में जानेंगे बिहार के बाहुबली और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह की कहानी.
प्रभुनाथ सिंह का काला इतिहास!
प्रभुनाथ सिंह के सियासी सफर के बारे और उसके इतिहास के काले पन्नों को जानने के लिए उसके अतीत को जानना बहुत ही जरूरी है. दरअसल, साल 1985 जब एक सीमेंट कारोबारी प्रभुनाथ सिंह ने बिहार की सियासत में कदम रखा. प्रभुनाथ सिंह की छवि हमेशा दबंग नेता के रूप रही...पहली बार प्रभुनाथ सिंह मशरक विधानसभा से चुनाव लड़े थे और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की...हालांकि, प्रभुनाथ सिंह इससे पहले चर्चाओं में आ गए थे...वह साल 1980 में मशरक के विधायक रहे रामदेव सिंह काका की हत्या में आरोपी थे...हालांकि, प्रभुनाथ सिंह इस आरोपों से बरी हो गए थे...साल 1995 में पूर्व विधायक अशोक सिंह की हत्या के केस में आजीवन कैद की सजा काट रहे प्रभुनाथ सिंह. हजारीबाग जेल की काल कोठरी में कैद हैं. दरअसल, छपरा के मशरक विधानसभा चुनाव से जीतकर प्रभुनाथ सिंह ने अपना सियासी सफर शुरू किया..मशरक का विधायक बनने से पहले प्रभुनाथ सिंह पर पूर्व विधायक की हत्या का आरोप लगा...इस तरह से प्रभुनाथ सिंह का सियासी सफर का करवां चल पड़ता.
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इस तरह से शुरू हुआ सियासी सफर
सियासत के 'प्रभुनाथ' साल 1995 तक दो बार विधायक रहे...इसके बाद 1998 से 2014 तक चार बार सांसद रहे...प्रभुनाथ सिंह ऐसे ही अपनी हनक के साथ सियासत के सरताज बन गए...निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपनी राजनैतिक पारी शुरू करने वाली प्रभुनाथ सिंह साल 1990 से 1995 में जनता दल के टिकट पर मशरक विधानसभा से दूसरी बार विधायक बने, फिर प्रभुनाथ सिंह साल 1998 से 1999 महाराजगंज से समता पार्टी के टिकट पर लोकसभा के सांसद चुने गए. इसके बाद उन्होंने समता पार्टी छोड़ दी, फिर प्रभुनाथ सिंह साल 1999 से 2004 के बीच में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ज्वाइन कर लिया और दूसरी बार महाराजगंज सांसद बने. इस तरह से उनकी सियासी पारी चलती रही...साल 2004 से 2009 के बीच जदयू के ही टिकट पर तीसरी बार भी महाराजगंज से लोकसभा सांसद बने...फिर मौका आया साल 2013 से 2014 में लोकसभा का उपचुनाव हुआ और इस दौरान प्रभुनाथ सिंह ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया...इसके बाद आरजेडी में शामिल हो गए और लालू प्रसाद यादव की पार्टी के टिकट पर चौथी बार सांसद बने.
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साल 1995 की घटना को जानिए
प्रभुनाथ सिंह का सफर यूं ही चलता, लेकिन यहां आपको एक बात जान लेना जरूरी है कि साल 1995 में ऐसी क्या घटना हुई थी कि जिसकी वजह से प्रभुनाथ सिंह को जेल की काल कोठरी में जाना पड़ा...दरअसल, बात 26 मार्च 1995 के विधानसभा चुनाव के दौरान की है जब मशरक विधानसभा के धनुकी गांव में वोट हो रहा था, लेकिन जब प्रभुनाथ सिंह को पता चला कि यहां पर वोटिंग उनके अनुसार नहीं हो रही है...जिसका नतीजा हुआ कि उनके समर्थक और विरोधियों के बीच मारपीट शुरू हो गई इस दौरान गोली चलती है..इसमें तीन लोगों को गोली लग जाती है...जिसमें दारोगा राय, राजेंद्र राय और एक महिला श्रीमती देवी को गोली लगने से घायल हो जाती है...इलाज के दौरान दारोगा राय के बेटे राजेंद्र राय की मौत हो गई, लेकिन पुलिस की दस्तावेज के अनुसार राजेंद्र राय ने महाराजगंज के तत्कालीन सांसद प्रभुनाथ सिंह पर गोली मारने का आरोप लगाया था..इसके बाद प्रभुनाथ सिंह पर केस दर्ज होता है...
अब इस मामले की सुनवाई छपरा कोर्ट में होना था, लेकिन मृतक के परिवार वालों ने इस केस की सुनवाई भागलपुर कोट में करने की अपील की...तब यह तर्क दिय गया कि छपरा में अगर सुनवाई हुई तो गवाहों को प्रभुनाथ सिंह की तरफ से प्रभावित किया जा सकता है...इस बीच भागलपुर कोर्ट में भी न्याय नहीं मिलता देख इस हत्याकांड की सुनवाई पटना के नीचली अदालत में शुरू हुई...सुनवाई के दौरान पटना की निचली अदालत ने साल 2009 में प्रभुनाथ सिंह को बरी कर दिया था...दारोगा सिंह के भाई और अपीलकर्ता हरेंद्र राय हाईकोर्ट में अपील दायर किया...इस पिटीशन में पुलिस को तर्क दिया गया कि बयानों के लिस्ट में कई लोगों का बयान दर्ज नहीं किया गया है...वहीं, इस बीच हाईकोर्ट के बाद पीड़ित परिवार इसके बाद सुप्रीम कोर्ट गया...सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई शुरू की और तत्कालीन सांसद प्रभुनाथ सिंह को दोषी करार दिया...अब दोषी करार दिए गए पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को एक सितंबर को सजा सुनाने के दौरान कोर्ट में उपस्थित रहने का आदेश दिया गया है...इसके लिए बिहार के डीजीपी और मुख्य सचिव को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है.
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जेल में बंद प्रभुनाथ सिंह
अब यहां एक बात जान लीजिए कि आखिर हजारीबाग जेल में प्रभुनाथ सिंह के क्यों बाद है...दरअसल, अशोक सिंह मामले में प्रभुनाथ सिंह छपरा जेल में बंद थे, लेकिन कानून व्यवस्था को देखते हुए उनको हजारीबाग जेल में शिफ्ट कर दिया गया उस समय झारखंड अलग राज्य नहीं बना था...प्रभुनाथ सिंह के अपील पर ही हजारीबाग में अशोक सिंह हत्याकांड मामले का केस चला और 22 साल बाद अपना फैसला सुनाया...प्रभुनाथ सिंह पर अशोक सिंह की पत्नी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करवाया था...इसलिए कहा जाता जब सूर्य का उदय होता है...तो उसका अस्त भी होता है...लेकिन इन सबके बीच इंसान अपने अहंकार में चूर होकर मदस्त होकर चला है...फिर उसका अंजाम बेहद खैफनाक होता है...इसी तरह की क्राइम की कहानी जानने के लिए आप जी बिहार झारखंड से जुड़े रहिए. हम आपके लिए इस क्राइम सीरीज में अपराध जगत के कई खौफनाक कहानियों को ऐसे ही लाते रहेंगे...नमस्कार..!!!