Bihar News: गया की तारा माई की है विशेष महिमा, सबकी मुरादें करती हैं पूरी, महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित
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Bihar News: गया की तारा माई की है विशेष महिमा, सबकी मुरादें करती हैं पूरी, महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित

Bihar News: गया जिले के टिकारी प्रखण्ड के केसपा गांव स्थित तारा माई मंदिर आसपास के क्षेत्र में एक जागृत शक्ति के रूप में पहचानी जाती है. क्षेत्र में केसपा के तारा माई मंदिर की विशेष महिमा है. पूरे नवरात्र के दौरान सभी दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है.

(फाइल फोटो)

गया: Bihar News: गया जिले के टिकारी प्रखण्ड के केसपा गांव स्थित तारा माई मंदिर आसपास के क्षेत्र में एक जागृत शक्ति के रूप में पहचानी जाती है. क्षेत्र में केसपा के तारा माई मंदिर की विशेष महिमा है. पूरे नवरात्र के दौरान सभी दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है. भक्तों के बीच प्रतिदिन महाप्रसाद वितरण किया जाता है. 

वहीं अष्ठमी की मध्यरात्रि माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. जिसे निशा पूजा के नाम से जाना जाता है. इस दिन माता का विशेष शृंगार भी होता है. माता के इस रूप के दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. ऐसी मान्यता है कि उस वक्त सच्चे मन से पूजा करने वालों की सभी मनोकामना पूरी होती है. वर्ष 1992 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस मंदिर में माता का दर्शन करने आये थे.

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लोकश्रुति के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हलालल विष को लोक कल्याण की खातिर भगवान शिव ने पी लिया था. इस विष के प्रभाव से भगवान शिव मूर्छित हो गए थे. तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था, तभी मां तारा देवी प्रकट हुई और भगवान शिव को अपना दूध पिलाया. इसके प्रभाव से भगवान शिव की मूर्छा समाप्त हुई और तीनों लोकों में मां तारा की जयकार होने लगा. तभी से मां तारा की पूजा प्रारंभ हो गयी. 

पूर्व काल में इस मंदिर में बलि चढ़ाया जाता था, लेकिन महान विचारक एवं लेखक राहुल सांस्कृत्यायन की प्रेरणा से ग्रामीण स्वर्गीय प्रयाग नारायण सिंह एवं अन्य लोगों के प्रयास से बलि प्रथा का अंत हुआ. यहां के हवन कुंड की विशेषता भी श्रद्धालुओं के धार्मिक आस्था को बढ़ाती है. जिसमें कितना भी देवदार धूप जलाया जाए कुंड देवदार के राख से भरता नहीं है. जिसे भक्तजन किसी चमत्कार से कम नहीं मानते हैं. 

यहां की एक विशेष परंपरा यह भी है कि आठ दिन यानी नवरात्र के कलश स्थापना से अष्टमी तक महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित है. वहीं नवमी तिथि से महिलाएं मंदिर में देवी कि पुजा करती हैं. इसके बावजूद भी पूरे नवरात्र महिला श्रद्धालु यहां आती है और भक्ति भावना से मंदिर की परिक्रमा करती है और कुंड में धूप डालती हैं. 

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