Jharkhand News: उधार के जूते पहनकर दौड़ने वाली उड़न परी गुरुवारी ने जीते दो-दो गोल्ड मैडल
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Jharkhand News: उधार के जूते पहनकर दौड़ने वाली उड़न परी गुरुवारी ने जीते दो-दो गोल्ड मैडल

Jharkhand News: हमारे देश भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है और प्रतिभा सुविधाओं की मोहताज भी नहीं है. देश के हर कोने में प्रतिभा अटी पड़ी है. बस उन्हें तलाशने और तराशने की जरूरत है. कुछ ऐसी ही कहानी झारखण्ड के पश्चिम सिंहभूम जिले के जंगल सुदूरवर्ती क्षेत्र के गांव से आई है.

फाइल फोटो
पश्चिम सिंहभूम: Jharkhand News: हमारे देश भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है और प्रतिभा सुविधाओं की मोहताज भी नहीं है. देश के हर कोने में प्रतिभा अटी पड़ी है. बस उन्हें तलाशने और तराशने की जरूरत है. कुछ ऐसी ही कहानी झारखण्ड के पश्चिम सिंहभूम जिले के जंगल सुदूरवर्ती क्षेत्र के गांव से आई है. जहां कक्षा 8 में पढ़ने वाली एक बच्ची ने उधार के जूते पहनकर सरकार द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में एक नहीं बल्कि दो-दो गोल्ड मैडल जीते हैं.

 
गोल्ड मैडल पाकर सोने की तरह चमका चेहरा
पश्चिम सिंहभूम जिले के सोनुआ प्रखंड के हाड़ीमारा गांव की स्पोर्ट्स गर्ल के नाम से गांव में चर्चित 12 साल की गुरुवारी बांकिरा की. गांव के गड्ढे से भरे मैदान में दौड़कर गुरुवारी बांकिरा ने गरीबी में भी वो मुकाम हासिल कर दिखाया है जहां तक जाने के लिए कई खिलाड़ी सारी व्यवस्था पाने के बाद भी तरसते हैं. गुरुवारी बांकिरा ने झारखण्ड के रांची में आयोजित खेलो झारखण्ड खेलकूद प्रतियोगिता के 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड मैडल जीता है. खास बात यह भी है की गुरुवारी ने 100 मीटर की दौड़ 14.60 सेकेंड में और 200 मीटर की दौड़ 29.20 सेकेंड में पूरी की है. उसकी रफ़्तार के आगे झारखण्ड की सभी बच्चियां पीछे रह गयी और वह फिनिशिंग लाइन को पहले छूने में कामयाब रही.
 
उधार के जूते ने किस्मत चमका दी 
सबसे चौंकाने वाली बात यह है की दो-दो गोल्ड मैडल जीतने वाली इस बच्ची के पास अपने जूते ही नहीं नहीं थे. उसने अपने दीदी से उधार में जूते मांगकर प्रतियोगिता में भाग लिया था. गुरुवारी बताती है की जब वह प्रतियोगिता में भाग लेने गयी तो उसके पास जूते ही नहीं थे. उसके पहने हुए खराब जूते को देख आयोजकों ने उसे दौड़ में भाग लेने से रोक दिया था. लेकिन इस बीच किसी तरह उसने अपने दीदी से जूते उधार में लिए और प्रतियोगिता में शामिल हो गयी. गुरुवारी के आत्मविश्वास और खेल के प्रति उसका समर्पण ऐसा था की 100 और 200 मीटर की रेस में कोई भी उसके सामने तक नहीं पहुंच पा रहा था, तेज रफ़्तार में उसने दौड़कर दो प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मैडल जीता. गुरुवारी की इस जीत से ना सिर्फ स्कूल प्रबंधन, उसके माता पिता, जिला प्रशासन खुश है. बल्कि उसकी इस जीत से पूरा गांव और जिले में ख़ुशी की लहर है. गुरुवारी कहती है की वह आगे अपने खेल को जारी रखकर देश के लिए गोल्ड मैडल जीतना चाहती है. लेकिन, उसका सपना इस अभाव की जिंदगी में पूरा होना मुश्किल सा लग रहा है. उसने सरकार से अपील की है की उसकी और उसके जैसे सभी खेल प्रतिभा की मदद की जाये ताकि वह खेल प्रतिस्पर्धाओं में मैडल जीतकर देश और अपने गांव का नाम रोशन कर सके.
 
किसान की बेटी के हाथ दो-दो गोल्ड
उधार के जूते मांगकर राज्य स्तरीय दौड़ में दो-दो गोल्ड मैडल जीतने वाली गुरुवारी का जीवन आभाव से भरा हुआ है. घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. पिता किसान और मजदुर हैं, मां गृहणी है. गुरुवारी की बड़ी बहन 15 साल की उम्र में मजदूरी करने चेन्नई चली गयी है. एक भाई छोटा है. वहीं घर का गुजरा किसी तरह चल रहा है. झोपड़े में रहने वाले इस परिवार को दो वक्त खाना मिल जाये उतना ही बहुत है. इससे ज्यादा यह परिवार सोच भी नहीं सकता है. लेकिन, अभाव की जिंदगी जीने वाली गुरुवारी ने खेल के मैदान में जो कमाल किया है उससे सभी खुश हैं. गुरुवारी के पिता पलटन बांकिरा कहते हैं की उसकी बेटी पहले गांव में होने वाले मेले में आयोजित खेल प्रतियोगिता में भाग लेकर मैडल जीतती थी. उन्हें यकीन नहीं था की गांव में मैडल जितने वाली उनकी बेटी राज्य स्तर में भी कभी गोल्ड मैडल जीत सकती है. पिता गुरुवारी को और आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं इसलिए सरकार से गुरुवारी की मदद करने की अपील भी कर रहे हैं.
 
उधार के जूते का कमाल देखकर राज्य सरकार के द्वारा जूता भेंट किया गया
जिस गुरुवारी को उधार के जूते लेकर खेल प्रतियोगिता में दौड़ना पड़ा था अब उसी गुरुवारी को राज्य सरकार के द्वारा जूता भी प्रदान कर दिया गया है. राज्य खेल प्रभारी धीरेन सोरेन के द्वारा रांची से गुरुवारी को स्पाइक बूट भेजा गया ताकि वह अपनी खेल प्रतिभा में और अच्छा कर सके. जिला खेल प्रभारी अजय कुंडू के द्वारा गुरुवारी को जूते प्रदान किये गए. अजय कुंडू ने माना की उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी की बच्ची के पास जूते नहीं हैं. यह उनसे एक चूक हुई है जिससे सबक भी मिला है. उन्होंने कहा की गुरुवारी के साथ-साथ जिले में छिपी अन्य प्रतिभा को निखारने के लिए जो भी मदद होगी वे करेंगे. स्कूल के प्राचार्य शंकर शरण ने भी गुरुवारी के इस उपलब्धि को अविश्वसनीय जीत बताया है. वहीं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी नवल किशोर सिंह ने कहा की गुरुवारी राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय खेलों में बेहतर कर सकती है और इसके लिए वे उसकी पूरी मदद करेंगे.
 
जिले के डीसी अनन्य मित्तल ने कहा की गुरुवारी ने हमारे जिले का नाम रोशन कर हमें गौरान्वित किया है. उनके द्वारा अधिकारियों और शिक्षकों को निर्देश दिया गया है की गुरुवारी सहित ऐसी सभी प्रतिभावान बच्चियों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए और उसके प्रतिभा को निखारने में सभी संसाधन उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाए. गांव में छिपे प्रतिभा को तलाशने-तराशने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए.    
 
ANAND PRIYDARSHI

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