Navratri 2021: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
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Ranchi: नवरात्र के पावन मौके पर देवी मंदिरों में श्रद्धा का जमघट लगा हुआ है. कोरोना काल के बाद इस बार मंदिरों में दर्शनों की छूट है, लेकिन सुरक्षा का पालन जरूरी है. देवी मां के पावन स्थान और उनकी कथाएं जन-जन में प्रचलित हैं. ऐसा ही एक मंदिर है, जहां देवी के कटे सिर की पूजा की जाती है.
यहां स्थित है मंदिर
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
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इसलिए काटा देवी ने सिर
इस मंदिर को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं. कहते हैं कि एक बार भगवती देवी अपने चंडिका स्वरूप में अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. इसी दौरान सहेलियों ने भी उनसे भोजन मांगा. देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा. बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया.
देवी की एक और कथा है प्रसिद्ध
कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं. वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं. तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं. एक और कथा के अनुसार, असुरों से संग्राम के दौरान देवी ने अपनी सभी योगिनी शक्तियों को जागृत किया और दानव दल पर टूट पड़ीं. इस दौरान उनकी दो सहेलियों जया-विजया ने खप्पर में भर-भर कर रक्तपान किया और असुरों का नाश किया. सभी दैत्यों का नाश हो जाने के बाद भी देवियां भूखी रह गईं, तब माता ने स्वयं का शीष काटकर उनकी क्षुधा को शांत किया.
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ऐसा है मां का स्वरूप
कहा जाता है कि मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है. शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. इसके साथ ही वह बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हुईं हैं. उनके पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. रजरप्पा में बना यह मंदिर 6000 साल पुराना बताया जाता है.