Bihar Lok Sabha Election 2024: भाजपा की कोशिश थी कि पुराने सहयोगी दल जो किसी कारण से अलग हो गए हैं, उन्हें वापस एनडीए में शामिल किया जाए. इसके लिए बिहार भाजपा की ओर से जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी से संपर्क स्थापित किया गया था.
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Lok Sabha Election 2024: एनडीए के सभी दलों के बीच सीट शेयरिंग की घोषणा हो गई है. भाजपा को 17, जेडीयू को 16, लोजपा को 5, हम को 1 और रालोमो को 1 सीट दी गई है. पशुपति कुमार पारस को एक भी सीट नहीं मिली और उन्होंने मोदी सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. रालोमो नेता उपेंद्र कुशवाहा भी अंदरखाने नाराज बताए जा रहे हैं. सीट शेयरिंग की घोषणा से एक और अटकलबाजी पर विराम लग गया है. कई दिनों से अटकलें लगाई जा रही थी कि विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश साहनी भी एनडीए में आ सकते हैं, लेकिन अब इस तरह के दावे बेमानी हो गए हैं. अब कोई चमत्कार ही मुकेश साहनी को एनडीए में एंट्री दिला सकता है.हालांकि मुकेश साहनी ने एनडीए में शामिल होने के लिए काफी कोशिशें की थीं.
बताया जा रहा है कि पिछले कई दिनों तक मुकेश साहनी दिल्ली में डेरा जमाए बैठे रहे थे. उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के अलाचा राज्य स्तर के नेताओं और बिहार के प्रभारी महासचिव विनोद तावड़े से मुलाकात की काफी कोशिशें कीं पर नाकाम रहे. इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि एक समय भाजपा ने मुकेश साहनी को 3 सीटों का आफर दिया था. उस समय नीतीश कुमार अभी एनडीए का हिस्सा नहीं थे और इस बात की चर्चा भी नहीं थी. तब भाजपा को अपना कुनबा बड़ा करके दिखाना था, क्योंकि इंडिया ब्लॉक एकजुट हो रहा था.
भाजपा की कोशिश थी कि पुराने सहयोगी दल जो किसी कारण से अलग हो गए हैं, उन्हें वापस एनडीए में शामिल किया जाए. इसके लिए बिहार भाजपा की ओर से जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी से संपर्क स्थापित किया गया था. मीडिया के हलकों में यह भी चर्चा है कि मुकेश साहनी से खुद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय मिले थे और 3 सीटों की पेशकश की थी. मुकेश साहनी को फैसला लेने के लिए एक टाइमलाइन भी दिया गया था पर वे असमंजस में पड़े रहे और कोई फैसला नहीं ले पाए.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार के बीच बात बन गई और 28 जनवरी को वे एनडीए में शामिल होकर फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए थे. नीतीश कुमार की वापसी के बाद एनडीए के कई घटक दल सकते में आ गए थे. इन घटक दलों को आशंका थी कि नीतीश कुमार की वापसी के बाद भाजपा के सामने उनकी पूछ घट जाएगी. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जिस तरह सीट शेयरिंग की गई, उससे केवल पशुपति कुमार पारस की पार्टी को नुकसान हुआ. उन्हें एनडीए में एक भी सीट नहीं दी गई और गवर्नर बनने की पेशकश कर दी गई थी. उनके भतीजे प्रिंस पासवान को नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री बनाने का आफर दिया गया था. हालांकि पारस ने यह आफर ठुकरा दिया था.
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इस तरह मुकेश साहनी को भाजपा ने कभी 3 सीटों की पेशकश की थी और अब हालत यह है कि उनसे भाजपा का कोई भी नेता संपर्क स्थापित भी नहीं कर रहा है. दिल्ली दौरे में मुकेश साहनी को कुछ भी हाथ नहीं लगा और वे खाली हाथ पटना लौट आए. उनका अगला कदम क्या होगा? क्या वे महागठबंधन के साथ जाएंगे या फिर छोटे दलों से गठबंधन करेंगे या अकेले चुनाव मैदान में कूदेंगे? यह तो आने वाला समय ही बताएगा.