Holi 2023: बिहार का ऐसा गांव जहां होली खेलने से डरते हैं लोग, जानें क्यों 200 साल से नहीं खेला किसी ने रंग
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Holi 2023: बिहार का ऐसा गांव जहां होली खेलने से डरते हैं लोग, जानें क्यों 200 साल से नहीं खेला किसी ने रंग

रंगों का त्योहार हो और लोग इसमें सराबोर नहीं होना चाहें, वह रंग और गुलाल से बचना चाहें. पूरा का पूरा गांव ऐसा हो जहां इस पर्व की मस्ती देखने को ना मिले. जहां कहीं भी किसी भी चेहरे पर रंग नहीं हो. होली जैसे त्योहार में जब गांव की गलियां बेरंग हो तो आपको कैसा ख्याल आएगा.

(फाइल फोटो)

मुंगेर:  रंगों का त्योहार हो और लोग इसमें सराबोर नहीं होना चाहें, वह रंग और गुलाल से बचना चाहें. पूरा का पूरा गांव ऐसा हो जहां इस पर्व की मस्ती देखने को ना मिले. जहां कहीं भी किसी भी चेहरे पर रंग नहीं हो. होली जैसे त्योहार में जब गांव की गलियां बेरंग हो तो आपको कैसा ख्याल आएगा. वैसा एक गांव बिहार में है जहां लोग होली का त्योहार नहीं मनाते. दरअसल यह गांव बिहार के मुंगेर जिले में पड़ता है. बिहार में कल-कल बहती गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर यूं तो राम से लेकर कृष्ण तक की कई गाथाओं का गवाह रहा है. इस शहर में राम भी बसते हैं और कृष्ण भी, यहां शक्ति का भी वास है और शिव का भी लेकिन यहां के एक गांव के लोग ऐसे हैं जो होली के रंग से पिछले 200 सालों से अपने को अलग पाते हैं.    

यह गांव है सती स्थान गांव जहां आज भी लोग होली मनाने से डरते हैं, लोगों को लगता है कि कहीं उनके साथ होली की वजह से कोई अनहोनी ना हो जाए. बता दें कि यह गांव तारापुर अनुमंडल के असरगंज प्रखंड अंतर्गत सजूआ पंचायत पड़ता है. जहां 200 साल से लोगो के मन में होली के रंग का ऐसा खौफ है कि हर होली में इनके चेहरे रोज की तरह ही सफेद होते हैं. गांव में 1500 से ज्यादा लोग रहते हैं लेकिन इतनी बड़ी आबादी वाले गांव में लोग इतने लंबे समय से होली क्यों नहीं मनाते यह हम आपको बताते हैं. 

दरअसल होली का त्योहार आने के साथ ही सती स्थान गांव के लोगों के भीतर एक किस्म का डर समा जाता है और वह सचेत हो जाते हैं. यहां ना तो कई रंग-गुलाल लगाता है ना होली के दिन पकवान बनाता है. सबकुछ सामान्य दिनों की तरह यहां चलता है. यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां होली के दिन ही एक महिला अपने पति की चिता में जलकर सती हो गई थी. दरअसल यहां एक सती मंदिर भी है जिसके बारे में किवदंती है कि यहां एक पति-पत्नी रहते थे होली के दिन उसके पति का देहांत हो गया तो लोग उसके पति के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने लगे लेकिन वह शव अर्थी से बार-बार गिर जाता. उसकी पत्नी बेसुध थी और लोगों ने उशे घर में बंद कर रखा था लेकिन जैसे ही घर का दरवाजा खोला गया वह पत्नी भागकर अपने पति की अर्थी से लिपट गई. वह पति के साथ ही चिता में सती होने की जिद्द करने लगी. गांव वालों ने वहीं पास में ही चिता सजा दी. फिर पत्नी की छोटी अंगुली से आग निकली और चिता जल उठी. वह स्त्री अपनी पति की चिता में ही सती हो गई. इसके बाद लोगों ने वहां सती स्थल मंदिर का निर्माण कराया और पूजा करने लगे. 

कहते हैं तब से ही उस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि यहां के लोग कभी होली नहीं मनाते जो मनाता भी है उसके साथ या उसके परिवार के लोगों के साथ कुछ ना कुछ बुरा हो जाता है. ऐसे में इस गांव से बाहर रहनेवाले लोग भी इस त्योहार को नहीं मनाते हैं. गांव के लोग सख्ती से इस परंपरा का पालन करते आए हैं, ऐसे में इस गांव का नाम भी सती स्थान गांव रख दिया गया है. यहां के लोग होली के मौके पर जो पकवान नहीं बनाते वह गांव वाले रामनवमी के अवसर पर बनाते हैं. 

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