Uma Maheshvar Vrat: हर एक माह में एक बार पूर्णिमा तिथि पड़ती है. सभी पूर्णिमा तिथि का जुड़ाव , भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी या चंद्रमा से होता है. इन सभी पूर्णिमा का अलग अलग महत्व भी होता है.
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पटनाः Uma Maheshvar Vrat: हर एक माह में एक बार पूर्णिमा तिथि पड़ती है. सभी पूर्णिमा तिथि का जुड़ाव , भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी या चंद्रमा से होता है. इन सभी पूर्णिमा का अलग अलग महत्व भी होता है. लेकिन भादों की पूर्णिमा का खास जुड़ाव पहले शिव पार्वती से और फिर बाद में श्रीहरि से होता है. इसे हरिहर पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. भाद्रपद या भादो माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि कई मायनों में खास होती है. इस दिन उमा महेश्वर का व्रत रखा जाता है. इस दिन माता पार्वती और महेश्वर भगवान शिवजी की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसे पूर्व जन्म के पाप, दोष और श्रापों से मुक्ति मिलती है. धार्मिक कथाओं के अनुसार स्वयं भगवान विष्णु ने भी यह व्रत रखा था.
उमा महेश्वर व्रत की कथा
उमा महेश्वर व्रत की कथा का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है. कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे. रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई. महर्षिने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी. भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी. इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर बोले कि ‘तुमने भगवान शंकर का अपमान किया है. इससे तुम्हारी लक्ष्मी चली जाएगी. क्षीर सागर से भी तुम्हे हाथ धोना पड़ेगा और शेषनाग भी तुम्हारी सहायता न कर सकेंगे.’ यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा. इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा महेश्वर का व्रत करो, तभी तुम्हें ये वस्तुएँ मिलेंगी. तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियाँ भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं.
ये है व्रत की विधि
पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें. इसके बाद विधिवत तरीके से भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और उन्हें भोग अर्पित करें. पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिये. इसके बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करना चाहिये. यही विधान है. पूजन के बाद इस दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना चाहिए. ऐसा करना बिल्कुल न भूलें.
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