बिहार में बीजेपी के लिए चुनौती है 'सीमांचल', जानिए अमित शाह कैसे भेदेंगे किला
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बिहार में बीजेपी के लिए चुनौती है 'सीमांचल', जानिए अमित शाह कैसे भेदेंगे किला

2014 में जब देश में मोदी लहर चल रही थी तब भी बीजेपी यहां के 4 लोकसभा सीटों में से कोई सीट नहीं जीत सकी. 2019 में महज एक सीट पर जीत मिली.

बिहार दौरे पर आ रहे अमित शाह. (फाइल फोटो)

पटना: बिहार में नीतीश कुमार के हाथों लगे तगड़े झटके बाद लगता है बीजेपी ने अपनी नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है. बिहार में एक ऐसा इलाका है जहां बीजेपी शायद उतनी मजबूत नहीं है और इसलिए पार्टी इसी इलाके से मिशन बिहार 2024 और 2025 की शुरुआत कर रही है. सीधा केंद्रीय नेतृत्व यहां दखल देने जा रहा है.

  1. बीजेपी के लिए चुनौती है सीमांचल
  2. सीमांचल के जरिए शाह करेंगे शंखनाद

हम बात कर रहे हैं सीमांचल की. सितंबर में खुद अमित शाह बिहार के दो दिन के दौरे पर आ रहे हैं. और वो सीमांचल में ही अपने कार्यक्रम करेंगे. बिहार के सीमांचल में चार जिले हैं-पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज, जिनमें 24 विधानसभा सीट हैं. यादव मुस्लिम बहुल ये इलाका बीजेपी के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. लेकिन बिहार के बदले सियासी समीकरण के बाद यहां बीजेपी की चुनौती और बढ़ गई है. 

इसे समझना है तो इस इलाके के कुछ चुनावी नतीजों पर गौर करना चाहिए. 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सीमांचल से 9 सीट जीती थी. जेडीयू को 6, बीजेपी को 6  और आरजेडी को 3 सीटें मिली थीं. और एक सीट भाकपा माले को गयी थी. 

2020 के चुनाव में महागठबंधन को 7 सीटें मिली थीं. 5 सीटें AIMIM ने जीतीं और एनडीए को 12 सीटें मिली थीं. लेकिन ये 2020 की पिक्चर थी. अब पिक्चर बदल चुकी है. AIMIM के चार विधायक आरजेडी में जा चुके हैं. और एनडीए का साथी JDU भी आरजेडी से जाकर मिल गया है. तो इस वक्त सीमांचल में बीजेपी के पास महज 6 सीटें रह गई हैं. 

JDU के भी छह सीटें मिला दें तो महागठबंधन के पास अब सीमांचल की 24 सीटों में से 17 सीटें हैं. जाहिर है पलड़ा महागठबंधन की तरफ झुक गया है. कहा जाता है कि वोटर लोकसभा चुनाव में और अलग और विधानसभा चुनाव में अलग तरीके से वोट करता है लेकिन ये फलसफा सीमांचल तक आते-आते दम तोड़ देता है. 

2014 में जब देश में मोदी लहर चल रही थी तब भी बीजेपी यहां के 4 लोकसभा सीटों में से कोई सीट नहीं जीत सकी. 2019 में महज एक सीट पर जीत मिली. तो सीमांचल पर बीजेपी के फोकस की वजह समझ में आती है.

अमित शाह 23 सितंबर को पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में जनसभा को संबोधित करेंगे. 23 को ही वो पार्टी नेताओं के साथ बैठक करेंगे और इसके बाद 24 सिंतबर को किशनगंज में कार्यक्रम करेंगे. कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बीजेपी सघन अभियान चला रही है. 

गृहराज्य मंत्री नित्यानन्द राय ने अभी अभी अररिया- फारबिसगंज का दौरा किया है. वहां कई कार्यक्रम किए. 9 सितम्बर से पार्टी के बड़े नेता सीमांचल के दौरे पर रहेंगे और यहां प्रवास भी करेंगे. 

पार्टी यहां जनसंख्या वृद्धि और घुसपैठ जैसे मुद्दों को हवा देकर ध्रुवीकरण की अपनी परखी हुई रणनीति पर काम कर सकती है. आप कह सकते हैं कि अगर बीजेपी को बिहार में महागठबंधन के चक्रव्यूह को तोड़ना है तो उसे सीमांचल के तिलस्म को तोड़ना होगा. महागठबंधन के सामने चुनौती ये होगी कि कहीं ओवैसी उनका खेल न बिगाड़ दें.

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