पुण्यतिथि पर याद आए बिस्मिल्लाह खां, गंगा को मानते थे मां, डुमरांव में बसता था दिल
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पुण्यतिथि पर याद आए बिस्मिल्लाह खां, गंगा को मानते थे मां, डुमरांव में बसता था दिल

पुण्यतिथि पटना में बिस्मिल्लाह खा ट्रस्ट ने काली दास रंगालय में मनाया पुण्यतिथि बिस्मिल्लाह खा के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की गई.

बिस्मिल्लाह खां को पुण्यतिथि के दिन याद किया गया.

Patna: बिस्मिल्लाह खां की आज है पुण्यतिथि उनके गृह जिले बक्सर समय पूरे देश में मनाई जा रही है पुण्यतिथि पटना में बिस्मिल्लाह खा ट्रस्ट ने काली दास रंगालय में मनाया पुण्यतिथि बिस्मिल्लाह खा के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की गई.

गंगा को मानते थे अपनी मां
नजीर बनारसी का शेरसोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर-कर के...भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां पर नजीर की यह शायरी बेहद मुफीद है. बिस्मिल्लाह खां गंगा को अपनी मां मानते थे और कहते थे कि गंगा में स्नान करना हमारे लिए उतना ही जरूरी है, जितना जरूरी शहनाई बजाना. चाहे कितनी भी सर्दी हो गंगा में नहाए बिना तो सुकून नहीं मिलता.

बिहार के डुमरांव में बसता था दिल
बिस्मिल्लाह खान भले ही बनारसी रंग में रम गए थे मगर इनका दिल बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के लिए हमेशा कचोटता रहता था. डुमरांव में 21 मार्च 1916 को जन्में कमरुद्दीन मां के निधन के उपरांत अपने मामू अली बख्श के साथ बनारस तो किताबी तालीम हासिल करने आए थे, जहां वे अपनी आख़िरी दिनों की ‘बेग़म’ यानी शहनाई से दिल लगा बैठे. इस्लाम में संगीत के हराम होने के सवाल पर उस्ताद हंसकर कहते थे, ‘क्या हुआ इस्लाम में संगीत की मनाही है, क़ुरान की शुरुआत तो ‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती है.

शहनाई को मिली पहचान
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान भारतीय शास्त्रीय संगीत की वह हस्ती थे, जो बिहार की मिट्टी की सोंधी गमक और बनारस के लोक सुर को शास्त्रीय संगीत के साथ घोलकर अपनी शहनाई की स्वर लहरियों के साथ गंगा की सीढ़ियों, मंदिर के नौबतख़ानों से गुंजाते हुए न सिर्फ आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रीय महोत्सव में राजधानी दिल्ली तक लेकर आए, बल्कि सरहदों को लांघकर उसे दुनिया भर में अमर कर दिया. इस तरह मंदिरों, विवाह समारोहों और जनाजों में बजने वाली शहनाई अंतरराष्ट्रीय कला मंचों पर गूंजने लगी.

देश आज़ाद हुआ तो बजाई शहनाई
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ इस मौके पर बिस्मिल्लाह ख़ान शहनाई बजाने का मौका मिलने पर उत्साहित ज़रूर थे, लेकिन उन्होंने पंडित नेहरू से कहा कि वो लाल किले पर चलते हुए शहनाई नहीं बजा पाएंगे. 26 जनवरी, 1950 को भी लालकिले की प्राचीर से शहनाई वादन किया था.  1997 में जब आज़ादी की पचासवीं सालगिरह मनाई गई तो बिस्मिल्लाह ख़ान को लाल किले की प्राचीर से शहनाई बजाने के लिए फिर आमंत्रित किया गया.’ 

2006 में अलविदा कह गए
शहनाई को नौबतख़ानों से बाहर निकालकर वैश्विक मंच पर पहुंचाने वाले ख़ान साब ऐसे कलाकार थे जिन्हें भारत के सभी नागरिक सम्मानों पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न से सम्मानित किया गया. इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और ईरान के राष्ट्रीय पुरस्कार समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. जैसे उनकी शहनाई मंदिरों से लेकर दरगाहों तक गूंजती थी, वैसे ही उस्ताद बिस्मिल्लाह मंदिरों से लेकर लालकिले तक गूंजते हुए 21 अगस्त, 2006 को इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कर गए.

कालिदास रंगालय में हुआ कार्यक्रम
वहीं 2013 बिस्मिल्लाह खा के नाम से ट्रस्ट की स्थापना करने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव बिस्मिल्लाह खा के काफी करीब थे 2007 से ही पुण्यतिथि और जन्मतिथि को लेकर काफी सक्रिय रहें साथ ही बिस्मिल्लाह खा के नाम से किताब भी लिखा आज उनकी पुण्यतिथि है और इस मौके पर कालिदास रंगालय ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें पूर्व एमएलसी रणवीर नंदन बीजेपी के एमएलसी नवल यादव समेत कई लोगों ने शिरकत किया और कहा कि बिस्मिल्लाह खा के नाम से एक विश्वविद्यालय खोला जाए साथ ही बिहार सरकार और केंद्र सरकार उनके नाम से संगीत का पुरस्कार और संगीत के जुड़े अन्य चीजों को खोला जाए.

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