इमरजेंसी के वो काले दिन: जहां एक तरफ लोग थे खौफजदा, दूसरी तरफ घरों से उठाकर कराई जा रही थी नसबंदी!
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इमरजेंसी के वो काले दिन: जहां एक तरफ लोग थे खौफजदा, दूसरी तरफ घरों से उठाकर कराई जा रही थी नसबंदी!

25 जून 1975 की आधी रात को इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से आर्टिकल 352 का इस्तेमाल करते हुए आपातकाल के कागजात पर हस्ताक्षर करवाए. तब इंदिरा ने इसकी जानकारी अपने मंत्रीमंडल के लोगों को भी नहीं दी थी. फिर इंदिरा ने रेडियो के माध्यम से देश में आपातकाल की घोषणा कर दी.

(फाइल फोटो)

Emergency in India: 25 जून 1975 की आधी रात को इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से आर्टिकल 352 का इस्तेमाल करते हुए आपातकाल के कागजात पर हस्ताक्षर करवाए. तब इंदिरा ने इसकी जानकारी अपने मंत्रीमंडल के लोगों को भी नहीं दी थी. फिर इंदिरा ने रेडियो के माध्यम से देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई. सरकार के इस फैसले को जब तक लोग समझ पाते तब तक सेना ने मोर्चा संभाल लिया था. इसी दिन दोपहर में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता जेपी के नेतृत्व में रामलीला मैदान में लाखों की संख्या में जुटी थी.  

सरकार चाहती नहीं थी कि मीडिया के जरिए तेजी से यह सूचना देश के आम जन तक पहुंचे ऐसे में मीडिया संस्थानों पर अंकुश लगाना जरूरी था. सरकार जनता के बीच इस जानकारी को धीरे-धीरे फैलने देना चाहती थी. 26 जून की सुबह इंदिरा ने ही मोर्चा संभाला और ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से खुद आपातकाल की घोषणा कर दी. लोग सन्न रह गए थे कि अचानक देश को किस आग में झोंक दिया गया. पहले से परेशान देश की जनता और घबरा गई. कई विदेशी अखबारों के ब्यूरो चीफ को देश छोड़ने का आदेश जारी कर दिया गया. सरकार नहीं चाहती थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी आलोचना हो. 

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इस सब के बीच जनता कुछ समझ पाती देश में जबर्दस्ती नसबंदी का दौर शुरू हो गया. लोगों को पकड़-पकड़कर नसबंदी कराई जाने लगी. संजय गांधी के बारे में तब के लोग बताते हैं कि वह बढ़ती जनसंख्या को देश की समस्या की वजह मानते थे. ऐसे में आपातकाल की यह ऐसी काली घटना थी जो तब के लोग अपने भीतर से निकाल नहीं पा रहे हैं. 50 लाख से ज्यादा लोगों की जबरन नसबंदी करा दी गई. ‌

तब भले आपातकाल इंदिरा गांधी ने लगाया था लेकिन राजनीति में तेजी से संजय गांधी सक्रिय हो रहे थे. ऐसे में संजय कांग्रेस के युवा संगठन यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में अपना खासा प्रभाव रखते ही थे तो इस संगठन से जुड़े लोगों ने लोगों को घरों से उठाना शुरू किया और जबरन नसबंदी की प्रक्रिया शुरू हो गई. 2000 से ज्यादा लोगों की इसमें जान चली गई. 

संजय गांधी को लगता था कि पूर्व में सरकार की तरफ से कंडोम को लेकर जो अभियान चलाया गया था उसका कोई असर नहीं हो रहा है. ऐसे में उन्होंने आपातकाल के दौरन प्रदेश के  मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया कि वह अपने प्रदेश में नसबंदी अभियान को सख्ती से लागू करें. हरियाणा में तो 3 हफ्ते के भीतर ही 60 हजार से ज्यादा लोगों की नसबंदी करवा दी गई.फिर दूसरे राज्यों पर दबाव पड़ा और फिर तो प्रदेश में अधिकारियों को इसके लिए टारगेट दे दिए गए. तब सरकार की तरफ से नसबंदी करवाने वालों को 120 रुपये या एक टीन खाने का तेल या एक रेडियो लेने का विकल्प दिया जाने लगा था. 
 

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