एक मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया तो इस मांझी ने ऐसी मशीन बनाई, जो किसानों के लिए बन सकती है वरदान
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एक मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया तो इस मांझी ने ऐसी मशीन बनाई, जो किसानों के लिए बन सकती है वरदान

 आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, तात्पर्य यह कि जब हमें किसी चीज की सख्त जरूरत होती है तो हम उस जरूरत को पूरा करने के साधन और तरीके मिल जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप कुछ आविष्कार किया जाता है. कुछ ऐसा ही दशरथ मांझी ने किया था.

 (फाइल फोटो)

बांका: आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, तात्पर्य यह कि जब हमें किसी चीज की सख्त जरूरत होती है तो हम उस जरूरत को पूरा करने के साधन और तरीके मिल जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप कुछ आविष्कार किया जाता है. कुछ ऐसा ही दशरथ मांझी ने किया था. पहाड़ की वजह से उनकी पत्नी को सही समय पर इलाज नहीं मिल पाया था, जिसके बाद उन्होंने पहाड़ को काटकर सड़क बना दी थी. कुछ इसी तरह अमरपुर के शोभानपुर पंचायत के किसनपुर गांव के किसान अशोक मांझी ने किया है. उन्होंने सड़क तो नहीं बनाई है लेकिन कुछ ऐसा जरूर बनाया है, जिससे किसानों की काफी ज्यादा मदद हो सकती है.

अमरपुर के शोभानपुर पंचायत के किसनपुर गांव के किसान अशोक मांझी वैसे तो कम पढ़ें-लिखें हैं, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा बना दिया है, जिससे हर कोई हैरान हैं. उन्होंने ग्रामीण संसाधन यूं कहें तो देशी जुगाड़ से किसानों के लिए एक ऐसी मशीन का आविष्कार कर दिया जिसकी जरूरत सभी किसानों को है. अशोक मांझी ने बताया कि क्षेत्र के किसानों को धान की खेती के समय मजदूरों की काफी किल्लत हो जाती है. ऐसे में धान रोपाई की बात तो दूर बीचड़ा उखाड़ने तक के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है. वह खुद भी इस समस्या से हर साल जूझते हैं. उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए मशीन बनाने का संकल्प लिया. उन्होंने देशी जुगाड़ से बीचड़ा उखाड़ने बनाने के लिए सामान जुटाने का काम करने लगे. 

उन्होंने बताया कि करीब तीन वर्षों से वह लोहे की कटिंग करने तथा इसको जोड़ने का काम शुरू किया. शुरू में इसमें कुछ परेशानी हुई लेकिन वह इसमें लगे रहे. पिछले दिनों इसमें उन्हें सफलता मिली. उन्होंने सबसे पहले अपने खेत में इसका परीक्षण किया. इसमें उन्होंने खेत में लगे बीचड़े को उखाड़ा. इस मशीन के नीचे एक चदरा रखा जाता है जो बीचड़ा उखाड़ते ही आगे या पीछे हो जाता है, साथ ही यह एक साथ बड़ी मात्रा में बीचड़ा उखाड़ता है. यदि इस मशीन को कृषि विज्ञान केंद्र से स्वीकृति मिल जाती है तो किसानों को इसका काफी लाभ मिलेगा. जबकि सिर्फ 50 हजार रुपए में मिनी ट्रैक्टर का निर्माण किया जो बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर से उन्हें सर्टिफिकेट भी मिला है. श्री मांझी की इस उपलब्धि पर क्षेत्र के किसानों ने खुशी व्यक्त की है.

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