Independence Day 2023: आज भी साधारण जीवन जीता है देश के प्रथम राष्ट्रपति का परिवार, नहीं लिया उनके पद का फायदा
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Independence Day 2023: आज भी साधारण जीवन जीता है देश के प्रथम राष्ट्रपति का परिवार, नहीं लिया उनके पद का फायदा

Independence Day 2023: बिहार के सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड स्थित जीरादेई गांव में 3 दिसम्बर 1884 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था. अपने आपको इतिहास में अमर कर राजेंद्र बाबू 28 फरवरी 1963 को इस लोक से उठकर परमात्मा के प्रेमत्व में समाहित हो गये.

Independence Day 2023: आज भी साधारण जीवन जीता है देश के प्रथम राष्ट्रपति का परिवार, नहीं लिया उनके पद का फायदा

सीवान: Independence Day 2023: बिहार के सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड स्थित जीरादेई गांव में 3 दिसम्बर 1884 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था. अपने आपको इतिहास में अमर कर राजेंद्र बाबू 28 फरवरी 1963 को इस लोक से उठकर परमात्मा के प्रेमत्व में समाहित हो गये. डॉ राजेन्द्र प्रसाद आधुनिक भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे. वह एक अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी ,एक प्रख्यात विधिवेत्ता,एक सुयोग्य प्रशासक, परम संत व मानवतावादी नेता थे. महात्मा गांधी के पक्के अनुयायी होने के साथ -साथ वह भारतीय संस्कृति, सभ्यता की सभी उत्तम विशेषताओं से युक्त थे.

राजेंद्र प्रसाद ने देश में पेश की थी मिसाल

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने देश में एक मिसाल पेश की थी. वो जब तक राष्ट्रपति के पद पर रहे,उन्होंने प्रयास किया की उनका परिवार साधारण जिंदगी ही जिए. परिवार और किसी भी रिश्तेदार को पद का लाभ कभी नहीं उठाने दिया वो चाहते थे की पूरी जिंदगी साधारण तरीके से ही जिए. वह खुद नहीं चाहते थे कि उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार राष्ट्रपति पद की गरिमा पर कोई आंच आने दे.

परिवार से कोई भी बहुत ज्यादा सक्रिय राजनीति में नहीं रहा

राजेंद्र प्रसाद के तीन बेटे थे. बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद,दूसरे एवं तीसरे बेटे धनंजय प्रसाद व जनार्दन प्रसाद. बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद 1977 में आपातकाल के बाद दो बार सांसद रहे हैं. एक बार सीवान और दूसरी बार महाराजगंज से सांसद रहे. इसके बाद फिर कभी सियासत में सक्रिय नहीं रहे. दूसरे एवं तीसरे बेटे धनंजय प्रसाद व जनार्दन प्रसाद छपरा में साधारण जिंदगी जीते रहे. खेती कर अपनी जीविका चलाते थे. राजेंद्र प्रसाद के बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद के पुत्र अरुणोदय प्रकाश और धनंजय प्रसाद के पुत्र बाला जी वर्मा भी लाइमलाइट से दूर रह कर अपना जीवन यापन करते है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियां झारखंड में रहती हैं. एक पोती जमशेदपुर, दूसरी पोती रांची और तीसरी पोती पटना में रहती है.

जयंती पर पैतृक आवास पर पहुंचते हैं पोते और पोती

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पोते और पोतियां उनके जयंती पर जीरादेई स्थित उनके पैतृक आवास पर पहुंचते हैं. जहां आवास परिसर में स्थित उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. उनके पोते और पोतियों को आज भी उम्मीद रहती है कि आने वाले किसी भी सरकार की तो आंखें जरूर खुलेगी .जो बाबू की जीरादेई गांव व उनके आवास को विकसित करने का काम करेगी.

3 बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने राजेंद्र बाबू

ऐसा कहा जाता है कि गांधी जी ने अपने तीन सहयोगियों को राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण कार्यभार सौंपा था- एक जवाहरलाल नेहरू, जो युवा जोश का प्रतिनिधित्व करते थे, दूसरे सरदार पटेल, जो लौह दृढ़ता वाले व्यावहारिक नेता थे और तीसरे डा. राजेंद्र प्रसाद, जो ऐसे नेता थे जिनमें उन्हें अपनी छवि दिखाई देती थी. राजेंद्र प्रसाद अपने व्यावहारिक गुणों के कारण 1934, 1939 और 1947 में तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. वे संविधान की रूपरेखा बनाने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष भी रहे. भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनके योगदान ने भारतीय राजव्यवस्था पर अमिट छाप छोड़ी और उनके द्वारा स्थापित आदर्श आज भी गणतंत्र के लिए दिशा-निर्देशक तत्व हैं.

सभी कहते है बाबू

उनके पैतृक संपत्ति के प्रबंधक बच्चा सिंह ,बांके बिहारी सिंह,प्रफुल्ल चंद वर्मा जो राजेन्द्र बाबू के सानिध्य पा चुके हैं. उन्होंने बताया कि बाबू हम लोगों के लिये भगवान श्री राम थे. आजीवन उनके आदर्शों पर चल देश की सेवा किया. इस लिये जीरादेई में कोई उनका नाम रखकर नहीं पुकारता है सभी बाबू ही कहते हैं.डॉ राजेन्द्र प्रसाद अपने आप में उच्च कोटि के साहित्यकार थे।हिंदी के अलावा वह संस्कृत,उर्दू,फ़ारसी,अंग्रेजी व भोजपुरी के भी ज्ञाता थे. कुछ समाचार पत्रों के संपादन करने के अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी व हिंदी में कई पुस्तकें भी लिखी थी. वर्ष 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में हिंदी साप्ताहिक देश और अंग्रेजी पाक्षिक सर्च लाइट का संपादन किया. वास्तव में बाबू बहुमुखी प्रतिभा के धनी व अपरिमेय मूल्य के रत्न थे.

इनपुट- अमित सिंह

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