Nag Panchami: जल, जंगल, जमीन से लेकर, ज्योतिष तक है नागों की उपस्थिति, जानिए क्यों मनाते हैं नागपंचमी
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Nag Panchami: जल, जंगल, जमीन से लेकर, ज्योतिष तक है नागों की उपस्थिति, जानिए क्यों मनाते हैं नागपंचमी

Nag Panchami: नागों का वर्णन प्राचीन काल से मनुष्यों के इतिहास में शामिल होता है. कई पौराणिक कथाओं में नाग एक किरदार की तरह रहे हैं

Nag Panchami: जल, जंगल, जमीन से लेकर, ज्योतिष तक है नागों की उपस्थिति, जानिए क्यों मनाते हैं नागपंचमी

पटनाः Nag Panchami: कविवर रामधारी सिंह दिनकर ने जब रश्मिरथी का लेखन किया तब उन्होंने पूरी एक कविता, मनुष्य और सर्प के नाम से लिखी. कविता में रश्मिरथी कर्ण और तक्षक कुल के नाग अश्वसेन का वर्णन है. यह नाग खांडवप्रस्थ जलाए जाने को लेकर अर्जुन से अपना पुराना बदला लेना चाहता है. मौका देखकर वह कर्ण के तुणीर में घुस जाता है. सर्प, कर्ण से प्रार्थना कर रहा है कि मुझे अपने तीर पर बैठाकर अर्जुन की ओर संधान कर. तेरा शत्रु तेरे वार से बच भी गया तो भी मेरे विष से नहीं बचेगा. कर्ण उसे मना कर देता है और इस बातचीत में वह सर्पों के गुण-धर्म भी बताता है. कर्ण कहता है कि विषैले होने के बाद भी सर्प पवित्र रहे हैं. तू शिव का हार है, विष्णु की शैय्या है. धरती का धरणीधर है, इसलिए अपने ऊपर धोखे का कलंक मत लगा. अपने साथ मुझे भी इस कलंक में न मिला, कर्ण ने जो वर्णन किया, यह संवाद भारतीय सनातनी परंपरा में नागपंचमी मनाए जाने की अवधारण को सामने रखता है.  

नागपंचमी के रूप में नागों की पूजा प्रकृति और जीव-जंतु मात्र की पूजा का प्रतीक है. नागपंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. इस समय वर्षा शुरू होते ही कृषि प्रधान भारत में कृषक खेतों की ओर जाते हैं तथा बिलों में पानी भरने के कारण सर्प बाहर आ जाते हैं, भय में कोई इन सर्पों की हत्या न कर दे, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विधान माना गया है. सांप सिर्फ भक्षक ही नहीं कीट-पतंगों और चूहों से फसलों की रक्षा भी करते आए हैं और किसानों के मित्र भी हैं. भारत में नागपंचमी पर नाग की पूजा कहीं साकार, कहीं, मूर्ति तो कहीं गोबर-घी आदि से बनी आकृति-भित्ती चित्रों के रूप में की जाती है. 

प्राचीन काल में नागों का वर्णन
नागों का वर्णन प्राचीन काल से मनुष्यों के इतिहास में शामिल होता है. कई पौराणिक कथाओं में नाग एक किरदार की तरह रहे हैं. पुराणों में वर्णन है कि समुद्र-मंथन में वासुकी नाग को मंदराचल पर्वत के आस-पास लपेटकर रस्सी की तरह उपयोग किया गया. भगवान शिव, सर्पहार ही पहनते हैं. गणेश जी कमरबंद की तरह इस्तेमाल करते हैं. महादेव शिव की स्तुति शिवाष्टक में भी वर्णन है कि: “गले रुंडमालम तनौ सर्पजालं” जिसका मतलब है शंकरजी का पूरा शरीर सांपों के जाल से ढंका है.

पुराणों में नाग महिमा
इसी प्रकार भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं. भगवान विष्णु के ध्यान मंत्र में यही बोला जाता है कि: “शांताकारम भुजग शयनं पद्मनाभं सुरेशं”. रामायण में विष्णु अवतार भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग के अवतार है. रामायण में ही रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी सुलोचना, नागकन्या थी और शेषनाग की पुत्री थी. रामायण में ही सुरसा राक्षसी नागों की माता बताई गई हैं. इसी तरह महाभारत में अर्जुन नागकन्या उलूपी से विवाह करता है. अर्जुन का बेटा परीक्षित तक्षक नाग के डंसने से मारा जाता है. इससे क्रोधित जन्मेजय ने जब नाग यज्ञ किया तो धरती के अधिकांश नाग भस्म हो गए. तब वासुकी नाग की बहन और ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने नाग यज्ञ रुकवाया और सर्पों की रक्षा की. कहते हैं कि जन्मेजय और आस्तीक-आस्तीक जपने वाले को सर्पदंश का भय नहीं होता है.

हर कथा में एक किरदार हैं नाग
दधीची ऋषि की अस्थियों से बने अस्त्र से इन्द्र के हाथों मारा गया वृत्तासुर भी नागराज ही था. वेदों में सांप का नाम अहि मिलता है. इसके अलावा अनेक रूपों में नाग जाति के बारे में लिखा गया है. इसके अलावा नागों के नाम पर अस्त्र भी हैं. मेघनाद ने नागपाश में राम-लक्ष्मण को बांध लिया था. श्रीकृष्ण कालिया नाग का दमन करते हैं और दुर्योधन के विष से बेहोश हुए भीम नागलोक पहुंच जाते हैं. यहां उन्हें 100 हाथियों के बराबर बल प्राप्त हो जाता है. यम की रस्सी भी नागों की बनी बताई जाती है. जीवन में कर्म की डोर जो कि स्वर्ग और नर्क से जुड़ी बताई जाती है, कहते हैं कि वह भी असल में एक नाग ही है. एक बार नहुष नाम के राजा को इंद्र बनाया गया, लेकिन वह अपने कर्म से मुक्त नहीं हो पाया. उसकी लालसा में लपलपाती जीभ देखकर ऋषियों ने उसे सर्प हो जाने का श्राप दे दिया. 

ज्योतिष में भी नाग 
जहां तक ज्योतिष की बात है को सर्प यहां भी हैं. नवग्रहों में राहु के दोष से पीड़ित सर्प का पूजन करते हैं. ज्योतिष कहता है कि हर ग्रह के दो देवता होते हैं. इसमें राहु के अधिदेवता काल और प्रतिदेवता सर्प माने जाते हैं. यही वजह है कि जिन लोगों की कुंडली में राहु दोष होता है उन्हें अधिदेवता काल और प्रतिदेवता सर्प की पूजा करने की सलाह दी जाती है. इसे ही कालसर्प दोष पूजा कहते हैं. ज्योतिष में सर्प राहु के साथ भी और नक्षत्रों के साथ भी है. 27 नक्षत्रों में अश्लेषा नक्षत्र के देवता भी सर्प ही हैं. अश्लेषा का स्वामी सर्प ही माना गया है. ठीक इसी तरह बारिश के दिनों में सूर्य जब रोहिणी से हस्त नक्षत्र के बीच यात्रा करता है तो इन नक्षत्रों में एक का वाहन सर्प भी होता है और इन्हीं वाहनों से ज्योतिषी वर्षा का होना, न होना, कम या ज्यादा होने के अनुमान लगाते हैं. 

कहने का तात्पर्य है, नाग या सर्प सिर्फ जमीन पर रेंगने वाले प्राणी नहीं हैं, बल्कि मनुष्यों की तरह और उनके बराबर ही उनका भी इतिहास है. वह खुद एक देवता हैं जो तबसे हैं जब से मानव सभ्यता है. कई सभ्यताओं ने अपना प्रतीक चिह्न नागों को बनाया है. कश्मीर का अनंतनाग जिला, किसी समय में नागों की समृद्ध राजधानी था. इसके प्रमाण आज भी वहां मिलते हैं और कई लोककथाओं में इनका जिक्र होता है.

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