Navratra 2024: नवरात्र या नवरात्रि... क्या कहना सही होगा?
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Navratra 2024: नवरात्र या नवरात्रि... क्या कहना सही होगा?

Navratra 2024: आचार्य पंडित प्रमोद शुक्ला ने नवरात्र या नवरात्रि को लेकर विस्तार से बताया है. उनका कहना है कि नवरात्रि संस्कृत व्याकरण के हिसाब से शुद्ध शब्द नहीं है, इसलिए नवरात्र कहना ही सही होगा. 

नवरात्र 2024

Navratra 2024: आजकल नवरात्र को नवरात्रि भी कहते हैं लेकिन संस्कृत व्याकरण के अनुसार "नवरात्रि" कहना गलत है. आचार्य पंडित प्रमोद शुक्ला का कहना है कि नौ रात्रियों का समूह होने और द्वन्द्व समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप "नवरात्र" में ही शुद्ध है. नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां आती हैं. इनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं.

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पंडित प्रमोद शुक्ला का मानना है, इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है और ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं. अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन—मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम "नवरात्र" है.

अब सवाल है कि नवरात्र में नौ दिन या नौ रात को गिना जाना चाहिए? तो मैं यहाँ बता दूं कि अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी "नवरात्र" नाम सार्थक है.

चूंकि यहां रात गिनते हैं. इसलिए इसे नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है. रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है और इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है. 

इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है और इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं.

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उनका कहना है कि हालांकि, शरीर को सुचारु रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं, लेकिन अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छह माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है.

इसमें सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है, क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है.

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