साधनों की कमी के बीच एक पैर के सहारे अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहे मुकीम, सरकार से लगाई ये गुहार
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar2355681

साधनों की कमी के बीच एक पैर के सहारे अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहे मुकीम, सरकार से लगाई ये गुहार

Archer Mukim: मुकीम ने दिल्ली में एक खाली मैदान में तीरंदाजी का अभ्यास करते है. उनका सपना पैरा ओलंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करना है. सुबह के समय मुकीम तीरंजादी का अभ्यास करते है और उसके बाद किराना दुकान पर काम करते है.

साधनों की कमी के बीच एक पैर के सहारे अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहे मुकीम, सरकार से लगाई ये गुहार

Indian Archers Mohammed Mukim: ओलंपिक 2024 की मेजबानी इस बार पेरिस कर रहा है. 26 जुलाई से अलग-अलग वर्ग में प्रतियोगिताएं शुरू हो गई है. भारत के कई एथलीट्स ऐसे है जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया है. हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह अपने करियर में एक बार ओलंपिक में खेले. लेकिन यह सपना उन्हीं एथलीट्स का पूरा होता है जिन्हें समय पर सही साधन और सुविधाएं मिल जाती हैं. जिनके पास ये साधन नहीं होते, वे आज भी संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं सहरसा के दामाद दिव्यांग तीरंदाज 30 वर्षीय मोहम्मद मुकीम. उन्हें देखकर विश्वास नहीं होता कि उन्होंने इतने दर्द, संघर्ष और उलाहना सहकर आगे बढ़े होंगे. उनकी मुश्किलें आज भी कम नहीं हुई हैं, लेकिन मुकीम ने हर वह काम करने में महारत हासिल कर ली है जो सामान्य लोग भी नहीं कर पाते है.

देश के लिए पदक लाने का मुकीम देख रहे सपना
मुकीम बचपन से ही दिव्यांग होते हुए भी अपने जीवन में बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना कर बहुत सी ऐसी उपलब्धियां हासिल कर दिखाई, जिनके लिए सामान्य व्यक्ति कई बार जीवनभर प्रयास ही करता रह जाता है. शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हुए मुकीम ने तीरंदाज के तौर पर भविष्य को चुना, ब्लकि अन्य दिव्यांग बच्चों की प्रेरणा भी बन रहे हैं. हालांकि वक्त ने मुकीम का इम्तिहान हर एक मोड़ पर लिया, मगर उनके हौसले हमेशा बुलंद रहे हैं. उन्होंने बताया कि परिवार में पिता जमील अहमद, माता मुखिदा बेगम के अलावा चार भाई व एक बहन है. माता-पिता अकसर बीमार रहते थे. परिवार के पालन पोषण के चलते पढ़ाई के साथ तीरंजादी का अभ्यास भी बीच सफर में ही छोड़ना पड़ा. इतने रुपये नहीं हुआ करते थे कि किसी तीरंदाजी सेंटर में जाकर अपनी तैयारी को बरकार रखा जा सके.

किराना की दुकान पर करते है काम
वर्तमान में मुकीम दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते है. परिवार की आर्थिक स्थिति को देखकर महज 12 साल की उम्र से किराना की दुकान पर काम किया. समय के साथ जब जिम्मेदारियां भी बढ़ी तो उन्होंने कॉलोनी में ही किराय पर छोटी सी किराना दुकान खोल ली. उन्होंने बताया कि घर के खर्चे से बचे हुए रुपये को जोड़कर एक सेकंड हैंड लकड़ी का साधारण सा धनुष खरीदा. दिनभर मुकीम दुकान में बैठते है और सुबह के समय तीरंदाजी का अभ्यास करते है. अपनी तैयारी के दम पर उन्होंने पंजाब में आयोजित पैरा थर्ड तीरंदाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक दिल्ली के नाम कर अपनी पहचान बनाई.

सड़क दुर्घटना में कट गया था पैर
मुकीम बताते है कि त्रिलोकपुरी स्थित एक बस दुर्घटना में पैर पूरी तरह कुचल गया था. जिसके चलते डॉकटरों को पैर काटना पड़ा. जब यह हादसा हुआ था तो वह महज 8 साल के थे. दुर्घटान के बाद सब कुछ खत्म सा हो गया था. करीब साल भर तो ठीक से चल तक नहीं पाया, लेकिन एक जीद थी जिंदगी के दौड़ में खुद को जीतना. आज उसी जिद से अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहा हूं.

एक साल की मेहनत से बन गए राष्ट्रीय तीरंदाज
मुकीम के कोच आसिफ ने बताया कि मुकीम के घर की आर्थिक स्थिति खराब है, लेकिन उन्होंने अपनी दिव्यांगता के साथ आर्थिक कठिनाइयों को भी पीछे छोड़ दिया. उन्होंने एक साल तक जमकर मेहनत की और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन किया. इसके बाद उनका चयन राष्ट्रीय पैरा नेशनल प्रतियोगिता के लिए हुआ. महाराष्ट्र में आयोजित पैरा थर्ड तीरंदाजी चैंपियनशिप 2009 में उन्होंने दिल्ली के लिए दो रजत पदक जीते. साथ ही, रोहतक में आयोजित प्रतियोगिता में टीम के साथ मिलकर एक स्वर्ण पदक भी जीता. मुकीम का सपना है कि वह पैरा ओलंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करें.

एथलीट्स के लिए क्या कर रही सरकार
पूर्व भारतीय क्रिकेटर और सांसद कीर्ति आजाद ने संसद में भारतीय एथलीट्स की स्थिति पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि कैसे खिलाड़ी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. जैवलिन थ्रोवर नीरज चोपड़ा का उदाहरण देते हुए कीर्ति आजाद ने कहा कि आज नीरज चोपड़ा की बहुत तारीफ होती है, लेकिन स्वर्ण पदक जीतने से पहले सरकार ने उनके लिए क्या किया? उन्होंने अभिनव बिंद्रा और कर्णम मल्लेश्वरी का भी जिक्र करते हुए पूछा कि उनकी जीत से पहले सरकार और शूटिंग फेडरेशन ने उनके लिए क्या किया? एशियन गेम्स, वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक में भेजने से पहले हमारे एथलीट्स के लिए क्या किया गया? आज भी कई एथलीट्स जो बहुत काबिल हैं, लेकिन साधनों की कमी के कारण संघर्ष कर रहे हैं. खेलो इंडिया शुरू किया गया है, जो अच्छी बात है, लेकिन साईं (SAI) आज हमारे खिलाड़ियों के लिए क्या कर रहा है?

हमारा सुझाव
मुकीम के पास एक पैर नहीं है, लेकिन वह साधारण लकड़ी के धनुष से पूरी मेहनत कर देश के लिए पैरा ओलंपिक में पदक लाने की कोशिश कर रहा है. नेशनल स्तर पर मुकीम ने कई पदक जीते हैं. इस होनहार खिलाड़ी को हरसंभव सहयोग प्रदान करना अब सरकार और भारतीय तीरंदाजी संघ का दायित्व होना चाहिए, विशेषकर खेल मंत्रालय का. अगर मुकीम को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, तो वह बड़े स्तर पर देश का नाम रोशन करेगा.

ये भी पढ़िए- Industrial Cities in Bihar: देशभर में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे रहा बिहार, ये 12 नये औद्योगिक शहर भी है शामिल

 

Trending news