Rama Ekadashi Puja Vidhi: रमा एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत करने के लिए संकल्प लें. जिस प्रकार आप व्रत कर सकते हैं, उसी के अनुसार संकल्प लें
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पटनाः Rama Ekadashi Puja Vidhi: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. यह माता लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध एकादशी है. पौराणिक ग्रंथों में एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ बताया गया है. इस तिथि में रखा जाने वाला व्रत भी सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है. एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है. इस व्रत में विशेष नियम और अनुशासन का पालन करना होता है. मान्यता है कि विधि पूर्वक एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
रमा एकादशी व्रत-पूजन विधि
रमा एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत करने के लिए संकल्प लें. जिस प्रकार आप व्रत कर सकते हैं, उसी के अनुसार संकल्प लें, जैसे- यदि पूरा दिन निराहार रहना चाहते या फिर एक समय फलाहार करना चाहते हैं. इसके बाद तांबे के लोटे से सूर्य देव को जल का अर्घ्य दे. इस एकादशी पर तुलसी, आंवले और पीपल के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है. फिर एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं. फिर उस पर लाल कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं. चावल और फूलों से कुमकुम की पूजा करें. इसके बाद चौकी पर भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण की तस्वीर या प्रतिमा रखें.
पंचोपचार करें पूजन
इसके बाद भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार से पूजा करें. यदि आप स्वयं पूजा नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण को पूजा के लिए बुलाएं. देवी लक्ष्मी की लाल पुष्प से पूजा करनी चाहएि.
फिर धूप और दीप, अगरबत्ती जलाएं. उनको फूलों का हार चढ़ा कर मस्तक पर चंदन का तिलक लगाएं. इसके बाद भगवान को नैवेद्य, नारियल, फूल, प्रसाद का भोग लगाएं. भगवान वष्णिु को तुलसी, माखन और मिश्री का भोग लगाएं तो अति उत्तम रहेगा. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें.
ऐसे करें पारण
फिर भगवान विष्णु की आरती करें, कथा का श्रवण करें. जो लोग कथा का पाठ नहीं कर सकते हैं उन्हें व्रत कथा सुननी चाहिए. प्रसाद भक्तों को बांट दें. शाम को भी भगवान की पूजा और संकीर्तन करें. इस एकादशी पर दीपदान भी किया जाता है. एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है. अगले दिन प्रातः उठकर पूजा पाठ करने के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाएं उन्हें दान दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करें. उसके बाद स्वयं व्रत का पारण (भोजन ग्रहण) करें.
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