आंदोलन में नेताओं की भीड़ में लालू कहीं खो ना जाए, इसके लिए उन्होंने बड़ी चाल चली थी. उन्होंने खुद ही अपनी मौत की खबर उड़ा दी. इस खबर के सामने आते ही पूरे बिहार में लालू यादव की चर्चा होने लगी. इस खबर से खुद जेपी तक दुखी हो गए थे.
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Lalu Yadav Special: लंबी बीमारी से उबरने के बाद अब वह सक्रिय राजनीति में एक्टिव हो चुके हैं. राजद सुप्रीमो एक बार फिर से राजनीतिक मंचों पर नजर आने लगे हैं और अपने पुराने अंदाज में ही विरोधियों पर निशाना साध रहे हैं. राजद सुप्रीमो के पुराने तेवरों को देखकर उनके समर्थक काफी खुश हैं. ये तो सभी जानते हैं कि लालू छात्र-जीवन से ही राजनीति में उतर चुके थे और जेपी आंदोलन ने उन्हें बड़ा नेता बनाया. जेपी आंदोलन ने बिहार में नेताओं की नई पौध तैयार की थी. लालू यादव के अलावा नीतीश कुमार, शरद यादव, रामविलास पासवान, रविशंकर प्रसाद और सुशील कुमार मोदी भी इसी आंदोलन से बड़े नेता बनें.
इस भीड़ में लालू कहीं खो ना जाए, इसके लिए उन्होंने बड़ी चाल चली थी. उन्होंने खुद ही अपनी मौत की खबर उड़ा दी. इस खबर के सामने आते ही पूरे बिहार में लालू यादव की चर्चा होने लगी. इस खबर से खुद जेपी तक दुखी हो गए थे. बस यहीं से लालू यादव राजनीत की ड्राइविंग सीट पर बैठे थे. दरअसल, जनवरी 1974 में गुजरात के छात्रों ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. नतीजन इंदिरा सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा डाला. गुजरात से उठी इस आंदोलन की आंच बिहार की राजधानी पटना तक पहुंच गई.
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18 मार्च 1974 को पटना में छात्रों और युवकों द्वारा आंदोलन शुरू किया गया था. इसे बाद में जेपी का नेतृत्व मिला था. उस वक्त बिहार विधानसभा का सत्र चल रहा था. छात्रों ने बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से इस्तीफे की मांग की. छात्रों ने राज्यपाल को विधानसभा सत्र में जाने से रोकने का प्लान बनाया. सत्ताधारी दल के विधायकों को इस योजना का पता लग गया और सुबह 6 बजे ही विधान मंडल भवन में आ गए. उधर प्रशासन को राज्यपाल आरडी भंडारे को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने का आदेश मिला हुआ था.
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