बिहार की सियासत में इफ्तार का अलग ही महत्व है. यहां लोगों ने इफ्तार की पार्टी के बाद सरकार को बनते और बिगड़ते देखे हैं. राजनीतिक शत्रुओं को एक साथ लोग एक मंच पर यहां देख सकते हैं. ऐसा ही कुछ रविवार को राबड़ी के आवास पर हुआ जब दो सियासी दुश्मनों का जमावड़ा वहां लगा था.
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पटना: बिहार की सियासत में इफ्तार का अलग ही महत्व है. यहां लोगों ने इफ्तार की पार्टी के बाद सरकार को बनते और बिगड़ते देखे हैं. राजनीतिक शत्रुओं को एक साथ लोग एक मंच पर यहां देख सकते हैं. ऐसा ही कुछ रविवार को राबड़ी के आवास पर हुआ जब दो सियासी दुश्मनों का जमावड़ा वहां लगा था. एक तरफ तो पप्पू यादव 5 साल बाद राबड़ी के आवास में कदम रख चुके थे तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार हमला बोलने वाले चिराग पासवान भी यहां इफ्तार की पार्टी में शामिल हुए.
बता दें कि रविवार को ही चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने मोकामा में पत्रकारों से साफ कह दिया था कि वह उनका भतीजा नहीं है. वह कहां जाता है क्या करता है उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है. भाजपा के करीब आने की लगातार कोशिश कर रहे और भाजपा के विश्वास को जीतने में लगे चिराग पासवान को अचानक राबड़ी के इफ्तार पार्टी में देखकर राजनीतिक पंडित भी अचंभित थे. इससे भी खास बात यह थी कि यहां नीतीश कुमार भी मौजूद थे और चिराग और नीतीश का आमना-सामना भी हुआ.
ऐसे में चिराग और नीतीश के बॉडी लैंग्वेज ने बहुत कुछ राजनीतिक संदेश दे दिया. नीतीश कुमार जब राबड़ी देवी के साथ बैठे थे तभी वहां चिराग पासवान की एंट्री हुई. यहां पहुंचते ही चिराग पासवान ने सारे गिले-शिकवे को दरकिनार कर नीतीश कुमार के पैर छुए तो इसका एक बड़ा राजनीतिक संकेत लोगों तक गया. इसके बाद पत्रकारों के सामने चिराग पासवान ने जो कहा वह तो और भी कई राजनीतिक सवाल खड़ा कर रहा था. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि लालू परिवार के साथ उनके अच्छे संबंध रहे हैं इसलिए वह हर साल यहां आते हैं रहा सवाल नीतीश कुमार का तो उनसे उनके नीतियों के आधार पर मतभेद रहे हैं यह मतभेद व्यक्तिगत आधार पर नहीं है.
बता दें कि नीतीश कुमार पर चिराग पासवान ने आजीवन अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान के अपमान का आरोप लगा चुके हैं. इन दिनों चिराग पासवान राजनीति में अलग-थलग पड़े हुए हैं. उनके हिस्से के 6 प्रतिशत वोट बैंक को भी अपने पाले में करने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी की तरफ से कुछ ना कुछ किया जा रहा है. जिसमें से भीम चौपाल जैसी कवायद जो जारी है. अमित शाह ने जब हाल ही में बिहार में 40 सीट जीतने का दावा किया था तो लगा था कि बिहार में भाजपा किसी गठबंधन सहयोगी के साथ चुनाव मैदान में नहीं उतरेगी. जबकि चिराग भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके थे की उनकी पार्टी भी 40 सीटों पर चुनाव लडेगी. हालांकि यह बाद में तय होगा.
अब ऐसे में देखना होगा कि यह सियासी इफ्तार बिहार की राजनीति को किस दिशा में ले जाती है. चिराग और नीतीश कुमार इसके बाद कितना करीब आते हैं और लोकसभा चुनाव में इसका कितना असर देखने को मिलेगा.