सुशील मोदी ने पत्रकारों से कहा कि बिहार में कभी भी लालू यादव अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाएं. सत्ता की बागडोर लालू यादव के पास है. जब चाहें तब अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं.
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अरवल : बिहार में नई सरकार के गठन के बाद से ही सियासी बयानबाजी तेज है. पक्ष-विपक्ष दोनों एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं. इस सब के बीच कई बार शब्दों की मर्यादा भी नेता भूल रहे हैं. ऐसे में नई सरकार पर सबसे ज्यादा हमलावर भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी रहे हैं. सुसील मोदी लगतारा अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए नीतीश सरकार को निशाने पर ले रहे हैं.
गठबंधन टूटने से बीजेपी को बिहार में सरकार बनाने का मौका मिला- मोदी
इस बीच अरवल में बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने पहुंचे राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की. बैठक में कार्यकर्ताओं के साथ गठबंधन टूटने पर चर्चा की गई. इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं ने कहा कि गठबंधन टूटने से बीजेपी को बिहार में सरकार बनाने का मौका मिला है. उन्होंने कहा कि गठबंधन टूटने से कार्यकर्ता खुशी जाहिर कर रहे हैं.
बिहार के सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार नहीं लालू यादव के पास- सुशील मोदी
कार्यकर्ताओं से बैठक करने के बाद अरवल अतिथि गृह में पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने पत्रकारों से वार्ता की उन्होंने कहा कि बिहार में कभी भी लालू यादव अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाएं. सत्ता की बागडोर लालू यादव के पास है. जब चाहें तब अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना सकते हैं. उन्होंने कहा कि हर पॉलिटिशियन पिता का सपना होता है कि उनका बेटा मुख्यमंत्री बने. लालू यादव कभी भी नीतीश कुमार के साथ नहीं जाएंगे. वह राहुल गांधी के साथ जाएंगे. ऐसे में हलाल करने वाला उसत्तरा लालू यादव के पास है.
बैठिए और चलिए का खेल-खेल रहे थे नीतीश और केसीआर- सुशील मोदी
सुशील मोदी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों लोग पहले अपनी-अपनी कुर्सी बचाएं. 2023 में तेलंगाना में चुनाव होने वाला है. पहले केसीआर अपनी कुर्सी बचाएं. वहीं बिहार में नीतीश कुमार अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी पहले बचाएं. नीतीश कुमार उन्हें प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में मुहर लगाने के लिए बिहार बुलाए थे लेकिन उन्होंने अपनी सहमति नहीं दी.
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