तेजस्वी यादव बनेंगे बिहार के सीएम? क्या बिहार में होने वाला है सत्ता परिवर्तन
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तेजस्वी यादव बनेंगे बिहार के सीएम? क्या बिहार में होने वाला है सत्ता परिवर्तन

बिहार में 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक हुई तो सभी तरफ बस एक ही बात को लेकर चर्चा का बाजर गरम था कि क्या अब भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव 2024 में सभी एक साथ आ पाएंगे.

(फाइल फोटो)

पटना: बिहार में 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक हुई तो सभी तरफ बस एक ही बात को लेकर चर्चा का बाजर गरम था कि क्या अब भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव 2024 में सभी एक साथ आ पाएंगे. हालांकि यह भी नीतीश कुमार की एक कामयाब कोशिश का ही परिणाम था कि असमान विचारधारा वाली पार्टियों के नेता भी एक साथ मंच पर बैठे नजर आए. 

वैसे हिंदू महीने की माने तो आषाढ़ की भीषण गर्मी में विपक्षी एकता की बैठक ने जो सियासी गर्माहट बढ़ाई उसको कम करने के लिए कांग्रेस की तरफ से इसी बैठक को 12 जुलाई को शिमला की ठंडी वादियों में फिर मिलने का वादा कर हलचल बढ़ा दी गई है. इसके साथ ही आपको बता दें कि 4 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा है ऐसे में माना जा रहा था कि बिहार की सियासी गर्मी पर सावन के बादल बरसे तो कुछ ठंडक बढ़ेगी लेकिन अब ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. 

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ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि अगला महीना बिहार की सियासत में कुछ ज्यादा ही दिलचस्प अंदाजों वाला होगा. दरअसल नीतीश कुमार को इस विपक्षी एकता की बैठक में संयोजक बनाने की बात जब कही गई तो सबसे ज्यादा उत्साहित इसे राजद के लोग नजर आने लगे. क्योंकि नीतीश अगर संयोजक बनाए जा रहे हैं तो तेजस्वी के लिए बिहार की गद्दी का रास्ता साफ हो जाएगा. ऐसे में सवाल यह भी उठे कि अब बिहार के सीएम पद का क्या होगा? क्या नीतीश 2024 लोकसभा चुनाव के लिए तेजस्वी को अपनी गद्दी सौंपकर चुनावी समर में कूद पड़ेंगे? 

हालांकि नीतीश कुमार के संयोजक बनाए जाने वाली बात और लालू का इस बैठक में अपने आप को साबित कर जाना साफ बता रहा था कि लालू यादव अपने दांव में कामयाब हो गए हैं. लालू यादव से मिलकर दिल्ली में नीतीश ने विपक्षी एकता के जो गुर सीखे थे उसे जितना भुनाने में नीतीश कामयाब हुए उतना ही गुरु दक्षिणा के तौर पर लालू ने भी वापस पाने की कोशिश की है. राजनीति के जानकारों की मानें तो नीतीश के बिहार से हटते ही सत्ता सीधे तेजस्वी को ट्रांसफर हो जाएगी और यही लालू यादव की सोच है.  

ऐसे में अगर नीतीश को दिल्ली की सत्ता संघर्ष की कमान विपक्षी दलों ने सौंप दी तो उनको बिहार में सीएम की गद्दी खाली करनी पड़ेगी. ऐसे में बिहार में सावन में थोड़ी सियासी ठंड महसूस करने की सोचने वाले नेताओं को सावन की सियासी आग का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि नीतश पहले भी कह चुके हैं कि वह तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपना चाहते हैं. हालांकि बिहार के महागठबंधन में नीतीश की जो सर्वमान्यता है वह किसी नेता की नहीं है ऐसे में यह भी देखना जरूरी होगी कि क्या सत्ता का हस्तांतरण तब इतना आसान हो पाएगा? 

हालांकि राजनीति में नीतीश को सावन का महीना बड़ा भाता है. उनके सियासी वर्षों पर एक बार गौर से देखेंगे तो पता चलेगा. एनडीए का साथ छोड़ महागठबंधन में नीतीश शामिल हुए तो महीना सावन का था और यह एक बार नहीं दो बार ऐसा हुआ 2017 और 2022 और दोनों बार नीतीश ने सावन के महीने में ही पलटी मारी. 

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