Bihar Caste Census: जातीय जनगणना के आधार पर बिहार सरकार ने जो आरक्षण का दायरा बढ़ाया था, उसे पटना हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. बिहार सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उधर, राष्ट्रीय जनता दल की ओर से लगातार मांग की जा रही है कि इस मामले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए.
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पटना: राष्ट्रीय जनता दल जातीय जनगणना के आधार पर बढ़ाए गए आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग कर रही है, तो सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड ने इसे खारिज करते हुए कहा है कि जब पटना हाई कोर्ट ने इस कानून को ही निरस्त कर दिया है तो किस कानून को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग कर रहे हैं. बिहार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मंगलवार को राजद की इस हमदर्दी को ढोंग बताते हुए कहा, राजद श्रेय लेने की कोशिश कर रहा है लेकिन बिहार की जनता जानती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व की सरकार ने जातीय गणना का निर्णय लिया था.
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उन्होंने कहा, आज की तारीख में यह कानून ही नहीं है तो नौवीं अनुसूची में शामिल करने की बात कैसे की जा सकती है? जब यह कानून को पास किया गया था तो तत्काल मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए अनुरोध किया था. सरकार इस मामले में कदम उठा चुकी है. इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने उस कानून को ही निरस्त कर दिया.
विपक्ष पर तंज कसते हुए विजय चौधरी ने कहा कि हमको आश्चर्य होता है, जो लोग कहते हैं कि इस कानून को नौवीं अनुसूची में डाला जाए तो किस कानून को डाला जाए? आज तो वो कानून ही रद्द है, तो सबसे पहले समझने की बात है. उन्होंने कहा कि बिहार में जो जातीय गणना हुई, उसमें जो आंकड़े आए, उसके आधार पर पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलितों के लिए बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाई. सरकार ने लागू भी किया. कुछ लोगों ने न्यायालय में इसके खिलाफ याचिका लगाई तो पटना हाई कोर्ट ने उस कानून को निरस्त कर दिया. इसका अर्थ होता है कि वह कानून ही रद्द हो गया. इस फैसले के खिलाफ सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई है.
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उन्होंने कहा कि हमें विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय से सरकार के पक्ष में फैसला आएगा. यह नीतीश कुमार के पहल और प्रयास से किया गया था, जिसमें सभी दलों की सहमति थी.