बगहा: किसानों के लिए 'वरदान' साबित हो रही पोर्टेबल खेती, देखें VIDEO
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बगहा: किसानों के लिए 'वरदान' साबित हो रही पोर्टेबल खेती, देखें VIDEO

किसानों ने खेत में बाढ़ का पानी भरा होने के बावजूद मचान पर मिट्टी रखकर नर्सरी लगाया और अब खेती-किसानी कर सभी खब्जी पैदा कर रहे हैं.

किसानों के लिए 'वरदान' साबित हो रही पोर्टेबल खेती.

इमरान अजीज/बगहा: बगहा के गंडक दियारा के बाढ़ ग्रस्त इलाकों के किसानों के लिए पोर्टेबल खेती (Portable Agriculture) वरदान साबित हो रही है. दरअसल, गंडक नदी किनारे बसे रजवटिया, चकदहवा और ठकराहां जैसे क्षेत्रों में बाढ़ से प्रभावित सैकड़ों किसान अब सब्जी की खेती कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं.  

इन किसानों ने खेत में बाढ़ का पानी भरा होने के बावजूद मचान पर मिट्टी रखकर नर्सरी लगाया और अब खेती-किसानी कर सभी खब्जी पैदा कर रहे हैं. बता दें कि गंडक नदी के किनारे बसा बगहा का चखनी रजवटिया, चकदहवा और ठकराहां का इलाका प्रत्येक साल बाढ़ की विभीषिका का दंश झेलता है. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित किसान होते हैं. 

बाढ़ के पानी से खेतों में लगी फसल पूरी तरह तबाह हो जाती है. ऐसे में किसानों ने इस बार बाढ़ उत्थान से संबंधित कार्य करने वाली संस्था के सहयोग से पोर्टेबल खेती के गुर सीखे और अब इलाके के सैकड़ों किसान इस विधि से सब्जी की खेती कर अपनी किस्मत संवार रहे हैं.

बाढ़ प्रभावित इलाकों के किसानों ने मिर्च, बैगन, टमाटर, मूली और फ्रेंच बिन्स की खेती किया है. इसमें अपेक्षाकृत लागत भी कम आती है. दरअसल, दियारा के निचले हिस्से में बाढ़ ग्रस्त इलाकों में लंबे समय तक खेतों में पानी जमा रहता है. ऐसे में किसान खेती नहीं कर पाते हैं. इस बार किसानों ने विकल्प के तौर पर अंतर सीमा बाढ़ उत्थानशील परियोजना के सहयोग से खेतों में बांस-बल्ले की मदद से मचान बनाया है.

फिर उसके ऊपर 4 से 5 सेंटीमीटर मिट्टी डालकर उसमें सब्जियों के पौधों की नर्सरी लगाई है. जैसे ही बाढ़ का पानी खेतों से हटा इन्होंने सब्जियों के पौधों की बुआई नर्सरी से हटाकर खेतों में कर दी. वहीं, कुछ सब्जियों की बिक्री भी कर लिए गए हैं, जिससे लागत वापस आ गया. 

प्रत्येक साल बाढ़ की तबाही से मुसीबत झेल रहे सैकड़ों किसानों ने प्रशिक्षण प्राप्त कर सब्जी की खेती कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि यदि अंतर सीमा बाढ़ उत्थानशील परियोजना का सहयोग नहीं मिला होता तो ये लोग बाढ़ से हुए नुकसान से कभी उबर नहीं पाते. किसानों का कहना है कि इस पद्धति से खेती शुरू करने के बाद एक उम्मीद जगी है. 

वहीं, परियोजना के को-ऑर्डिनेटर रवि मिश्रा का दावा है कि बाढ़ के कारण इलाके के किसान सिर्फ एक फसल (गन्ना) पर निर्भर थे. गन्ने की खेती में ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा है. ऐसे में यहां लोगों ने किसानों से बात कर उन्हें पोर्टेबल खेती के लिए प्रेरित किया. बीज वगैरह भी उपलब्ध कराया. किसानों ने भी सहयोग किया तब जाकर यह संभव हो पाया है. 

उन्होंने कहा कि इस खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सीजनल सब्जियां समय से डेढ़ माह पहले ही बाजार में आ जाएंगी और उचित कीमत भी मिलेगी. ऐसे में किसानों में एक नई उम्मीद भी जगी है जो पीएम मोदी के टिप्स लोकल वोकल को दर्शा रहा है.