वो क्रांतिकारी, जिसके खौफ से अंग्रेजों ने उस जमाने मे रखा था उस पर 500 रुपये का इनाम
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वो क्रांतिकारी, जिसके खौफ से अंग्रेजों ने उस जमाने मे रखा था उस पर 500 रुपये का इनाम

इस देश की आजादी में कई क्रांतिकारियों का योगदान रहा है. उन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर इस देश को आज़ादी दिलाई है. इसी कड़ी में झारखंड में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक शहीद पांडेय गणपत राय का नाम भी है. आज उनका जन्मदिन है.

 (फाइल फोटो)

Ranchi: इस देश की आजादी में कई क्रांतिकारियों का योगदान रहा है. उन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर इस देश को आज़ादी दिलाई है. इसी कड़ी में झारखंड में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक शहीद पांडेय गणपत राय का नाम भी है. आज उनका जन्मदिन है. पांडेय गणपत राय का जन्म 17 जनवरी 1809 को झारखंड के भौरों गांव में एक जमींदार कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम रामकिशुन राय और माता का नाम सुमित्रा देवी था.

चाचा की वजह से मिली शिक्षा 

उनके चाचा का नाम सदाशिव राय था, वो छोटानागपुर प्रदेश के नागवंशी महाराजा जगन्नाथ शाहदेव के दीवान थे. इसी वजह से गणपत राय की शिक्षा-दीक्षा, परवरिश शानोशौकत के साथ शाही महल में चाचा के पास ही हुई थी. यहां पर उन्होंने उर्दू, फारसी, हिंदी भाषाएं सीखी. घुड़सवारी, तीर, भाला, बंदूक चलाना तथा अन्य वीरता के गुण सीखें. इसी दौरान महाराजा के उदासीन कार्यकलापों और अंग्रेजों द्वारा आम नागिरकों पर होते हुए अत्याचारों को देख-देखकर उनके मन में विद्रोह की भावना आ गई. 

गुस्से में छोड़ी दीवानी 

उन्होंने अंगरेजों की कठपुतली बने जगन्नाथ शाह को अंग्रेजों के खिलाफ करने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हुए. इस पर क्रुद्ध होकर उन्होंने दीवान पद का छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने 1857 के विद्रोह में बड़कागढ़ स्टेट के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ विद्रोह कर दिया. दोनों ने स्वाधीनता आंदोलन में अपनी शहादत दी. 

 500 रु का रखा गया इनाम

इस दौरान वो अमीर अंग्रेजों को लूटना और उन्हें दंड देने का काम किया़. जिस पर परेशान होकर अंग्रेंज कमिश्नर डाल्टन ने एलान किया कि जो भी गणपत राय को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने पर मदद करेगा, उसे 500 रु का इनाम दिया जायेगा. एक बार वो रास्ता भटक गये थे. जिसके बाद वो अपने ही संबंधी के घर रात में रुक गये़ थे. इसी संबंधी में थाने में खबर दे दी थी. जिसके बाद थानेदार ने पूरी फौज के साथ आकर उनको गिरफ्तार किया़. नियम के खिलाफ उनका अदालत में नहीं गया और थाने में ही कोर्ट लगी और दूसरे दिन उन्हें फांसी की सजा सुना दी गयी. उन्हें 21 अप्रैल 1958 को तड़के फांसी दे दी गयी.

 

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