सहज और सरल तरीके से मानसी ने अपने अनुभवों को कागज पर उतारा है. यह किताब जिंदगी के अलग-अलग रंगों से रू-ब-रू कराती है. यह जिंदगी और मौत से जूझने की कहानी है.
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Gumla: कोरोना महामारी की चपेट में आने वाले ज्यादातर लोग उन कड़वी यादों को हमेशा के लिए भूल जाना चाहते हैं, क्योंकि यह सिर्फ बीमारी नहीं, अकेलेपन की सजा भी है. गुमला जिले के बसिया प्रखंड की छात्रा मानसी चौधरी भी कोरोना से पीड़ित हुईं, लेकिन उन्होंने उन यादों को किताब की शक्ल दे दी है. उनकी किताब 'वन मंथ स्टोरी' हिंदी और इंग्लिश में आई है.
सेंट जेवियर कॉलेज की छात्रा
मानसी चौधरी रांची के सेंट जेवियर कॉलेज में बीसीए की छात्रा हैं. रांची में जब कोरोना का कोहराम शुरू हुआ तो स्कूल-कॉलेज बंद हो गए और मानसी अपने घर गुमला लौट गईं, लेकिन वह कोरोना से बच नहीं पाईं. लक्षण नजर आने पर उन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया. जांच हुई तो 27 अप्रैल को उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाया गया. 15 दिन उन्होंने अकेलेपन में गुजारे, लेकिन बीमारी को खुद पर हावी होने देने की जगह मानसी ने कलम उठा ली और पल-पल के तजुर्बे को कागज में दर्ज करने लगीं, जो अब 'वन मंथ स्टोरी' के रूप में पाठकों के सामने है.
इस किताब में आप पाएंगे कि हताशा भी है और फिर हिम्मत से आगे बढ़ने की प्रेरणा भी है. सहज और सरल तरीके से मानसी ने अपने अनुभवों को कागज पर उतारा है. यह किताब जिंदगी के अलग-अलग रंगों से रू-ब-रू कराती है. यह जिंदगी और मौत से जूझने की कहानी है. यह किताब नोशन प्रेस की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
दादाजी से मिली लिखने की प्रेरणा
मानसी चौधरी कहती हैं कि उन्हें किताब लिखने की प्रेरणा अपने दादाजी विजय प्रसाद चौधरी से मिली, वह अब इस दुनिया में नहीं हैं. वहीं, पिता रंजीत चौधरी कहते हैं कि उन्हें इस बात का पता नहीं था कि होम आइसोलेशन के दौरान मानसी ने किताब लिखी है. जब वह रिपोर्ट में कोरोना नेगेटिव पाई गई, उसके बाद उन्हें किताब के बारे में पता चला.