पत्थलगड़ी का अर्थ होता है पत्थर गाड़ना. आदिवासी समाज में एक व्यवस्था है जिसके तहत किसी खास मकसद को लेकर एक सीमांकन किया जाता है.
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Chaibasa: भारत अनेक संस्कृतियों और परंपराओं का देश है. ऐसी परंपरा जिनमें कहीं ना कहीं लोगों की आस्था छुपी होती है. कई बार ये लोगों के लिए फलदायक साबित होती हैं तो वहीं, कई बार इन्हीं परंपराओं के चलते लोगों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो.
झारखंड में भी ऐसे ही एक परंपरा सदियों से चलती आई है. इस परंपरा का नाम 'पत्थलगड़ी' है. आदिवासी और पत्थलगड़ी का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना की उनका अस्तित्व. खासकर मुंडा आदिवासियों के बीच पत्थलगड़ी न केवल सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि ये उनकी पहचान और रहन-सहन का भी हिस्सा है.
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क्या है पत्थलगड़ी?
पत्थलगड़ी का अर्थ होता है पत्थर गाड़ना. आदिवासी समाज में एक व्यवस्था है जिसके तहत किसी खास मकसद को लेकर एक सीमांकन किया जाता है. इस आंदोलन के तहत आदिवासियों के द्वारा बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में उनके लिए दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया जाता है. पत्थलगड़ी के तहत सरकारी संस्थानों और सुविधाओं को नकारने की बात भी की जाती है.
सरल भाषा में समझे, तो इस आंदोलन के तहत ग्रामीण या आदिवासी जगह जगह बड़े-बड़े पत्थरों के जरिए सांकेतिक रूप से इस बात की सूचना देते हैं कि देश का कानून यहां नहीं चलता. सीआरपीसी और आईपीसी यहां पर लागू नहीं होते. गांवों के अंदर पुलिसबल सहित गैर-आदिवासियों को आने की इजाजत नहीं है और नई गठित ग्राम सभाएं कार्यकारी, न्यायपालिका और विधायिका तीनों की भूमिकाएं अपने हाथों में ले रही हैं.
आदिवासी इलाके में कोई भी खास काम होता है, तो आदिवासी वहां एक बड़ा सा पत्थर लगा देते हैं और उस पर संविधान के हवाले से उस काम का ब्यौरा दर्ज किया जाता है. मसलन, जन्म-मृत्यु, शहादत या किसी नए गांव की शुरुआत का पत्थर. लेकिन अक्सर इस परंपरा को लेकर आदिवासियों और गांववालों से सरकार का टकराव भी होता रहा है.
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परंपरा के नाम पर खेला गया खूनी खेल!
वहीं, 2020 में इसी पत्थलगड़ी पंरपरा के नाम पर झारखंड में एक ऐसा खूनी खेल खेला गया कि लाशों कि स्थिति के बारे में सुनने भर से ही लोगों की रूह कांप उठी. घटना चाईबासा के नजदीक बुरूगुलीकेरा गांव की है. यहां मौत का ऐसा तांडव मचाया गया कि देखने वालों के रौंगटे खड़े हो गए.
जानकारी के अनुसार, बुरुगुलीकेरा गांव में ग्राम सभा द्वारा लोगों के घर पत्थर पर संदेश लिखकर भेजा गया. संदेश में लोगों से उनके वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड जमा करने की मांग की गई थी. लेकिन गांव के ही 9 लोगों ने पत्थलगड़ी परंपरा का विरोध करते हुए अपने वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड जमा करने से मना कर दिया. इस विरोध का सीधा-सीधा मतलब था सिस्टम से बगावत.
इसके बाद यह बात पत्थलगढ़ी के हिमायती गांववालों को रास नहीं आई. नतीजन उन 9 लोगों को जल्द ही इस विरोध का खामियाजा भुगतना पड़ा. विरोध के अगले दिन ही ग्राम सभा की बैठक शुरू हुई. एक-एक कर उन सभी नौ लोगों को पकड़ कर ग्राम सभा के सामने पेश किया गया, जिन्होंने बीती रात पत्थलगड़ी का विरोध किया था. इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश को दहला कर रख दिया.
ग्रामीणों के मुताबिक, पकड़कर लाए गए लोगों ने इशारों ही इशारों में ग्राम सभा को चकमा देकर भागने की कोशिश की. लेकिन ग्रामीणों ने 9 में से 7 को दबोच लिया. इसके बाद इंसाफ का ऐसा खेल शुरू हुआ जो देखते ही देखते खूनी खेल में तब्दील हो गया.
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7 लोगों की हुई निर्मम हत्या
रिपोर्ट्स के मुताबिक, गांव के सैकड़ों लोग मिलकर पकड़े गए विरोधियों मारते पीटते हुए और घने जंगलों की तरफ लेकर चले गए. इस दौरान पहले तो सभी को बुरी तरह से पीटा गया और फिर गांव से तकरीबन सात किमी दूर जंगल के अंदर हाथ पांव बांधकर सभी को जमीन पर पटक दिया गया और फिर ग्रामीणों ने खुद अपने हाथों से एक-एक कर अपने ही गांव के 7 लोगों का गला काट कर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया. पकड़े जाने के बाद ये सभी के सभी सातों लोग लगातार छटपटाते रहे. रहम की भीख मांगते रहे. लेकिन परंपरा के धोखे में अंधे हो चुके लोगों को इन पर कोई दया नहीं आई. हालांकि, अभी ग्राम सभा में दोनों पक्षों की बातें सुनी जातीं.
शाम होते होते ये खबर जंगल में आग की तरह फैल गई लेकिन शासन-प्रशासन के लिए भी इतनी खतरनाक जगह पर भड़के हुए ग्रामीणों के बीच पहुंचना मौत से खेलने जैसा था. लिहाजा प्रशासन रात भर इंतजार करता रहा और तैयारियों में जुटा रहा.
सुबह जिले के भारी पुलिस बल और सीआरपीएफ के लोग पहले बुरूगुलीकेरा गांव पहुंचे और फिर वहां से जंगलों का रुख किया. वहां पहुंचकर पुलिस बल को उन सात बदनसीब लोगों के शव बरामद हुए जो पत्थलगढ़ी की खूनी बन चुकी प्रथा की भेंट चढ़ गए. इधर, हैरानी की बात ये कि शव भी गांववालों की निशानदेही पर ही बरामद हुए.
इस सब के बावजूद एक कड़वा सच यह भी है कि आज की तारीख में अगर सबसे ज्यादा किसी के साथ गलत हुआ है तो वह आदिवासी ही हैं. यह सालों से चली आ रही शासन की बेरुखी का ही असर है कि आज भी दुनिया की इतनी तरक्की होने के बावजूद इन इलाकों में विकास की रोशनी नहीं दिखाई पड़ती है. इसी का नतीजा है इन ग्रामीणों ने 'अबुआ धरती, अबुआ राज' यानी अपनी धरती अपना राज की धारणा को अपना लिया है. इसी धारणा के तहत ये अपने इलाके के कायदे कानून खुद तय करते हैं और यह किस हद तक सही है इस बारे में निष्पक्ष होकर कुछ भी कहना मुश्किल है.