रोमन शैली में बनाए गए इस चर्च की नींव 20 मई, 1906 में रखी गई थी. जिसका शिलान्यास आर्च बिशप म्यूलमैन ने अपने हाथों से किया था. 1906 में नींव रखने के बाद तीन साल बाद 1909 में ये चर्च बनकर तैयार हो गया. 1909 में इस चर्च के शुभारंभ के लिए ढाका के बिशप हर्ट को विशेष तौर पर रांची बुलाया गया था. वहीं इस चर्च के निर्माण का श्रेय अल्फ्रेड लेम्बन को जाता है.
छोटानागपुर में 1843 में कैथोलिक कलीसिया की शुरुआत कलकत्ता (कोलकाता) से की गई थी. उस समय कलकत्ता छोटानागपुर भी के अंतर्गत ही आता था. झारखंड के चाईबासा में 10 जुलाई, 1869 को फादर स्टाकमैन ने पहली बार मिशन कार्यों की शुरुआत की थी. वहीं 1886 में रांची में कैथोलिक कलीसिया की शुरुआत हुई थी.
1898 में रांची का पहला पल्ली पुरोहित फादर भान रोवाय को बनाया गया. जैसे-जैसे कलीसिया में विश्वासियों की संख्या बढ़ने लगी लोगों को बड़े चर्च की जरूरत महसूस होने लगी. तब हर रविवार को पूरा समुदाय सड़क के उस पार स्थित संत जोन्स चर्च में मिस्सा सुनने जाया करता था. प्रार्थना सभाओं के लिए बहुत दिनों तक संत जान उपासना गृह का उपयोग किया गया.
पुरुलिया रोड स्थित संत मैरी चर्च को 61 मीटर लंबी, 35 मीटर ऊंची व 36 मीटर चौड़ा बनाया गया है. इसके निर्माण के लिए मांडर, खूंटी आदि क्षेत्र से कुशल कारीगरों और राजमिस्त्री को बुलाया गया था. इसके कारीगर चर्च बनाने में पारंगत थे. चर्च में लकड़ी के 10 दरवाजे हैं. चर्च के अंदर मुख्य वेदी के अतिरिक्त आठ छोटी छोटी वेदियां भी बनाई गई हैं जहां दैनिक मिस्सा पूजा का आयोजन किया जाता है.
चर्च के अंदर मुख्य वेदी के पीछे ऊपर में माता मरियम की एक आदमकद मूर्ति बनाई गई है. इनके पैरों के नीचे चंद्रमा और सिर पर बारह तारों का मुकुट बनाया गया है. वहीं, वेदी से लगे दीवार के ऊपरी हिस्से में दो स्वर्गदूत माता की श्रद्धा लीन बनाए गए हैं.
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