When Children Have Children: मायूसी के हालात में उम्मीद जगाती किताब
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When Children Have Children: मायूसी के हालात में उम्मीद जगाती किताब

When Children Have Children: बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक ठोस कार्य योजना और रणनीतिक खाका पेश करती भुवन ऋभु की किताब 'व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन’ का अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर झारखंड के 24 जिलों में लोकार्पण किया गया.

व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन

When Children Have Children: देश में जहां हर साल लाखों नाबालिग बच्चियों को शादी का जोड़ा पहना दिया जाता है, वहां बाल विवाह से मुक्ति का सपना दूर की कौड़ी लगना स्वाभाविक है. यूनीसेफ का अनुमान है कि भारत में बाल विवाह की दर यही रही जो पिछले दस साल से है तो 2050 तक जाकर भारत में बाल विवाह की दर घट कर छह प्रतिशत पर आ पाएगी. मायूसी के इस हालात में भुवन ऋभु की किताब 'व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्ड मैरेज' 2030 तक भारत में बाल विवाह की दर 5.5 प्रतिशत तक लाने का एक समग्र रणनीतिक खाका पेश करती है. ये संख्या वो देहरी है जहां से बाल विवाह का चलन अपने आप घटने लगेगा और लक्षित हस्तक्षेपों पर निर्भरता भी कम होने लगेगी. 

बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक ठोस कार्य योजना और रणनीतिक खाका पेश करती भुवन ऋभु की किताब 'व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन’ का अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर झारखंड के 24 जिलों में लोकार्पण किया गया. प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और महिलाओं और बच्चों के हकों की लड़ाई लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाले 160 गैर सरकारी संगठनों के सलाहकार भी हैं.

इस किताब का लोकार्पण बाल विवाह पीड़ितों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों और नागरिक समाज संगठनों से जुड़े लोगों ने किया. लोकार्पण के दौरान बाल विवाह पीड़ितों ने अपनी आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि बाल विवाह की वजह से किस तरह उन्हें शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, किशोरावस्था में गर्भवती होने और नवजात बच्चे की मौत जैसी कितनी ही असंख्य और असह्य पीड़ाओं का सामना करना पड़ा. 'व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन’ नागरिक समाज और महिलाओं की अगुआई में सबसे ज्यादा प्रभावित करीब 300 जिलों में चल रहे बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करने और इस प्रकार हर साल 15 लाख लड़कियों को बाल विवाह के चंगुल में फंसने से बचाने के प्रयासों में एक अहम हस्तक्षेप है.

किताब इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक योजना की रूपरेखा भी पेश करती है. यह 'पिकेट' रणनीति के माध्यम से सरकार, समुदायों, गैर सरकारी संगठनों और बाल विवाह के लिहाज से संवेदनशील बच्चियों से नीतियों, निवेश, संम्मिलन, ज्ञान-निर्माण और एक पारिस्थितिकी जहां बाल विवाह फल-फूल नहीं पाए और बाल विवाह से लड़ाई के लिए निरोधक और निगरानी तकनीकों की मांग पर एक साथ काम करने का आह्वान करती है. 

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बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में 'व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन' को एक सामयिक और अहम हस्तक्षेप बताते हुए कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के कंट्री हेड रवि कांत ने कहा, 'नागरिक समाज और सरकार, दोनों ही बाल विवाह मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरे समर्पण से काम कर रहे हैं. लेकिन जब तक इस अपराध से मुकाबले के लिए जब तक हमारे पास एक समन्वित योजना नहीं होगी, तब तक बाल विवाह के खिलाफ टिपिंग प्वाइंट के बिंदु तक पहुंचना एक मुश्किल काम होगा. यह किताब हमें एक जरूरी रणनीतिक योजना मुहैया कराने के साथ तमाम हितधारकों के विराट लेकिन बिखरे हुए प्रयासों को एक ठोस आकार और दिशा देती है.'

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बाल विवाह के खात्मे के लिए देश के 300 से ज्यादा जिलों में 160  गैर सरकारी संगठन मिल कर 16 अक्तूबर 2023 को बाल विवाह मुक्त दिवस मनाने की तैयारियों में जुटे हैं. ये सभी संगठन इस दिन देश के हजारों गांवों में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटकों, बाल विवाह के खिलाफ प्रतिज्ञाओं, कार्यशालाओं, मशाल जुलूस और तमाम अन्य गतिविधियों के माध्यम से संदेश दिया जाएगा कि बाल विवाह हर हाल में खत्म होना चाहिए. 16 अक्तूबर 2023 बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की पहली वर्षगांठ है और तब से लेकर अब तक सामुदायिक सदस्यों, गैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों के प्रयासों से हजारों बाल विवाह रोके गए हैं और लाखों लोगों ने अपने समुदायों में बाल विवाह नहीं देने की शपथ ली है.   

राष्ट्रीय औसत से काफी ऊपर है झारखंड में बाल विवाह का आंकड़ा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष का होने से पूर्व ही हो गया था जबकि झारखंड में यह औसत 32.2 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में हर साल 3.59 लाख बच्चों का विवाह 18 वर्ष की उम्र पूरी करने से पहले ही हो जाता है. यह एक गंभीर चिता की बात है और बच्चियों को बाल विवाह का शिकार होने से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है.

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