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Sanatan Dharma: किसी भी सनातनी के शादी-ब्याह, कर्मकांड या पूजा पाठ के समय आप सुनते होंगे कि उनसे उनके गोत्र के बारे में पूछा जाता है. सनातन धर्म में एक गोत्र में शादी पूर्णतः वर्जित है. इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि अगर एक ही गोत्र में शादी की जाए तो कई तरह की जेनेटिक परेशानी उनके अगले वंश में आ जाती है. ऐसे में गोत्र का यहां विशेष महत्व है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि गोत्र क्या है और इसे कैसे पता लगाएं कि आपका गोत्र कौन सा है. गोत्र की सही व्याख्या की मानें तो इंद्रिय आघात से रक्षा करनेवाला ही गोत्र है. इस ऋृषि परंपरा से जोड़ा जाता है. मतलब साफ है जो विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि अगर इंद्रिय आघात से रक्षा करना है तो दूसरे गोत्र में शादी-ब्याह जैसे बंधन को स्वीकार करना चाहिए.
ऐसे में ब्राह्मणों के लिए गोत्र का विशेष महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि उनको ऋृषियों की संतान माना गया है. यानी हर ब्राह्मण के गोत्र से पता लग जाएगा कि वह किस ऋृषिकुल से आते हैं. यानी गोत्र सीधे तौर पर आपके पूर्वजों की पहचान को दर्शाता है. पहले चार गोत्र थे अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु फिर बाद में इसमें जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य को भी जोड़ा गया. मतलब ये 8 गोत्र मूल रूप से आपको देखने सुनने को मिलेंगे.
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अब जिसको अपने गोत्र का पता नहीं होता उसके लिए कश्यप गोत्र का उच्चारण कराया जाता है. इसके पीछे की मान्यता यह है कि कश्यप ऋृषि की एक से अधिक शादियां हुई थीं. जिससे उनके अनेक पुत्र थे. ऐसे में जिनको अपना गोत्र नहीं पता उन्हें कश्यप गोत्री मान लिया जाता है. साथ ही भगवान श्री हरि नारायण विष्णु का भी गोत्र यही बताया गया है. वैसे समयांतराल के साथ मूल रूप से 7 गोत्र ही रह गए हैं जिसे लोग जानते हैं. इनमें अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र मूल हैं.
वर्तमान में अभी कुल 115 गोत्र प्रचलित हैं. जो आपको यह बताते हैं कि आप इनमें से किस ऋृषि के वंशज हैं. ऐसे में हम आपको 7 शाखाओं सहित कुल 115 गोत्रों के बारे में बताएंगे. जो इस प्रकार हैं. अत्रि गोत्र, भृगुगोत्र, आंगिरस गोत्र, मुद्गल गोत्र,पातंजलि गोत्र, कौशिक गोत्र, मरीच गोत्र, च्यवन गोत्र, पुलह गोत्र, आष्टिषेण गोत्र, उत्पत्ति शाखा, गौतम गोत्र,.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र, वात्स्यायन गोत्र, बुधायन गोत्र,माध्यन्दिनी गोत्र, अज गोत्र, वामदेव गोत्र, शांकृत्य गोत्र, आप्लवान गोत्र,सौकालीन गोत्र, सोपायन गोत्र,गर्ग गोत्र, सोपर्णि गोत्र, शाखा, मैत्रेय गोत्र,पराशर गोत्र,अंगिरा गोत्र,क्रतु गोत्र, अधमर्षण गोत्र, बुधायन गोत्र, आष्टायन कौशिक गोत्र, अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, कौण्डिन्य गोत्र, मित्रवरुण गोत्र,कपिल गोत्र, शक्ति गोत्र, पौलस्त्य गोत्र, दक्ष गोत्र, सांख्यायन कौशिक गोत्र, जमदग्नि गोत्र, कृष्णात्रेय गोत्र, भार्गव गोत्र, हारीत गोत्र, धनञ्जय गोत्र,पाराशर गोत्र,आत्रेय गोत्र, पुलस्त्य गोत्र, भारद्वाज गोत्र, कुत्स गोत्र, शांडिल्य गोत्र, भरद्वाज गोत्र, कौत्स गोत्र, कर्दम गोत्र, पाणिनि गोत्र, वत्स गोत्र, विश्वामित्र गोत्र, अगस्त्य गोत्र, कुश गोत्र, जमदग्नि कौशिक गोत्र, कुशिक गोत्र, देवराज गोत्र, धृत कौशिक गोत्र, किंडव गोत्र, कर्ण गोत्र, जातुकर्ण गोत्र, काश्यप गोत्र, गोभिल गोत्र, कश्यप गोत्र, सुनक गोत्र, शाखाएं गोत्र, कल्पिष गोत्र, मनु गोत्र, माण्डब्य गोत्र, अम्बरीष गोत्र, उपलभ्य गोत्र, व्याघ्रपाद गोत्र, जावाल गोत्र, धौम्य गोत्र, यागवल्क्य गोत्र, और्व गोत्र, दृढ़ गोत्र, उद्वाह गोत्र, रोहित गोत्र, सुपर्ण गोत्र, गालिब गोत्र, वशिष्ठ गोत्र,मार्कण्डेय गोत्र, अनावृक गोत्र, आपस्तम्ब गोत्र, उत्पत्ति शाखा गोत्र, यास्क गोत्र, वीतहब्य गोत्र, वासुकि गोत्र, दालभ्य गोत्र, आयास्य गोत्र, लौंगाक्षि गोत्र, चित्र गोत्र, विष्णु गोत्र, शौनक गोत्र, पंचशाखा गोत्र,सावर्णि गोत्र, कात्यायन गोत्र, कंचन गोत्र,अलम्पायन गोत्र,अव्यय गोत्र, विल्च गोत्र, शांकल्य गोत्र,उद्दालक गोत्र, जैमिनी गोत्र, उपमन्यु गोत्र, उतथ्य गोत्र, आसुरि गोत्र, अनूप गोत्र और आश्वलायन गोत्र.
ऐसे में पूरी हिंदू जातियां इसी 115 गोत्रों में विभाजित है या कहें कि इन्हीं 115 ऋृषियों के वह वंशज हैं. इसमें से ब्राह्मणों में शाण्डिल्य को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना जाता है. यह तप, वैदिक ज्ञान को धारण करने वाले तीन ब्राह्मणों के उच्च गोत्र गौतम, गर्ग और शाण्डिल्य में से एक है.